जींद

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
जींद
Jind
{{{type}}}
जींद is located in हरियाणा
जींद
जींद
हरियाणा में स्थिति
निर्देशांक: 29°19′N 76°19′E / 29.31°N 76.32°E / 29.31; 76.32निर्देशांक: 29°19′N 76°19′E / 29.31°N 76.32°E / 29.31; 76.32
ज़िलाजींद ज़िला
प्रान्तहरियाणा
देश भारत
जनसंख्या
 • कुल1,67,592
भाषा
 • प्रचलितहरियाणवी, हिन्दी
समय मण्डलIST (यूटीसी+5:30)
पिनकोड126102
टेलीफोन कोड1681
वाहन पंजीकरणHR-31, HR-56
लिंगानुपात911 /
साक्षरता दर75%
वेबसाइटwww.jind.nic.in
जींद जंक्शन रेलवे स्टेशन
जींद इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग

जींद (Jind) भारत के हरियाणा राज्य के जींद ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िली का मुख्यालय भी है।[1][2][3]

विवरण[संपादित करें]

महाभारत की कई कथाएं जीन्द से जुड़ी हुई हैं। इसके अलावा वामन पुराण, नारद पुराण और पद्म पुराण में भी जीन्द का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि महाभारत काल में पाण्डवों ने यहां पर विजय की देवी जयंती देवी के मन्दिर का निर्माण किया था। युद्ध में कौरवों को हराने के लिए उन्होंने इसी मन्दिर में पूजा की थी। देवी के नाम पर ही इसका नाम जयंतापुरी रखा गया था। समय के साथ इसका नाम जयंतापुरी से बदलकर जीन्द हो गया।

जीन्द में पर्यटक रानी तालाब, अर्जुन स्टेडियम, दूध प्लांट, पशुओं का चारा प्लांट, बुलबुल रेस्टोरेन्ट और अनाज मण्डी घूमने जा सकते हैं। इनके अलावा पर्यटक अनेक पवित्र स्थलों की यात्रा कर सकते हैं और घूमने के साथ-साथ तीर्थाटन का लाभ भी उठा सकते हैं। जींद शहर ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जींद के राजा गणपत सिंह को 1763 ई. में अफगानिस्तान के गवर्नर जॉइन खान ने राजा बनाया था।

इतिहास[संपादित करें]

जींद के बारे में मान्यता है कि इसकी स्थापना महाभारत महाकाव्य के पांडवों ने की थी, जिन्होंने यहाँ एक मंदिर बनवाया था, जिसके इर्द-गिर्द जींद (जैंतपुरी) नगर बसा था। जींद पहले 18वीं शताब्दी में एक सिक्ख सरदार द्वारा स्थापित पंजाब के फुलकियाँ रजवाड़ों में से एक था।

यहाँ पर स्थित सुविख्यात जयन्ती देवी मंदिर के नाम से इस नगर का नाम जींद पड़ा है। पांडवों ने महाभारत का युद्ध लड़ने से पहले अपनी सफलता के लिए 'विजय देवी-जयन्ती देवी' मंदिर का निर्माण करके श्रद्धापूर्वक देवी की आराधना की। जयन्ती देवी की आराधना के बाद ही पांडवों ने कौरवों के विरुद्ध सत्य समर्पित महासंग्राम किया, जो महाभारत के रूप में विश्वविख्यात हुआ। पुरातन भौगोलिक स्थिति में वर्तमान जींद जिला कुरुक्षेत्र का अभिन्न अंग रहा है।

कृषि और खनिज[संपादित करें]

यह क्षेत्र नहरों और नलकूपों द्वारा विस्तृत रूप से सिंचित है। गेहूँ व चावल प्रमुख फ़सलें हैं, अन्य फ़सलों में बाजरा, तिलहन, चना और गन्ना शामिल हैं। जींद एक महत्त्वपूर्ण स्थानीय कृषि बाज़ार है। जींद जिले की भूमि घग्घर और यमुना नदी के पानी मे बहकर आई मिटटी से बनी है, जिसे एल्युवियल या आयोलियन भूमि कहा जाता है। जिले में लगभग 272 हजार हेक्टेयर भूमि खेती योग्य है।यहाँ की प्रमुख नहर पश्चिमी यमुना नहर है।जिले में मुख्य रूप से शीशम, कीकर, सफेदा(यूकेलिप्टस) आदि वृक्ष पाए जाते हैं।

उद्योग और व्यापार[संपादित करें]

यहाँ के उद्योगों में सूती वस्त्र, चीनी, स्टील की ट्यूब, मशीनों के पुर्ज़ों के साथ-साथ कपास ओटने, इस्पात की री-रोलिंग और हथकरघे से बुनाई शामिल हैं।

यातायात और परिवहन[संपादित करें]

