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अफ़ग़ानिस्तान युद्ध (2001–2021)

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अफ़ग़ानिस्तान युद्ध (2001–2021)
अफ़ग़ानिस्तान युद्ध और आतंकवाद के खिलाफ जंग का भाग

तिथि 7 अक्टूबर 2001 – 30 अगस्त 2021
स्थान अफ़ग़ानिस्तान
Status तालिबान अर्थात् इस्लामिक इमारत अफ़ग़ानिस्तान इस युद्ध में विजय रहा और 31अगस्त 2021 के दिन अंतिम अमेरीकी सैनिक की वापसी के साथ युद्ध समाप्त।
योद्धा
Invasion (2001):
अफ़ग़ानिस्तान उत्तरी मित्रपक्ष
 संयुक्त राज्य
 यूनाइटेड किंगडम
 कनाडा
 ऑस्ट्रेलिया
 जर्मनी[1]

ISAF phase (2001–14):
अफ़ग़ानिस्तान अफ़्ग़ानिस्तान इस्लामी गणराज्य[2]
ISAF
 संयुक्त राज्य
 यूनाइटेड किंगडम
 कनाडा
 ऑस्ट्रेलिया
 इटली
 जर्मनी
 Georgia
 Jordan
 Turkey
 Bulgaria
 Poland
 Romania
 Spain
 Czech Republic


RS phase (from 2015):
Resolute Support[4]
 संयुक्त राज्य
 इटली
 जर्मनी
 Georgia
 Turkey
 Romania
 यूनाइटेड किंगडम
 ऑस्ट्रेलिया
 Czech Republic
 Poland

ISAF/RS Phase (from 2001):

अफ़ग़ानिस्तान तालिबान

अल-क़ायदा
Allied groups:


अफ़ग़ानिस्तान तालिबान splinter groups


ISIL-KP[तथ्य वांछित] (from 2015)

Allied groups:

a The continued list includes nations who have contributed fewer than 200 troops as of November 2014.[14]

b The continued list includes nations who have contributed fewer than 200 troops as of May 2017.[15]

अफ़ग़ानिस्तान युद्ध अफ़ग़ानिस्तानी चरमपंथी गुट तालिबान, अल कायदा और इनके सहायक संगठन एवं नाटो की सेना के बीच सन 2001 से चल रहा है। इस युद्ध का मकसद अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार को गिराकर वहाँ के इस्लामी चरमपंथियों को ख़त्म करना है। इस युद्ध कि शुरुआत 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद हुयी थी। हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज विलियम बुश ने तालिबान से अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन कि मांग की, जिसे तालिबान ने यह कहकर मना कर दिया कि पहले अमेरिका, लादेन के इस हमले में शामिल होने के सबूत पेश करे जिसे बुश ने ठुकरा दिया और अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे कट्टरपंथी गुटों के विरुद्ध युद्ध का ऐलान कर दिया। कांग्रेस हॉल में बुश द्वारा दिए गए भाषण में बुश ने कहा कि यह युद्ध तब तक ख़त्म नहीं होगा जब तक पूरी तरह से अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में से चरमपंथ ख़त्म नहीं हो जाता। इसी कारण से आज भी अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में अमेरिकी सेना इन गुटों के खिलाफ जंग लड़ रही है।.[16][17]

