गरीब दास

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

संत गरीब दास (1717-1778) भक्ति और काव्य के लिए जाने जाते हैं। गरीब दास ने एक विशाल संग्रह की रचना की जो सदग्रंथ साहिब के नाम से प्रसिद्ध है। गरीब दास साहेब ने सद्गुरु कबीर साहेब की अमृतवाणी का विवरण किया जिसे रत्न सागर भी कहते हैं। अच. ऐ. रोज के अनुसार गरीबदास की ग्रन्थ साहिब पुस्तक में ७००० कबीर के पद लिए गए थे और १७००० स्वयं गरीब दास ने रचे थे। गरीबदास का दर्शन था कि राम में और रहीम में कोई अन्तर नहीं है।[1]बाबा गरीबदास की समाधि स्थल गाँव छुडानी, हरियाणा और जिला सहारनपुर उत्तर प्रदेश में आज भी सुरक्षित है। संत गरीब दास जी को 10 वर्ष की आयु में कबीर परमात्मा स्वयं आकर मिले थे, उनको अपना ज्ञान बताया।

आध्यात्मिक सफर[संपादित करें]

संत गरीबदास जी महाराज जी अपने खेतों में गायों को चरा रहे थे, तब कबीर साहिब जी सतलोक से शरीर आए जिंदा महात्मा के रूप में और गरीब दास जी के पास पहुंचे। गरीब दास जी तथा अन्य ग्वालों ने कबीर साहिब जी को कुछ खिलाने पिलाने के लिए कहा तब कबीर साहिब जी ने कहा, मैं कुंवारी गाय का दूध पीता हूं तब गरीब दास जी एक छोटी बछिया लेकर आए उसके ऊपर कबीर साहिब जी ने आशीर्वाद भरा हाथ रखा तो कुंवारी गाय दूध देने लगी और वह दूध कबीर साहिब जी ने पिया तथा गरीब दास जी महाराज ने भी प्रसाद के रूप में वह दूध पिया। उसके बाद गरीब दास जी महाराज को कबीर साहिब जी ने प्रथम मंत्र दिया तथा सतलोक की सैर कराई। गरीब दास जी के शरीर को मृत जानकर गांव वालों ने उनकी चिता जलाने की तैयारी करने लगे अचानक चिता की लकड़ियां टूट गई और गरीब दास जी शरीर में आए और उन्होंने फिर कबीर परमात्मा का ज्ञान अपने मुख कमल से वाणियों के माध्यम से उच्चारित किया।

गरीब, अलल पंख अनुराग है, सुन्न मण्डल रहै थीर।

दास गरीब उधारिया, सतगुरु मिले कबीर।।

गरीब, सुन्न बेसुन्न सैं अगम है, पिण्ड ब्रह्मण्ड सैं न्यार।

शब्द समाना शब्द में, अवगत वार न पार।।

गरीब, बंक नाल के अंतरे, त्रिवैणी के तीर।

जहां हम सतगुरु ले गया, बन्दी छोड़ कबीर।।

बोध दिवस[संपादित करें]

फाल्गुन शुुक्ला द्वादशी सम्वत् १७८४ सन् १७२७ के दिन गरीबदास जी को कबीर परमात्मा मिले तथा ऊपर के सभी लोकों को दिखाया तथा फिर से शरीर में छोड़ दिया। तभी से वे उसी ज्ञान के पद गाने लगे जो ज्ञान कबीर साहेब ने दिया था तथा कबीर सागर में लिपिबद्ध है। और इस दिन को गरीबदास जी का बोध दिवस के रूप मे मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह उत्सव सतलोक आश्रम में मनाया जाता है।[2]

जीवन परिचय[संपादित करें]

संत गरीब दास जी के जीवन परिचय का अधिकांस विवरण लेखक भलेराम बेनीवाल (2008) की पुस्तक - जाट योद्धाओं का इतिहास से लिया गया है। इतिहासकार भलेराम बेनीवाल[3]के अनुसार गरीब दास महाराज का जन्म बैशाख पूर्णिमा के दिन संवत 1774 (1717) को चौधरी बलराम धनखड़ के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम रानी था। इनके पिता बलराम धनखड़ जो अपनी ससुराल छुडानी (रोहतक) में अपना गाँव करौथा छोड़कर आ बसे थे। आपके नानाजी का नाम चौधरी शिवलाल था वे अथाह सम्पति के मालिक थे। उनके घर कोई लड़का नहीं हुआ था। केवल एक लड़की रानी थी जिसका विवाह करौथा निवासी चौधरी हरदेव सिंह धनखड़ के पुत्र बलराम से कर दिया. श्री बलराम अपने ससुर शिवलाल के कहने पर अपना गाँव करौथा छोड़कर गाँव छुडानी में घर जमाई बन कर रहने लगे. तब वर्ष के बाद रानी से एक रत्न पैदा हुए. जिसका नाम गरीबदास रखा गया।