दिल्ली-फ़िरोज़पुर रेलमार्ग पर स्थित जींद रेलमार्ग द्वारा पानीपत से और सड़क मार्ग द्वारा दिल्ली व हरियाणा के अन्य महत्त्वपूर्ण शहरों से जुड़ा है। जिले के प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग NH352 और NH152 हैं।

शिक्षण संस्थान[संपादित करें]

यहाँ पर चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय स्थित हैं। यहाँ स्थित महाविद्यालय jind विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। यहां जयन्ती पुरातात्विक संग्रहालय भी स्थित है।

प्रमुख आकर्षण[संपादित करें]

राजपुरा(भैंण)[संपादित करें]

राजपुरा भैंण जींद से लगभग 11किलोमीटर की दूरी पर है जो जींद - हांसी राज्य मार्ग पर स्थित है यहां गोविंद कुंड है जो महाभारत काल से अब तक है।

खाण्डा[संपादित करें]

खाण्डा गांव जींद से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर जींद - करनाल मुख्य मार्ग पर स्थित अलेवा गाँव के समीप है ! गाँव में अत्यधिक प्राचीन भगवान परशुराम मन्दिर एवं तीर्थ हैं ! स्थानीय लोगों के अनुसार भगवान परशुराम की माता रेणुका जामुनी गाँव (महर्षि जमदग्नि) से प्रतिदिन तीर्थ से जल लेने आती थी ! एक दिन चोरों द्वारा माता रेणुका के जल वाले स्वर्ण कलश को चुरा लिया गया जिसके कारण स्वर्ण कलश मिट्टी का हो गया ! वह कलश आज भी मन्दिर में विराजमान है ! प्रत्येक रविवार यहाँ लोग दूर -दूर से पूजा करने एवं तीर्थ में स्नान करने आते हैं !

अश्वनी कुमार तीर्थ[संपादित करें]

जीन्द में स्थित अश्वनी कुमार तीर्थ आसन गांव में है। यह जीन्द से 14 किलोमीटर दूर है। इस स्‍थान से अश्वनी देवाताओं की कथा जुड़ी हुई है। यहां पर एक तालाब भी है। स्थानीय लोगों का मानना है कि मंगलवार के दिन इसमें स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं। महाभारत, पदम पुराण, नारद पुराण और वामन पुराण में भी इस तालाब का उल्लेख मिलता है।

वराह[संपादित करें]

वराह जीन्द से 10 किलोमीटर दूर बराह गांव में स्थित है। वामन पुराण, पदम पुराण और महाभारत के अनुसार भगवान विष्णु ने यहां वराह का अवतार लिया था।

इकाहमसा[संपादित करें]

इकाहमसा जीन्द की दक्षिण-पश्चिम दिशा में पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। स्थानीय परंपराओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण गोपियों से बचने के लिए हंस के रूप में यहीं पर छुपे थे। यह बहुत खूबसूरत है और पर्यटक यहां तक आसानी से पहुंच सकते हैं। जींद में बहुत से धार्मिक स्‍थल भी हैं।

मुंजावता[संपादित करें]

निरजन में स्थित मुंजावता बहुत खूबसूरत है और जीन्द से 6 किलोमीटर की दूरी पर है। वामन पुराण के अनुसार यहां से भगवान महादेव की कथा जुड़ी हुई है। यह माना जाता है कि जो व्यक्ति एक रात यहां पर उपवास रख ले उसे भगवान गणेश का आवास गणपत्या मिलता है।

यक्षिणी तीर्थ[संपादित करें]

यह जीन्द से 8 किलोमीटर की दूरी पर दिखनीखेड़ा में स्थित है। यह माना जाता है कि जो व्यक्ति यहां स्नान कर लेता है और यक्षिणी को खुश कर देता है, उसके सभी पाप धुल जाते हैं।

पुष्कर[संपादित करें]

पुष्कर जीन्द से 11 किलोमीटर की दूरी पर पोंकर खेड़ी गांव में है। पुराणों के अनुसार इसकी खोज जमादाग्नि के पुत्र परशुराम ने की थी। प्राचीन समय में यहां पर देवों और पूर्वजों को खुश करने के लिए अश्वमेघ यज्ञ भी किया गया था। पुष्कर के अलावा कपिल महायक्ष घूमने भी जाया जा सकता है।

जींद से 10 km दूर दरियावाला गांव में महाभारत कालीन अवशेष आज भी मौजूद है महाभारत कालीन तालाब,कुआ और सीढियां मौजूद हैं

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "General Knowledge Haryana: Geography, History, Culture, Polity and Economy of Haryana," Team ARSu, 2018
  2. "Haryana: Past and Present Archived 2017-09-29 at the वेबैक मशीन," Suresh K Sharma, Mittal Publications, 2006, ISBN 9788183240468
  3. "Haryana (India, the land and the people), Suchbir Singh and D.C. Verma, National Book Trust, 2001, ISBN 9788123734859