अंतरराष्ट्रीय तापनाभिकीय प्रायोगिक संयंत्र

अंतर्राष्ट्रीय तापनाभिकीय प्रायोगिक भट्ठी (अंग्रेज़ी:इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (आईटीईआर)) ऊर्जा की कमी की समस्या से निबटने के लिए भारत[1] सहित विश्व के कई राष्ट्रों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सहयोग से[1] मिलकर बनाया जा रहा संलयन नाभिकीय प्रक्रिया[2] पर आधारित ऐसा विशाल रिएक्टर है, जो कम ईंधन की सहायता से ही अपार ऊर्जा उत्पन्न करेगा।[3] सस्ती, प्रदूषणविहीन और असीमित ऊर्जा पैदा करने की दिशा में हाइड्रोजन बम के सिद्धांत पर इस नाभिकीय महापरियोजना को प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया है।[4] इसमें संलयन से उसी प्रकार से ऊर्जा मिलेगी जैसे पृथ्वी को सूर्य या अन्य तारों से मिलती है।[5]
प्रक्रिया
[संपादित करें]इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन के परमाणुओं को १० करोड़ डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तक गर्म किया जाता है, इस तापमान पर हाइड्रोजन के परमाणु आपस में जुड़कर हीलियम के परमाणु को जन्म देते हैं और भारी ऊर्जा पैदा होती है। एक किलोग्राम द्रव्यमान के संलयन से एक करोड़ किलोग्राम पेट्रोलियम ईंधन के बराबर ऊर्जा पैदा हो सकती है।[4] यह प्रयास अभी निर्माणाधीन है। परियोजना के निदेशक जर्मनी के नोबेर्ट होल्टकाम्प है। इस परियोजना को कृत्रिम सूर्य नाम भी दिया गया है।[2] आईटीईआर की योजना १९८५ में यूरोप, अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ और जापान के सहयोग से शुरू हुई थी। सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस इस परियोजना का भागीदार बना। वर्ष १९९९ में अमेरिका इस अभियान से हट गया था, लेकिन २००३ में वह पुन: इस अभियान में शामिल हुआ। भारत आधिकारिक रूप से इस परियोजना में ६ दिसम्बर, २००५ को शामिल हुआ था। भारत को इस परियोजना में शामिल करने के बाद दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी का इस में प्रतिनिधित्व हो जाएगा।[4] वैज्ञानिकों के अनुसार, आईटीईआर के निर्माण में लगभग दस वर्ष लगेंगे। २८ जून, २००५ को यह घोषणा की गई थी कि इसका निर्माण फ्रांस में होगा। इसके बाद २१ नवंबर, २००६ को सात देशों ने इस परियोजना में फंड देने की घोषणा की। इसी दिन रिएक्टर बनाने के लिए इन देशों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर भी किये थे। इस बात की आशा की जा रही है कि इसमें पहला प्लाज्मा ऑपरेशन २०१८ में संभव होगा।

इस भट्ठी में प्रयोग की जाने वाली प्रक्रिया में मुख्यत: यूरेनियम-२३५ के नाभिक को न्यूट्रान कणों की धार से विखंडित किया जाता है। यूरोनियम-२३५ के नाभिक में कुल ९२ प्रोटान और १४३ न्यूट्रान कण होते हैं। हर विखंडन से नाभिक में प्रोटान और न्यूट्रान को बांध कर रखने वाली २०० मिली इलेक्ट्रान वोल्ट के बराबर ऊर्जा मुक्त होती है। इसी ऊर्जा से विद्युत उत्पादन किया जाता है। यहां यूरेनियम-२३५ के नाभिक को ताप नाभिकीय विधि से भी विखंडित किया जा सकता है या यूरेनियम की जगह प्लूटोनियम २३९ का भी उपयोग हो सकता है। नाभिक का चाहे जिस तरह विखंडन किया जाए, इससे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक ऐसी अदृश्य किरणें भी पैदा होती हैं, जिन्हें रेडियोधर्मी विकिरण कहा जाता है। यह प्रतिक्रिया नाभिकीय शृंखला अभिक्रिया कहलाती है।[2] लगभग ३०मीटर की ऊंचाई वाला भट्ठी एक पिंजड़े के आकार में लगे कई अत्यंत शक्तिशाली चुंबकों की सहायता से हाइड्रोजन गैस के एक मिश्रण को १५ करोड़ डिग्री सेल्सियस तक गर्म करेगा। यह मिश्रण हाइड्रोजन के ड्यूटेरियम और ट्रीटियम कहलाने वाले दो आइसोटोपों से प्राप्त किया जायेगा जिन्हें भारी पानी और बहुत भारी पानी भी कहा जाता है। इस अकल्पनीय तापमान पर ही हाइड्रोजन के नाभिक यह गति प्राप्त कर पाते हैं जिस गति पर आपस में टकराने से वे जुड़कर हीलियम का नाभिक केन्द्र बन सकते हैं। इस ऊंचे तापमान पर यदि उन्हें बार बार टकराया जाये तो वे एक दूसरे के साथ गल मिल जाते हैं। इससे अतुलनीय मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। उनके जुडने से जो ऊर्जा मुक्त होगी, वह बिजली पैदा करने वाले टर्बाइन को चलायेगी। वैज्ञानिक कहते हैं कि संलयन रिएक्टर से प्राप्त ऊर्जा साफ सुथरी, अक्षय और निरापद होगी। उससे पर्यावरण या जलवायु को भी कोई हानि नहीं पहुंचेगी।