कबीर परमेश्वर जी के मिलने के बाद में, संत गरीबदास को बचपन से ही वैराग्य हो गया था। परमेश्वर भक्ति, स्पष्टवादिता तथा निर्भीकता के लिए वे बाल्यकाल से ही प्रसिद्द थे। इन्होने आध्यात्मिकता का बड़ा प्रचार किया। संत गरीबदास का विवाह नादर सिंह दहिया, गाँव बरौना जिला सोनीपत की पुत्री देवी से हुआ था। इससे इनको चार पुत्र जेतराम, तुरतीराम, अन्गदेराम और आसाराम तथा दो पुत्रियाँ दिलकौर और ज्ञानकौर पैदा हुई।

संत गरीबदास के दूसरे पुत्र तुरतीराम छुडानी की गद्दी पर बैठे जो 40 वर्ष तक आसीन रहे. सन 1817 में इनका स्वर्गवास हो गया। इनकी दोनों पुत्रियाँ पूरी आयु कंवारी रहकर ईश्वर भक्ति करती रही. एक बार आपको मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह रंगीला (1719 -1748) ने आशीर्वाद लेने के लिए दिल्ली बुलाया। आपने बादशाह के सामने तीन बातें रखी.

  • 1. सम्पूर्ण राज्य में गोवध बंद करो.
  • 2. दूसरे धर्मियों पर अत्याचार बंद करो.
  • 3. किसानों के अन्न पर टैक्ष बंद करो व अकाल ग्रस्तों को लगान में छूट दो.

आपकी तीनों बातें बादशाह ने मानली तो आपने आशीर्वाद दिया "जो कोई माने शब्द हमारा, राज करें काबुल कंधारा" परन्तु मुल्लाओं ने कह कर "काफिर का कहा मानना नापाक हो जाता है," शाह को तीनों बातें मानने से रोक दिया. बंदी बनाने तक का षडयंत्र रचा गया। परन्तु जब महाराज गरीबदास को इसका पता चला तो वह सेवकों सहित दिल्ली छोड़ गए तथा यह अभिशाप दे गए कि "दिल्ली मंडल पाप की भूमाधरती नाल जगाऊ सूभा" अर्थात दिल्ली पाप की भूमि बन गई है और यहाँ पर शत्रुओं के घोडों के खुरों की धूल उड़कर रहेगी. आपके अभिशाप के अनुसार अगले वर्ष ऐसा ही हुआ। नादिरशाह ने दिल्ली पर धावा बोल कर इसे खूब लूटा तथा कत्ले आम किया।

संत गरीबदास जी कबीर साहेब जी के अनुयायी थे। वे ग्रामीणों को उपदेश करते थे

"गरीब गाड़ी बाहो धर रहो. खेती करो, खुशहाल साईं सर पर रखिये तो सही भक्ति हरलाल"

उन्होंने आगे कहा

"दास गरीब कहे दर्वेशा रोटी बाटों सदा हमेशा."

आपकी 12 बोरियों का विशाल संग्रह गरीबग्रंथ के नाम से प्रसिद्द है। जिसे रत्न सागर भी कहते हैं। इन्होने दिल्ली, हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी आदि के मठ तथा कुटियाँ बनवाई थी। इन्ही के नाम हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और गुजरात में लगभग 110 गरीबदास के नाम से आश्रम हैं। आपने 1788 में शरीर त्याग दिया और सतलोक चले गए .

