विश्व के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और उनके अविष्कारों का संक्षिप्त वर्णन

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सर आइज़क न्यूटन (Issac Newton)[संपादित करें]

इसाक न्यूटन (१६४३-१७२७) विश्व के प्रसिध्द वैज्ञानिको में से एक थे! उनका जन्म इंग्लेण्ड के वूल्सथोर्प में हुआ था। उन्होने गति के तीन नियमो की रचना की थी। वे १६७२ में रॉयल सोसाइटी के फेलो चूने गये।

अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel)[संपादित करें]

स्वीडिस् रसायनज्ञ अल्फ्रेड नोबेल (१८३३ -१८९६) ने सन् १८६७ में डायनामाइट और सन् १८७५ में गेलिगानाईट, विस्फोटक पदार्थों का आविष्कार किया, जिसने उन्हें बहुत अमीर बना दिया। मरणोपरांत वे नोबेल पुरस्कार के लिए अपार संपदा छोड़ गए जो कि विज्ञान, कला और औषध के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धि के लिए दिया जाता है।

आर्मेडियो अवोगाद्रो (Amedeo Avogadro)[संपादित करें]

सन १८०६ में इटालियन वकील एमेडीयो एवोगेड्रो (१७७६-१८५६) ने भौतिकी के अध्ययन के लिए अपना पेशा छोड़ दिया। सन १८११ में एवोगेड्रो ने दर्शाया कि समान तापमान और समान दबाव में, समान आयतन की सभी गैसो में, कणो की संख्या समान होती है। यह नियम अब एवोगेड्रो का नियम कहलाता है।

एंटोइन लावोइसीयर (Antoin Lavoisier)[संपादित करें]

फ्रेंच रसायनज्ञ एंटोइन लावोइसियर (१७४३ -१७९४) ने बताया कि ज्वलनशीलता एक रासायनिक क्रिया है, वायु गैसों का एक सम्मिश्रण है व जल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का एक घटक है।

अरस्तू (Aristole)[संपादित करें]

ग्रीक दार्शनिक अरस्तू (३८४-३२२ इपू) मानते थे कि भारी वस्तु, हल्की वस्तु की तुलना में अधिक वेग से गिरती है। उनकी यह धारणा तब तक मान्य रही जब तक कि इटालियन भौतिकविद गेलीलियो गेलीलि ने दिखाया कि गुरुत्वाकर्षण सभी वस्तुओ को समान वेग से अपनी ओर खींचती है।

अगस्तिन फ्रेसनेल (Augustin Fresnel)[संपादित करें]

फ्रेन्च भौतिकविद ऑगस्टिन फ्रेसनेल (१७८८-१८२७) ने प्रयोगो से सिध्द किया कि प्रकाश तरंगो के रूप में चलता है। उन्होने ध्रुवित प्रकाश का अविष्कार किया। उन्होने एक ऐसे लेंस का निर्माण किया जिसकी सतह केंद्रित छल्लेनुमा सिढीयो की ऋंखला की तरह कटी हुइ थी। इस तरह के लेंस को फ्रेसनेल लेंस कहते हैं। यह प्रकाश केन्द्रीयकरण के लिये अच्छा लेंस है। फ्रेसनेल लेंस का उपयोग लाइट हाउस, सर्च लाइट और कार हेड लाइट में होता है।

क्रिश्चियन डॉप्लर (Christian Doppler)[संपादित करें]

जब कोई गतिशील ध्वनि स्रोत हमारे नजदीक आता है, तो प्रतीत होता है कि ध्वनि की तीव्रता क्रमश: बढ रही है और दूर जाने पर घट रही है। ध्वनि के इस प्रभाव की व्याख्या सन १८४२ में ऑस्ट्रीयन भौतिकविद क्रिश्चियन डॉप्लर (१८०३-१८५३) ने की। उन्होने बताया कि ध्वनि तरंगो के रूप में चलती है और जैसे जैसे यह पर्यवेक्षक के समीप आती जाती है तो इसकी आवृति बढती जाती है व दूर जाने पर क्रमश: घटती जाती है। यह प्रभाव अब " डॉप्लर प्रभाव " से जाना जाता है।

एडमंड हैली (Edmond Healley)[संपादित करें]

धूमकेतुओं का नाम सामान्यतः उनके खोजकर्ता के नाम पर रखा जाता है परन्तु एक धूमकेतु है जिसका नाम अंग्रेज खगोलविद एडमंड हैली (१६५६ - १७४२) के मरणोपरांत रखा गया। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बताया की धूमकेतु आवर्ती होते हैं और यह एक निश्चित कक्षा में भ्रमण करते हुए बारम्बार पृथ्वी के आसमान में नजर आते हैं।