अफ़ग़ानिस्तान गृहयुद्ध की शुरुआत

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अफ़ग़ानिस्तान युद्ध की शुरुआत सन 1978 में सोवियत संघ द्वारा अफ़ग़ानिस्तान में किये हमले के बाद हुई। सोवियत सेना ने अपनी जबरदस्त सैन्य क्षमता और आधुनिक हथियारों के दम पर बड़ी मात्रा में अफ़ग़ानिस्तान के कई इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया । सोवियत संघ की इस बड़ी कामयाबी को कुचलने के लिए इसके पुराने दुश्मन अमेरिका ने पाकिस्तान का सहारा लिया। पाकिस्तान की सरकार अफ़ग़ानिस्तान से सोवियत सेना को खदेड़ने के लिए सीधे रूप में सोवियत सेना से टक्कर नहीं लेना चाहती थी , इसलिए उसनm तालिबान नामक एक ऐसे संगठन का गठन किया जिसमें पाकिस्तानी सेना के कई अधिकारी और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को जेहादी शिक्षा देकर भर्ती किया गया। इन्हे अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत सेना से लड़ने के लिए भेजा गया तथा इन्हे अमेरिका की एजेंसी सीआईए द्वारा हथियार और पैसे मुहैया कराये गए। तालिबान की मदद को अरब के कई अमीर देश जैसे सऊदी अरब, इराक आदि ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से पैसे और मुजाहिदीन मुहैया कराये. सोवियत हमले को अफ़ग़ानिस्तान पर हमले की जगह इस्लाम पर हमले जैसा माहौल बनाया गया जिससे कई मुस्लिम देशों के लोग सोवियत सेनाओ से लोहा लेने अफ़ग़ानिस्तान पहुँच गए। अमेरिका द्वारा मुहैया कराए गए आधुनिक हथियार जैसे हवा में मार कर विमान को उड़ा देने वाले रॉकेट लॉन्चेर, हैण्ड ग्रैनेड और एके ४७ आदि के कारण सोवियत सेना को कड़ा झटका लगा एवं अपनी आर्थिक स्तिथि के बिगड़ने के कारण सोवियत सेना ने वापस लौटने का इरादा कर लिया। सोवियत सेना की इस तगड़ी हार के कारण अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान और अल कायदा के मुजाहिदीनों का गर्म जोशी से स्वागत और सम्मान किया गया। इसमें मुख्यत: तालिबान प्रमुख मुल्लाह ओमर और अल कायदा प्रमुख शेख ओसामा बिन लादेन का सम्मान किया गया। ओसामा सऊदी के एक बड़े बिल्डर का बेटा होने के कारण बेहिसाब दौलत का इस्तेमाल कर रहा था। युद्ध के चलते अफ़ग़ानिस्तान में सरकार गिर गयी थी जिसके कारण दोबारा चुनाव किये जाने थे किन्तु तालिबान ने देश कि सत्ता अपने हाथों में लेते हुए पूरे देश में एक इस्लामी धार्मिक कानून शरीअत लागू कर दिया जिसे सऊदी सरकार ने समर्थन भी दिया।

युद्ध के कारण

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इसका मुख्य उद्देश्य 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर में हुए हमले कि मुख्य आरोपी ओसामा बिन लादेन और उसके संगठन अल कायदा को समाप्त करना था।

युद्ध की खास लड़ाइयाँ

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युद्ध के शुरू होने के कुछ ही समय बाद अफ़ग़ानिस्तान में भयंकर और विनाशकारी लड़ाइयाँ हुई। ये लड़ाइयाँ तालिबान और नोरथर्न अलायन्स के बीच, तालिबान और नाटो सेनाओ के बीच तथा अल कायदा और इससे जुड़े संगठन एवं नाटो सेना तथा नोरथर्न अलायन्स की साझा टुकड़ियों के बीच हुई। इन सभी लड़ाइयों में ओसामा या मुल्लाह ओमर ने कभी प्रत्यक्ष रूप से हिस्सा नहीं लिया।

किला-ए-जंगी की लड़ाई

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किला-ए-जंगी की लड़ाई अफ़ग़ानिस्तान युद्ध में लड़ी गई अब तक कि सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक थी। अफ़ग़ानिस्तान में नाटो सेना कि सहयोगी नोरथर्न अलायन्स ने कई तालिबान लड़ाकों को किला-ए-जंगी नामक स्थान पर आत्मसमर्पण केलिये बुलाया। तालिबान ने किले में आकर अपने कुछ हथियार सौंप दिए तथा कुछ हथियारों को अपने शरीर में छिपा लिया। नोरथर्न अलायन्स के सैनिकों ने सभी तालिबान लड़ाकों छोड़ने कि बजाय उन्हें एक बंद कमरे में कैद कर लिया। कई घंटों तक कैद में रहने के कारण उन सभी तालिबान लड़ाकों का मनोबल टूट गया और उन्होंने अपने शरीर में छिपाये हथियारों से हमला कर दिया। किले में नार्थर्न अलायन्स के सिपाहियों के अलावा अमेरिकी एजेंसी सीआईए के एजेंट "जॉनी मिचेल स्पेन" भी मौजूद थे। जब तक वो लोग कुछ समझ पाते तब तक तालिबान ने बड़ी मात्रा में उनके सिपाहियों की हत्या कर दी। कई सिपाही किले के दूसरे भाग में कुछ अमेरिकी पत्रकारों के साथ थे जिन्हे धमाकों और गोलियो की आवाज़ ने चौंका दिया था। इस गोली बारी में सीआईए के एजेंट "जॉनी मिचेल स्पेन" को गोली मार दी गयी और उनकी मौत हो गयी। जॉनी अफ़ग़ानिस्तान युद्ध में मारे गए पहले अमरीकी नागरिक थे। जब हमला काफी हद तक वीभत्स हो गया तब अमेरिकी वायु सेना कि मदद ली गयी और थल सेना को बुलाया गया। यह लड़ाई ७ दिनों तक चली और इसमें ८६ तालिबान लड़ाके बचे एवं ५० नोरथर्न अलायन्स के सिपाही मारे गए।

