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अतिशोधन

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समाजभाषाविज्ञान में, अतिशोधन एक प्रकार की भाषा अशुद्धि है जो भाषा उपयोग के किसी अनुभूत नियम या पैटर्न के अत्यधिक पालन से उत्पन्न होती है। अतिशोधित भाषा का प्रयोग करने वाला सामान्यतः त्रुटिवश यह मानता है कि शब्द या वाक्य के जिस रूप का वह उपयोग कर रहा है, वह अधिक सही, मानक, औपचारिक या सुसंस्कृत है।[1][2]

भाषिक अतिशोधन की उत्पत्ति तब होती है जब एक वास्तविक या काल्पनिक वैयाकरणिक नियम को अनुपयुक्त संदर्भ में लागू किया जाता है, जिससे "सही" होने के प्रयास में गलत परिणाम सामने आते हैं। स्वाभाविक एवं प्रवृत्तिगत भाषा के प्रयोग से अतिशोधन दोष नहीं उत्पन्न होता है, जैसा कि ओटो जेस्पर्सन और रॉबर्ट जे. मेनर द्वारा माना गया है।[3]

  1. Wilson, Kenneth G. (1993). The Columbia Guide to Standard American English. Columbia University Press. मूल से 20 November 2002 को पुरालेखित.
  2. Labov, William (1991). Sociolinguistic patterns. Conduct and communication series. Philadelphia: University of Philadelphia press. पृ॰ 126. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8122-1052-1.
  3. Menner, Robert J. (1937). "Hypercorrect forms in American English". American Speech. 12 (3): 167–78. JSTOR 452423. डीओआइ:10.2307/452423.