अघोरी बड़हर (मिर्जापुर)

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अघोरी बड़हर राज्य (IAST:बरहरी चन्देल), जिन्हे मिर्जापुर के चन्देल के नाम से भी जानते है उत्तर मध्य तथा ब्रिटिश काल का एक चन्देल राजपूत राजवंश था, जिसने पूर्वी-दक्षिणी विंध्यपर्वत पर राज्य किया पर शासन किया। वे अहीर तथा खरवार रियासत के नरसंहार, बनारस राज्य के भूमिहार के साथ अपने संघर्ष और 1857 के भारतीय विद्रोह में भाग लेने के लिए उल्लेखनीय थे।[1]

मिर्जापुर के चन्देल

अघोरी बड़हर राज्य
13 वीं सदी–1952
Status
  • पूरी तरह से स्वतंत्र (15c.-1948)
राजधानीमिर्जापुर
धर्म
हिंदू धर्म
ऐतिहासिक युगमध्य युग, ब्रिटिश भारत
• स्थापित
13 वीं सदी
• अंत
1952
पूर्ववर्ती
चन्देल

अघोरी बड़हर के चन्देल राजा महोबे के चन्देल साम्राज्य के वंशज थे, जो परिवार में राज की गरिमा बनाए रखने की प्राचीन प्रथा का पालन करते थे। शिलालेखो के अनुसार उन्हे ये रियासत पृथ्वीराज चौहान पर विजय के उपलक्ष में मिली थी जो की 13 वी शताब्दी में चन्देल साम्राज्य के विघठन के बाद स्वतंत्र बन गया।[2][3]

इतिहास[संपादित करें]

अघोरी बड़हर, पूर्वी उत्तर प्रदेश के आधुनिक मिर्जापुर जिले में बिजयगढ़ पर चन्देल राजपूतों के एक परिवार का शासन था, जो रीवा के बरहर चन्देलों के वंशज थे जिन्हे सम्राट परमर्दिदेव के साथ हुए युद्ध में विजयश्री के उपलक्ष में रीवा की जमींदारी मिली थी। ये 13 वी शताब्दी में चन्देल साम्राज्य के विघठन के बाद स्वतंत्र शासक बन गए। राज्य स्थापना के वक्त जब के अन्य सामंत भी स्वतंत्र हो गए थे तो इन्हे अपनी प्रभुता और राज्य विस्तार के लिए उनके साथ युद्ध करना पड़ा। उसी समय कुछ अन्य जनजातियों ने चन्देल साम्राज्य के सामंत जो स्वतंत्र हो गए थे उनकी हत्या कर उनके राज्य पर कब्जा कर लिए जिसके बाद यहां के चन्देलो ने उनमें से खरवारो, अहिरो इत्यादि जनजातियों के जमींदारों का नरसंहार कर अपना प्रभुत्व स्थापित किया वही कांतित विजयपुर के गहरवार राजवंश से मित्रता की। मिर्जापुर के चन्देलो ने अघोरी बड़हर का किला बना उसे अपनी राजधानी बनाया।[4][5] औरंगजेब के समय चन्देलो और गहरवारो की संयुक्त सेना ने मुगलों की सेना को परास्त किया तथा उनके सय्यद जमींदारों की जमींदारी जला कर तबाह कर दिया कई मुगलों को जिंदा जला डाला। ब्रिटिशों के समय में उन्होंने बनारस राज्य के भूमिहार के साथ संघर्ष संघर्ष किया जिसका अंत भूमिहारों पर चन्देलो की विजय पर हुआ। तत्पश्चात यहां के राजवंश ने 1857 के भारतीय विद्रोह में उल्लेखनीय भाग दिया अपना।[6]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Downs, Troy (1992). "Rajput revolt in Southern Mirzapur, 1857–58". Journal of South Asian Studies. 15 (2): 29–46. डीओआइ:10.1080/00856409208723166.
  2. The Indian Law Reports: Allahabad Series : Containing Cases Determined by the High Court at Allahabad and by the Judicial Committee of the Privy Council on Appeal from that Court and from the Court of the Judicial Commissioner of Oudh (अंग्रेज़ी में). Superintendent, Government Press, and pub. under the authority of the Governor General in Council. 1916.
  3. The Indian Law Reports, Allahabad Series (अंग्रेज़ी में). Published under the authority of the Government of Uttar Pradesh by the Superintendent, Printing and Stationery. 1916.
  4. The Indian Law Reports: Allahabad Series : Containing Cases Determined by the High Court at Allahabad and by the Judicial Committee of the Privy Council on Appeal from that Court and from the Court of the Judicial Commissioner of Oudh (अंग्रेज़ी में). Superintendent, Government Press, and pub. under the authority of the Governor General in Council. 1916.
  5. The Indian Law Reports, Allahabad Series (अंग्रेज़ी में). Published under the authority of the Government of Uttar Pradesh by the Superintendent, Printing and Stationery. 1916.
  6. Downs, Troy (1992). "Rajput revolt in Southern Mirzapur, 1857–58". Journal of South Asian Studies. 15 (2): 29–46. डीओआइ:10.1080/00856409208723166.