टोरा बोरा की लड़ाई

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टोरा बोरा की पहाड़ियों में हवाई हमले

१२ दिसम्बर २००१ को अमेरिकी सैन्य टुकड़ियों ने टोरा बोरा की पहाड़ियों पर वायु सेना के साथ हमले किया। अमेरिकी सैनिको को टोरा बोरा में ओसामा के छिपे होने की खबर मिली थी। इस आधार पर टोरा बोरा की पहाड़ियों पर हवाई हमले किये तथा थान सेना की टुकड़ियों ने टोरा बोरा की पहाड़ियों पर चढ़ाई कर दी। यह लड़ाई १७ दिसम्बर तक चली। ओसामा के टोरा बोरा की पहाड़ियों में घुमते हुए एक वीडियो जारी हुआ था जो ओसामा के उन पहाड़ियों में छिपे होने का सबसे बड़ा सबूत था। किन्तु यह हमला असफल रहा क्योंकि ओसामा इस हमले के बीच में ही सीमा पार पाकिस्तान भाग निकला था। लेकिन इस हमले केबाद टोरा बोरा कि पहाड़ियों पर अमेरिकी सेना का कब्ज़ा हो गया था।

टाकुर घार की लड़ाई

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टाकुर घार की लड़ाई अमेरिकी सेना और तालिबान के बीच मार्च २००२ में टाकुर घार नामक एक पहाड़ी पर लड़ी गयी थी। इस लड़ाई की शुरुआत टाकुर घार पहाड़ी के ऊपर उड़ रहे एक अमेरिकी हेलीकाप्टर के पहाड़ी पर गिरने के बाद हुई। इस हेलीकाप्टर में बैठे लोगों को बचाने के लिए अमेरिकी सेना ने तालिबान के साथ सीधी टक्कर ली। इस हमले में नेवी सील "नील सी. रोबर्ट" सहित ७ अमेरिकी सैनिक मारे गए और कई घायल हुए। इस लड़ाई को " बैटल ऑफ़ रॉबर्ट्स रिज" के नाम से भी जाना जाता है।

युद्ध की वर्तमान स्तिथि

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युद्ध के प्रारम्भ होने १० साल बाद भी अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के कई इलाकों में आतंकी गतिविधियां देखी जा सकती हैं। हालाँकि यह भी सत्य है कि नाटो सेनाओ के अफ़ग़ान पर आक्रमण के बाद अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को सत्ता से हटा दिया गया जिससे देश में फिर से लोकतान्त्रिक रूप से चुनाव किये गए और देश में एक लोकतान्त्रिक राजनीती की शुरुआत हुई। किन्तु आज भी अफ़ग़ानिस्तान के कई इलाकों में तालिबान और अल कायदा एवं इनसे जुड़े संगठन सक्रिय हैं तथा समय समय पर अफ़ग़ानिस्तान के कई इलाकों में आतंकी हमले कर देश में अशांति का माहौल बनाये हुए हैं। इस युद्ध में न केवल नाटो से जुड़ी सेनाओ ने बल्कि अफ़ग़ानिस्तान के एक स्वतंत्र गुट जिसे "नोरथर्न अलायन्स" के नाम से जाना जाता है ने भी अमेरिका का साथ दिया।

अमरीकी सेना की वापसी

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२ मई २०११ में अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के खात्मे के बाद अमेरिकी सेना अफ़ग़ानिस्तान से हटने का मन बना चुकी थी। इस समय तक अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ग़ान सेना का भी गठन हो चुका था। २२ जून २०११ को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने व्हाइट हाउस से अमेरिकी जनता को सम्बोधित करते हुए अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाने का एलान किया। बराक ओबामा ने अफ़ग़ानिस्तान में बड़े पैमाने पर अमरीकी सेना होने के कारण इस कार्यवाही को एक साथ अंजाम देने कि जगह टुकड़ों में अंजाम देने का एलान किया। ओबामा के मुताबिक सन २०११ तक १०,००० सैनिक टुकड़ियों को वापस बुला लिया जायेगा तथा २०१२ की गर्मियों तक २३,००० टुकड़ियों को वापस बुला लिया जायेगा। सन २०१४ तक अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा पूरी तरह से अफ़ग़ान सेना को सौंप दी जायेगी। हालाँकि अफ़ग़ानिस्तान में अभी पूरी तरह से शांति का माहौल न होने के कारण ये युद्ध समाप्त नहीं हुआ है।