एडविन हबल (Edwin Hubble)[संपादित करें]

सन १९२३ में अमेरिकन खगोलविद एडविन हबल (१८८९-१९५३) ने सिध्द किया कि मंदाकिनी के अलावा भी अन्य आकाशगंगाओ का अस्तित्व है। उन्होने आकार के अनुसार आकाशगंगाओ का वर्गीकरण किया। उन्होने दर्शाया कि आकाशगंगाएं एक दूसरे से दूर जा रही है और सिध्द किया कि ब्रह्माण्ड फैल रहा है।

एमिल बेर्लिनेर (Emile Berliner)[संपादित करें]

जर्मन अविष्कारक एमिल बेर्लिनेर (१८५१-१९२९) ने ग्रामोफोन का अविष्कार किया, जिसमें फ्लेट डीस्क में दोबारा ध्वनि रिकॉर्डींग की जा सकती थी। उन्होने इस तारीके का भी अविष्कार किया जिसमें एक मास्टर कॉपी से सौ से भी अधिक रिकॉर्डींग की जा सकती थी।

एन्रीको फर्मी (Enrico Fermi)[संपादित करें]

इटालियन भौतिकविद एनरिको फर्मी (१९०१-१९५४) सन १९३८ में इटली छोडकर कार्य करने अमेरिका चले गये। उन्होने पहला नाभकीय रियेक्टर शिकागो के विश्वविद्यालय के अप्रचलित स्क्वेश कोर्ट में बनाया। रियेक्टर का उपयोग कर उन्होने नाभकीय विखण्डन अभिक्रिया ऋंखला प्राप्त की।

फ्रेड हॉयल (Fred Hoyle)[संपादित करें]

अंग्रेज खगोलविद् फ्रेड हॉयल (१९१५ -२००१) ने बीसवीं सदी के कई महत्वपूर्ण खगोलीय प्रश्नों को हल करने में अहम् भूमिका निभाई है। जिसमे मुख्य रूप से न्युक्लियोसिंथेसिस को समझाना है कि कैसे रासायनिक तत्व तारों की भीतर हाइड्रोजन बनाते हैं।

फ्रिट्ज हैबर (Fritz Haber)[संपादित करें]

सन १९०८ में जर्मन रशायनशास्त्री फ्रित्ज हाबेर (१८६८-१९३४) ने क्षारीय अमोनिया बनाने की प्रक्रिया का विकास किया जिसका उपयोग उर्वरक और विस्फोटक बनाने में किया जाता है। हाबेर ने वायु में अमोनिया को गर्म कर नाइट्रिक अम्ल बनाने के तरीके का अविष्कार किया।

गैलीलियो गैलिली (Galileo Galilei)[संपादित करें]

इटालियन खगोलविद और भौतिकशास्त्री गेलीलियो गेलीलि (१५६४-१६४२) ने सन १६१० में बहुत शक्तिशाली टेलीस्कोप का निर्माण किया। इस टेलीस्कोप की सहायता से उन्होने सैकड़ो तारो को देखा जो पहले कभी देखे नहीं गये थे। मंदाकिनी का अवलोकन कर उन्होने बताया कि इसमें विभिन्न आकारो के असंख्य तारो और क्लस्टरो के समूह एक साथ रहते हैं।

गिओवानी केसीनी (Giovanni Cassini)[संपादित करें]

शनि ग्रह के छल्लो में कई खाली स्थान है जिसमें सबसे बड़ा केसीनी विभाजन फ्रेन्च खगोलशास्त्री गिओवानी केसीनी (१६२५-१७१२) के नाम पर रखा गया है। वे एक निपुण पर्यवेक्षक थे, उन्होने शनि के चार चंद्रमाओं की खोज की थी। उनका मंगल ग्रह का पर्यवेक्षण सौरमंडल में दूरियों के निर्धारण में बहुत मददगार रहा।

गुगलीएल्मो मार्कोनी (Guglielmo Marconi)[संपादित करें]

इटालियन अभियंता गुगलीएल्मो मार्कोनी (१८७४-१९३७) पहले व्यक्ति थे जिन्होने संकेतो को रेडियो के माध्यम से भेजने के सिध्दांत का पेटेन्ट कराया था। मार्कोनी युवावस्था में इटली में अपनी पुस्तैनी अटारी में रेडियो तरंगो के साथ परिक्षण करते रहते थे। १९०१ में उन्होने पहली बार मोर्स कोड का उपयोग कर रेडियो संकेत अटलांटिक महासागर के पार भेजा।

