अबु बक्र
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अबू बक्र | |
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अबू बक्र अस-सिद्दीक | |
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इस्लामी खलीफा | |
शासनावधि | 8 June 632 – 22 August 634 |
उत्तरवर्ती | राशिदून ख़िलाफ़त के प्रथम खलीफ़ा |
जन्म | 27 अक्टूबर 573 मक्का,अरब |
निधन | 22 अगस्त 634 (उम्र 61) मदीना,अरब |
समाधि | |
जीवनसंगी |
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संतान | बेटे
बेटियां
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घराना | सिद्दीकी |
पिता | उस्मान अबू क़ुहाफ़ा |
माता | सलमा उम्म-उल-खै़र |
धर्म | इस्लाम |
अबू बक्र का असली नाम अब्दुल्लाह इब्न अबू क़ुहाफ़ा (Abdullah ibn Abi Quhaafah अरबी عبد الله بن أبي قحافة), c. 573 ई – 23 अगस्त 634 ई, इनका मशहूर नाम अबू बक्र (أبو بكر) है।[1] अबू बक्र पैगंबर मुहम्मद के ससुर और उनके प्रमुख साथियों में से थे। वह मुहम्मद साहब के बाद मुसल्मानों के पहले खलीफा चुने गये। सुन्नी मुसलमान इनको चार प्रमुख पवित्र खलीफाओं में अग्रणी मानतें हैं। ये पैगंबर मुहम्मद के प्रारंभिक अनुयायियों में से थे और इनकी पुत्री आयशा पैगंबर की चहेती पत्नी थी।
परिचय[संपादित करें]
अबू बक्र उस्मान अबू कहाफा के पुत्र थे। इनके उपनाम 'सिदीक' और 'अतीक' भी थे। पैगंबर की वफ़ात (जून, ८, ६३२ ई.) के पश्चात् मदीना के लोगो ने एक सभा में लंबे विवाद के पश्चात क़ुरान की एक आयात को आधार बनाते हुए जो अबु बक्र की प्रशंसा मे थी उनको पैगंबर का खलीफा (उत्तराधिकारी) स्वीकार किया।
पैगंबर साहब का विसाल होते ही मक्का, मदीना और ताइफ़ नामक तीन नगरों के अतिरिक्त अरब का बड़ा हिस्सा इस्लाम विमुख हो गया। लोग यह समझ रहे थे कि पैग़म्बर थे तो इस्लाम था, वह नहीं रहे तो इस्लाम की क्या ज़रुरत है। पैगंबर द्वारा लगाए गए करों और नियुक्त किए गए कर्मचारियों का लोगों ने बहिष्कार कर दिया। तीन अप्रामाणिक पुरुष पैगंबर तथा एक अप्रामाणिक स्त्री पैगंबर अपना पृथक् प्रचार करने लगे। अपने घनिष्ठतम मित्रों के परामर्श के विरुद्ध अबू बक्र ने विद्रोही आदिवासियों से समझौता नहीं किया। ११ सैनिक दस्तों की सहायता से उन्होंने समस्त अरब प्रदेश को एक वर्ष में नियंत्रित किया। मुसलमान न्यायपंडितों ने धर्मपरिवर्तन के अपराध के लिए मृत्युदंड निश्चित किया, किंतु अबू बक्र ने उन सब जातियों को क्षमा कर दिया जिन्होंने इस्लाम और उसकी केंद्रीय शक्ति को पुन: स्वीकार कर लिया।
पदारोहण के एक वर्ष के भीतर ही अबू बक्र ने खालिद (पुत्र वलीद) को आज्ञा दी कि वह मुसन्ना नामक सेनापति के साथ १८,००० सैनिक लेकर इराक पर चढ़ाई करे। इस सेना ने ईरानी शक्ति को अनेक लड़ाइयों में नष्ट करके बाबुल तक, जो ईरानी साम्राज्य की राजधानी मदाइन के निकट था, अपना आधिपत्य स्थापित किया। इसके बाद खालिद ने अबू बक्र के आज्ञानुसार इराक से सीरिया की ओर कूच किया और वहाँ मरुस्थल को पार करके वह ३०,००० अरब सैनिकों से जा मिला और १,००,००० बिजंतीनी सेना को फिलस्तीन के अजन दैइन नामक स्थान पर परास्त किया (३१ जुलाई ६३४ ई.)। कुछ ही दिनों बाद अबू बक्र का देहांत हो गया (२३ अगस्त ६३४)।
शासनव्यवस्था में अबू बक्र ने पैगंबर द्वारा प्रतिपादित गरीबी और आसानी के सिद्धांतो का अनुकरण किया। उनका कोई सचिवालय और नाजकीय कोष नहीं था। कर प्राप्त होते ही व्यय कर दिया जाता था। वह ५,००० दिरहम सालाना स्वयं लिया करते थे, किंतु अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने इस धन को भी अपनी निजी संपत्ति बेचकर वापस कर दिया।
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ [1] Archived 2016-10-10 at the Wayback Machine, from islam4theworld
सन्दर्भ ग्रंथ[संपादित करें]
- म्योर: कैलिफेट;
- इब्ने अहसीर (हैदराबाद में मुद्रित)
- इब्ने खलदून।