नाटो सेना की भूमिका

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अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी सैन्य संगठन नाटो (NATO-उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) ने भी आतंकवाद के विरुद्ध अभियान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अफगानिस्तान में नाटो ने ‘अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल’ के माध्यम से सैन्य अभियान संचालित किए। आई.एस.ए.एफ. में 48 राष्ट्रों ने सहयोग किया जिसमें सर्वाधिक सैनिक अमेरिका के रहे। वर्ष 2011 में एक समय आई.एस.ए.एफ. के सैनिकों की संख्या अफगानिस्तान में लगभग 1,40,000 तक पहुंच गई थी। अफगानिस्तान में नाटो के सैन्य अभियान में शामिल अमेरिका, ब्रिटेन एवं अन्य सहयोगी राष्ट्रों पर बढ़ते घरेलू दबाव के कारण, जुलाई 2010 में संपन्न ‘काबुल अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ में अफगानिस्तान के 36 प्रादेशिक क्षेत्रों का प्रशासन क्रमिक रूप से वर्ष 2011 से अफगानिस्तान की सेना एवं पुलिस को सौंपने का निर्णय किया गया और वर्ष 2014 तक हस्तांतरण की यह प्रक्रिया पूरी होनी थी। वर्ष 2013 के मध्य से ही अफगान सुरक्षा बलों ने तालिबान के विरुद्ध सैन्य अभियानों का नेतृत्व प्रारंभ कर दिया था। अपनी पूर्व योजना के अनुसार अमेरिका एवं नाटो ने दिसंबर 2014 में अफगानिस्तान में अपने लड़ाकू मिशन का समारोह पूर्वक समापन कर दिया।

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. "Operation Enduring Freedom Fast Facts". CNN. Archived from the original on 16 जुलाई 2017. Retrieved 11 July 2017.
  2. Start of the Taliban insurgency after the fall of the Taliban regime.
  3. "Role of Pakistan in afghan war". Archived from the original on 30 जनवरी 2019. Retrieved 30 जनवरी 2019.
  4. "News – Resolute Support Mission". Archived from the original on 28 फ़रवरी 2015. Retrieved 4 October 2015.
  5. "Forget Nato v the Taliban. The real Afghan fight is India v Pakistan". 26 June 2013. Archived from the original on 29 दिसंबर 2016. Retrieved 16 January 2017 – via The Guardian. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  6. "Taliban storm Kunduz city". The Long War Journal. Archived from the original on 5 फ़रवरी 2016. Retrieved 30 September 2015.
  7. The Taliban's new leadership is allied with al Qaeda Archived 2016-06-17 at the वेबैक मशीन, The Long War Journal, 31 July 2015
  8. "Central Asian groups split over leadership of global jihad". The Long War Journal. 24 August 2015. Archived from the original on 22 नवंबर 2015. Retrieved 27 August 2015. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  9. Rod Nordland; Jawad Sukhanyar; Taimoor Shah (19 June 2017). "Afghan Government Quietly Aids Breakaway Taliban Faction". The New York Times. Archived from the original on 27 अगस्त 2017. Retrieved 6 September 2017.
  10. Matthew DuPée (January 2018). "Red on Red: Analyzing Afghanistan's Intra-Insurgency Violence". Combating Terrorism Center. Archived from the original on 16 नवंबर 2018. Retrieved 18 February 2018. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  11. "Uzbek militants in Afghanistan pledge allegiance to ISIS in beheading video". khaama.com. Archived from the original on 10 मई 2019. Retrieved 30 जनवरी 2019.
  12. "Who is Lashkar-e-Jhangvi?". Voanews.com. 2016-10-25. Archived from the original on 31 जनवरी 2019. Retrieved 2017-06-02.
  13. "ISIS 'OUTSOURCES' TERROR ATTACKS TO THE PAKISTANI TALIBAN IN AFGHANISTAN: U.N. REPORT". Newsweek. August 15, 2017. Archived from the original on 30 जनवरी 2019. Retrieved 30 जनवरी 2019.
  14. "International Security Assistance Force (ISAF): Key Facts and Figures" (PDF). Archived (PDF) from the original on 30 जनवरी 2019. Retrieved 30 जनवरी 2019.
  15. "Resolute Support Mission (RSM): Key Facts and Figures" (PDF). Archived (PDF) from the original on 6 जुलाई 2017. Retrieved 30 जनवरी 2019.
  16. * "अफगानिस्तान युद्ध में अमेरिकी 1999-वर्तमान". cfr.org. Council on Foreign Relations. 2014. Archived from the original on 2 मार्च 2015. Retrieved फरबरी 21, 2015. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help)
  17. David P. Auerswald; Stephen M. Saideman (जनवरी 5, 2014). NATO in Afghanistan: Fighting Together, Fighting Alone. Princeton University Press. pp. 87–88. ISBN 978-1-4008-4867-6. Archived from the original on 25 जनवरी 2016. Retrieved 22 अप्रैल 2018.