संत गरीब दास जी की अमृतवाणी[संपादित करें]

संत गरीब दास जी ने अमृतवाणी में सप्ताह के सभी दिनों का अलग-अलग वर्णन किया है। अन्तर साधना ही मनुष्य मात्र का परम लक्ष्य है जिसकी और सतगुरु महाराज जी ने निम्नानुसार संकेत किया है।[4]

  • "सातों बार समूल बखानो, पहर घड़ी पढ़ ज्योतिष जानो." - सतगुरु जी महाराज कहते हैं। सभी दिनों हमारा क्या ज्योतिष कहता है, वही मैं वर्णन करता हूँ.
  • "इतवार अन्तर नहीं कोई, लगी चांचरी पद में सोई." - रविवार का दिन तभी शुभ मंगलकारी होता है जब जीव की वृति चांचरी मुद्रा द्वारा सत्य पद में लगी रहे.
  • "सोम मंगल करो दिन राती, दूर करो न दिल की काती." - सोमवार के दिन हमारा ज्योतिष यही संकेत करता है कि दिन रात सचेत होकर अपने अमोलक स्वासों की संभाल करो.
  • "मंगल मन की माला फेरो, चौदह कोटि जीत जम जेरो." - मंगलवार के दिन मानसिक जाप अर्थात शब्द का सुरती से अभ्यास करते हुए स्वास रुपी माला को फेरो. मानसिक जप से यमराज के चौदह करोड़ यमदूत पर विजय पाकर परम पद की प्राप्ति करो.
  • "बुध बिनानी विद्या दीजे, सत सुकृत निज सुमरण कीजे." - बुधवार के दिन सत स्वरुप ईश्वर का सुमिरन करते हुए ईश्वर ब्रह्म-विद्या अर्थात विवेक मान की मांग करें.
  • "बृहस्पति भ्यास भये वेरागा, तांते मन राते अनुरागा." - जो मनुष्य गुरुवार के दिन वैराग्य सहित स्वास द्वारा सुरती शब्द का अभ्यास करता है उसी का मन पारब्रह्म प्रभु के प्रेम में निमग्न होता है।
  • "सनीचर स्वासा मांहि समोया, जब हम मक्र्तार मग जोया." सतगुरु देव कहते हैं कि शनिवार के दिन हमने सुरती को शब्द में मिलकर स्वास द्वारा जब ध्यान किया जाता है तब हमने मक्रतार मार्ग को देखा .

II संत गरीबदास की बाणी II [5]

  • अमर करूं सतलोक पठाँऊ,, ताते बन्दी छोड़ कहा I

हम ही सतपुरुश दरवानी, मेट्टू उत्पति आवाजानी I

  • जो कोई कहा हमारा माने, सार शब्द कुं निश्चय आने I

हम ही शब्द शब्द की खानी, हम अविगत प्रवानी I

  • हमरे अनहद बाजे बाजे, हमरे किये सभे कुछ साजे I

हम ही लहर तरंग उठावे, हम ही प्रगट हम छिप जावे I

  • हम ही गुप्त गुह्ज गम्भीरा, हम ही अविगत हमे कबीरा I

हम ही गरजे, हम ही बरषे, हम ही कुलफ जड़े हम निरखे I

  • हम ही सराफ जोहरी कहिया, हमरे हाथ लेखन सब बहिया I

यह सब खेल हमरे किये, हमसे मिले सो निश्चय जीये I

  • हम ही अदली जिन्दा जोगी, हम ही अमी महारस भोगी I

हमरा भेद न जाने कोई, हम ही सत्य शब्द निर्मोही I

  • ऐसा अदली दीप हमारा, कोटि बैकुण्ठ रूप की लारा I

संख पदम एक फुनि पर साजे, जहाँ अदली सत्य कबीर विराजे I

  • जहाँ कोटिक विष्णु खड़े कर जोरे, कोटिक शम्भु माया मोरे I

जहाँ संखो ब्रह्म वेद उचारी, कोटि कन्हेया रास विचारी I

  • हम है अमर अचल अनरागी, शब्द महल में तारी लागी I

दास गरीब हुक्म का हेला, हम अविगत अदली का चेला I

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North West Frontier Province By H. A. Rose, IBBETSON, Maclagan, p. 841
  2. "संत गरीबदास जी बोध दिवस". news.jagatgururampalji.org. अभिगमन तिथि 2022-03-05.
  3. भलेराम बेनीवाल (2008): जाट योद्धाओं का इतिहास (Jāt Yodhāon kā Itihāsa), p.646-647
  4. Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Adhunik Jat Itihas (in Hindi) (The modern history of Jats), Agra 1998, Section 9, p.81
  5. "Satsahib.org". मूल से 3 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 जून 2020.