तथ्य
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इस परियोजना के भागीदार यूरोपियन यूनियन, जापान, चीन, रूस, दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका[1] और अमेरिका हैं। कनाडा पहले इस अभियान में शामिल था, लेकिन २००३ में वह अलग हो गया। नाभिकीय संलयन की इस प्रक्रिया में दो हल्के नाभिक जुड़कर बड़े नाभिक का निर्माण करेंगे जिससे अपार ऊर्जा मुक्त होगी और इसका रूपांतरण कर विद्युत ऊर्जा में इसका उपयोग किया जा सकेगा। इसके अलावा इस प्रतिक्रिया में ऊर्जा उत्पादन के साठ-साथ अन्य तरीकों की भांति कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन नहीं होगा, जिससे ग्रीन हाउस प्रभाव की समस्या से भी मुक्ति मिलेगी।[5] हमें जीवाश्म ईंधन पर अनंतकाल तक निर्भर नहीं रहना होगा। भट्ठी की नाभिकीय प्रतिक्रिया समीकरण इस प्रकार से है:
वर्ष २००० में ही इस परियोजना की कुल लागत ४.५७ अरब यूरो आंकी गयी थी। इसके निर्माण में अभी लगभग दस वर्ष और लगेंगे। यूरोपीय संघ और फ्रांस इस लागत का आधा वहन करेंगे। शेष राष्ट्र दस-दस प्रतिशत वहन करेंगे। इस परियोजना के महानिदेशक का पद जापान को मिलना तय हुआ है। इसके अलावा इस संलयन भट्ठी के डेमोंस्ट्रेशन की मेजबानी भी जापान ही करेगा।[5] आई। टी.ई.आर फ्यूजन रिसर्च सेंटर के अलावा स्विट्ज़रलैंड व फ्रांस की सीमा पर स्थित लार्ज हैड्रान कोलाइडर और हाइपर लेसर फ्यूजन फैसिलिटी यूरोप के दूसरे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट हैं जो विज्ञान की सीमाओं को और आगे तक ले जाएंगे।[6]
प्रमुख वैशिष्ट्य
[संपादित करें]आईटीईआर के प्रमुख वैशिष्ट्य इस प्रकार हैं:
- थर्मल संलयन ऊर्जा: 500 मेगावाट
- बिजली की खपत: 500 मेगावाट
- प्लाज्मा के लिए बिजली शक्ति: 50 मेगावाट
- कार्य के लिए विद्युत शक्ति: 120 मेगावाट
- लघु प्लाज्मा त्रिज्या : 2 मीटर
- दीर्घ प्लाज्मा त्रिज्या : 6.20 मीटर
- प्लाज्मा की ऊंचाई: 6.80 मीटर
- प्लाज्मा का आयतन : 840 m³
- प्लाज्मा धारा : 15 मिलियन अम्पीयर
- टोरायडल चुम्बकीय क्षेत्र : 5.3 टेस्ला
- प्लाज्मा समय: 6 मिनट प्रति घंटे
- ऊर्जा दक्षता : क्यू 10 = (प्लाज्मा द्वारा आपूर्ति की ऊर्जा और बाहरी प्लाज्मा को बिजली की आपूर्ति के बीच का अनुपात).
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ इ "आईएईए-आईटीईआर के बीच समझौता". याहू जागरण. १४ अक्टूबर. Archived from the original (एचटीएम) on 8 नवंबर 2012. Retrieved 16 सितंबर 2009.
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(help) - ↑ अ आ इ "..तो कभी धरती का होगा अपना सूरज". दैनिक भास्कर. १७ नवंबर.
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(help)CS1 maint: year (link)[मृत कड़ियाँ] - ↑ प्रायोगिक परमाणु संयत्र की परियोजना पर चल रही बातचीत में भारत की भागीदारी का समर्थन। वॉयस ऑफ अमेरिका।२ दिसम्बर, २००५ (हिन्दी)।
- ↑ अ आ इ "चीन का सब से बड़ा पुस्तकालय, आईटीईआर समझौता, चीन में जनगणना". Archived from the original on 4 मार्च 2016. Retrieved 16 सितंबर 2009.
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(help) - ↑ अ आ इ "क्या है आईटीईआर?". गौर-तलब. अमर उजाला.
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(help)[मृत कड़ियाँ] - ↑ "अब यूरोप बना साइंस का 'मक्का'". नवभारत टाइम्स. १३ सितंबर. Archived from the original on 14 सितंबर 2008. Retrieved 16 सितंबर 2009.
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इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
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विकिसमाचार पर संबंधित समाचार देखें: France secures site for 10 billion euro nuclear fusion research project |
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विकिमीडिया कॉमन्स पर आई। टी.ई.आर से सम्बन्धित मीडिया है। |
निर्देशांक: 43°41′15″N 5°45′42″E / 43.68750°N 5.76167°E
- ITER गृह स्थल, इसमें शैक्षिक उद्देश्य हेतु चित्र एवं आरेख उपलब्ध हैं।
- ITER-भारत
- अक्षय ऊर्जा स्रोत की तलाश[मृत कड़ियाँ]। समय लाइव।१४ मार्च, २००९
- अब धरती पर पैदा होगी सूर्य की ऊर्जा (नवभारत टाइम्स)
- धरती पर उगेंगे 'ना डूबने वाले' सूरज (जागरण)