अपूर्व

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मीमांसा दर्शन इस बात पर बल देता है कि हम अपने जीवन में जो कर्म करते हैं उसका फल हमें मृत्यु के बाद प्राप्त होता है तथा हमारी आत्मा को उसके अनुसार सुख और दुःख उठाना पड़ता है। मीमांसा में इन कर्मों को ही अपूर्व कहा गया है। अपूर्व ही वह अदृष्ट शक्ति है जिसके कारण हमें कर्मो का फल बाद में प्राप्त होता है।

अपूर्व स्वसंचालित होता है तथा इसकी सत्ता का ज्ञान हमें वेदों से प्राप्त होता है।