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अनिल कुमार बोरो

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अनिल कुमार बोरों
जन्म 9 दिसम्बर 1961 (1961-12-09) (आयु 63)
कहीतमा, असम, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
पेशा प्रोफेसर, विद्वान, लेखक
पुरस्कार

अनिल कुमार बोरों (जन्म 9 दिसंबर 1961) एक भारतीय शिक्षाविद, लेखक और लोककथा विद हैं, जो बोड़ो साहित्य और लोकसंस्कृति के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं। वे गौहाटी विश्वविद्यालय के लोककथा अध्ययन विभाग के प्रमुख हैं। उन्हें 2025 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया।[1][2][3]

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

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अनिल कुमार बोरों का जन्म 9 दिसंबर 1961 को असम के मानस राष्ट्रीय उद्यान के पास कहीतमा गाँव में हुआ। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा एनकेबी हाई स्कूल, कहीतमा से प्राप्त की और आगे की पढ़ाई बी.एच. कॉलेज, हाउली तथा गौहाटी विश्वविद्यालय से की। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर तथा लोककथा अध्ययन में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की।[4][5]

बोरों ने 1988 में डिमोरिया कॉलेज, खेत्री में अंग्रेजी व्याख्याता के रूप में अपने अकादमिक जीवन की शुरुआत की। 2000 में वे गौहाटी विश्वविद्यालय के लोककथा अध्ययन विभाग में शामिल हुए और बाद में विभागाध्यक्ष बने। उनका शोध कार्य लोक साहित्य, उत्तरआधुनिकता और बोडो साहित्य पर केंद्रित है, जिसमें उन्होंने भारत की आदिवासी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।[6][7]

साहित्यिक योगदान

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बोरों ने बोडो लोक साहित्य और संस्कृति पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें और शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। उनके प्रमुख कार्यों में शामिल हैं:

  • अ हिस्ट्री ऑफ बोडो लिटरेचर[8]
  • डेल्फिनी ओंथाई म्वदाई अर्व गुबुन गुबुन खोंथाई – इस कविता संग्रह के लिए उन्हें 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सम्मान और पुरस्कार

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  • पद्म श्री (2025) – साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए[9][10][11]
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (2013)
  • रंगसर साहित्य सम्मान – बोड़ो साहित्य सभा द्वारा प्रदत्त [12]
  • अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सवों में सहभागिता, जैसे ओबिडॉस अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव (पुर्तगाल, 2019), एसओए साहित्य महोत्सव (भुवनेश्वर, 2024)
  • इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर फोक नैरेटिव रिसर्च सम्मेलन, इटली (2018) में शोध पत्र प्रस्तुत

व्यक्तिगत जीवन

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अनिल कुमार बोरों अपने निजी जीवन को सार्वजनिक रूप से साझा नहीं करते हैं। वे लोककथा अध्ययन के क्षेत्र में शोधकर्ताओं और छात्रों का मार्गदर्शन करते हैं और शिक्षा व साहित्य के प्रति समर्पित हैं।

विरासत और प्रभाव

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बोरों का कार्य बोडो संस्कृति और भाषा के संरक्षण में अत्यंत प्रभावशाली रहा है। उनकी लेखनी ने असम की पारंपरिक और लोक साहित्यिक विरासत को प्रलेखित करने और संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।[12]

यह भी देखें

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  1. Tribune, The Assam (2025-01-26). "Five Padma awardees from Assam bring laurels to state". अभिगमन तिथि: 2025-02-03.
  2. "Padma awards 2025: 12 distinguished personalities from northeast conferred prestigious awards". 2025-01-25. अभिगमन तिथि: 2025-02-03.
  3. "Padma Awards 2025 announced". Press Information Bureau. 2025-01-25. अभिगमन तिथि: 2025-06-05.
  4. Digital Desk, Northeast Live (2025-01-26). "Assam Celebrates One Padma Bhushan, 4 Padma Shri In Art, Literature And Culture". अभिगमन तिथि: 2025-02-03.
  5. "3 from northeast to get Sahitya Akademi awards". 2013-12-19. अभिगमन तिथि: 2025-02-03.
  6. Pragyanxetu (2025-01-28). "Anil Kumar Boro ( Padma Shri 2025)". अभिगमन तिथि: 2025-02-03.
  7. Boro, Anil (2014). Folk Literature of the Bodos. N.L. Publications. ISBN 978-81-909739-2-2.
  8. Boro, Anil (2010). A History of Bodo Literature. Sahitya Akademi. ISBN 978-81-260-2807-8.
  9. "Assam's Artistic Luminaries Shine with Padma Awards". अभिगमन तिथि: 2025-02-03.
  10. "Full list of Padma Awards 2025". 2025-01-25. अभिगमन तिथि: 2025-02-03.
  11. "Padma Awards 2025 Notification" (PDF). Padma Awards. Ministry of Home Affairs, Government of India. 2025-04-28. अभिगमन तिथि: 2025-06-05.
  12. "Assam Folklorist-Poet Anil Boro Presented Padma Shri For His Contribution To Bodo Literature". Northeast Today. 2025-04-29. अभिगमन तिथि: 2025-06-05.

बाहरी कड़ियाँ

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