अंबिकादत्त व्यास

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(अंबिका दत्त व्यास से अनुप्रेषित)

अम्बिकादत्त व्यास (सन् १८५८ ई. -- १९०० ई. ) भारतेन्दु मण्डल के प्रसिद्ध कवि थे। वे ब्रजभाषा के कुशल और सरस कवि थे। इन्होंने कवित्त, सवैया की प्रचलित शैली में ब्रजभाषा में रचना की। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के समकालीन हिन्दी सेवियों में पंडित अंबिकादत्त व्यास बहुत प्रसिद्ध लेखक और कवि हैं।

कवि अम्बिकादत्त अपनी असाधारण विद्वत्ता तथा प्रतिभा के कारण समकालीन विद्वन्मण्डली में 'भारतभास्कर','साहित्याचार्य', 'व्यास' आदि उपाधियों से भूषित थे इन्हें 19वीं सदी का बाणभट्ट माना जाता है। श्री व्यास जीवनपर्यन्त साहित्याराधना में लीन रहे। आधुनिक संस्कृत रचनाकारों में सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त एवं अलौकिक प्रतिभासंपन्न साहित्याचार्य श्री अंबिकादत्त व्यास जी हैं।

अम्बिकादत्त व्यास का जन्म जयपुर में हुआ था। इनके पूर्वज भानपुर ग्राम (जयपुर राज्य) के निवासी थे किन्तु इनके पिता वाराणसी जाकर वहीं बस गए। आपने 'बिहारी विहार' में सक्षिप्त निज—वृतान्त स्वयं लिखा है। जिसके अनुसार राजस्थान में जयपुर से लगभग 22 मील पूर्व की ओर 'रावत जी का धूला' नामक अत्यन्त प्रसिद्ध गांव है। राजा मानसिंह के दूसरे पुत्र दुर्जन सिंह ने धूला को ही अपने राज्य की राजधानी बनाया। इसी वंश में आगे चलकर राजा दलोल सिंह हुए। इनके राज्य सभा पंडित श्री गोविंद रामजी थे। आप के प्रपौत्र पंडित राजारामजी के दो पुत्र थे — दुर्गादत्त देवीत्त। पण्डित अम्बिकादत्त व्यास के पिता का नाम दुर्गादत्त था। वे कभी जयपुर में रहते थे, कभी बनारस। व्यासजी का जन्म जयपुर में ही चैत्र शुक्ल अष्टमी संवत् 1915 (1858) में हुआ।

12 वर्ष की अवस्था में ‘काशी कवितावर्धिनी सभा’ ने 'सुकवि' की उपाधि से इन्हें सम्मानित किया था। व्यासजी, राजकीय संस्कृत महाविद्यालय पटना में अध्यापक थे, और उक्त पद पर जीवनपर्यन्त रहे।

बयालीस वर्ष की अवस्था में ही 'महाकवि' का सम्मान प्राप्त कर व्यासजी सोमवार, मार्ग शीर्ष त्रयोदशी, संवत् 1957 को अपने पीछे एक नवर्षीय पुत्र, एक कन्या और विधवा पत्नी को असहाय छोड़कर पच्चतत्व को प्राप्त हो गए।

अम्बिकादत्त की कृतियां[संपादित करें]

इन्होंने हिन्दी और संस्कृत दोनों भाषाओं में समान अधिकार के साथ रचनाएं की हैं। इनके द्वारा प्रणीत ग्रथों की संख्या 75 है। व्यासजी ने छत्रपति शिवाजी के जीवन पर 'शिवराजविजयम्' नामक गद्यकाव्य की रचना की है, जो 'कादम्बरी' की शैली में रचित है। पंडित जितेन्द्रियाचार्य द्वारा संशोधित 'शिवराजविजयम्' की, 6 आवृत्तियां प्रकाशित हो चुकी हैं। इनका 'सामवतम्' नामक नाटक 19 वीं शती का श्रेष्ठ नाटक माना जाता है।

प्रमुख काव्य-कृतियां
  • गणेशशतकम्
  • शिवविवाह (खण्डकाव्य),
  • सहस्रनामरामायणम् -- इसमें एक हजार श्लोक हैं। यह 1898ई. में पटना में रचा गया।
  • पुष्पवर्षा (काव्य),
  • उपदेशलता (काव्य)
  • साहित्यनलिनी,
  • रत्नाष्टकम् (कथा) -- यह हास्यरस से पूर्ण कथासंग्रह है।
  • कथाकुसुमम् (कथासंग्रह)
  • शिवराजविजय (उपन्यास) -- 1870 में लिखा गया, किन्तु इसका प्रथम संस्करण 1901 ई. में प्रकाशित हुआ।
  • समस्यापूर्तयः, काव्यकादम्बिनी ( ग्वालियर में प्रकाशित)
  • सामवतम् -- यह नाटक, पटना में लिखा गया। इसकी प्रेरणा महाराज लक्ष्मीश्वरसिंह से प्राप्त हुई. थी। यह स्कन्दपुराण की कथा पर आधारित है तथा इसमें छह अंक हैं।
  • ललिता नाटिका,
  • मर्तिपूजा,
  • गुप्ताशुद्धिदर्शनम्,
  • क्षेत्र-कौशलम्,
  • प्रस्तारदीपिका
  • सांख्यसागरसुधा।
प्रकाशित कृतियाँ
  • बिहारी बिहार (१८९८ ई.)
  • पावस पचास,
  • ललिता (नाटिका)१८८४ ई.
  • गोसंकट (१८८७ ई.)
  • आश्चर्य वृतान्त १८९३ ई.
  • गद्य काव्य मीमांसा १८९७ ई.,
  • हो हो होरी