ऐलेक्ज़ैन्डर ग्राहम बेल एले ज़ैंडर ग्राहम बेल (Alexander Graham Bell)[संपादित करें]

सन १८७५ में स्कॉटिस वैज्ञानिक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल (१८४७-१९२२) ने पहली बार मनुष्य की आवाज को विद्युत तारो से सफलता पूर्वक प्रसारित किया। बेल ने अपने सहकर्मी को पहला शब्द कहा-थॉमस वाटसन। अगले वर्ष उन्होने टेलीफोन का पेटेन्ट करा लिया।

जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (James Clerk Maxwell)[संपादित करें]

स्कॉटिस भौतिकविद जेम्स क्लेर्क मैक्सवेल (१८३१-१८७९) पहले व्यक्ति थे जिन्होने बताया कि प्रकाश विद्युतचुंबकीय विकिरण का ही एक रूप है। सन १८६४ में उन्होने गणितीय समीकरणो से विद्युत चुंबकीय वर्णक्रम के अस्तित्व को सिध्द किया। मैक्सवेल ने वर्ण और वर्ण अंधत्व का भी अध्ययन किया था।

जान इंगेनहाउज (Jan Ingenhousz)[संपादित करें]

डच नागरिक जान इंगेनहाउज (१७३०-१७९९) ने भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र और चिकित्साशास्त्र का अध्ययन किया था। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होने प्रकाश संश्लेषण का अध्ययन किया। उन्होने जोसेफ प्रिस्टली की खोज कि पौधे ऑक्सीजन छोडते हैं को आगे बढाया और बाद में उन्होने पौधो में गैसो के आदान-प्रदान के कार्यो को प्रकाशित किया। इंगेनहाउज ने दिखाया कि पौधो के हरे भाग उजाले में कार्बन डाइ ऑक्साईड ग्रहण कर, ऑक्सीजन छोडते हैं तथा अंधेरे में ठीक इसके विपरित व्यवहार करते हैं।

जॉन नैपियर (John Napier)[संपादित करें]

जॉन नेपियर (१५५०-१६१७) एक स्कॉटिस गणितज्ञ थे। उन्होने संख्याओं से संबंधित कई महत्वपूर्ण खोजे की थी। नेपियर लघुगणक की खोज के कारण बहुत प्रसिध्द थे। लघुगणक ने जटिल गणनाओं को बहुत आसान बना दिया था। कई गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक लघुगणक का उपयोग समस्याओ को हल करने और नये सिध्दांत बनाने में करते हैं।

जोसेफ प्रिस्टले (Joseph Priestly)[संपादित करें]

अंग्रेज वैज्ञानिक और पादरी जोसेफ प्रिस्टली (१७३३-१८०४) ने सन १७३४ में ऑक्सीजन की खोज की थी। प्रिस्टली ने इसके अलावा कई अन्य गैसो, जैसे नाइट्रस ऑक्साइड (हंसाने वाली गैस) और अमोनिया का भी अविष्कार किया था। उन्होने कार्बन डाई ऑक्साइड का अध्ययन किया और कार्बनिकृत (द्रव) जल का अविष्कार किया।

जेसेफ वॉन फ्रॉनहॉफर (Joseph Von Fraunhofer)[संपादित करें]

जर्मन भौतिकविद जोसेफ् वोन फ्रानहाफर (१७८७-१८२६) का ध्यान दर्पण बनाने और लेंस पॉलीस करने के प्रशिक्षण के दौरान प्रकाश की प्रकृति की ओर आकर्षित हुआ। इस प्रशिक्षण ने उन्हे स्पेक्ट्रोस्कोप का अविष्कारक बनाया। १८१४ से १८१७ तक उन्होने इसका उपयोग सूर्य उत्सर्जित वर्णक्रम के वैज्ञानिक अध्ययन के लिये किया।

लिनस पाउलिंग (Linus Pauling)[संपादित करें]

अमेरिकन रशायनशास्त्री लीनस पाउलिंग (१९०१-९४) को रसायनशास्त्र में किये गये उनके कार्य " रसायनिक बंध और अणु की संरचना " पर १९५४ का नोबेल पुरुष्कार दिया गया। उन्होने परमाणु बंधो में लगने वाली ऊर्जा, इनके बीच के कोण और बीच की दूरीयों का आकलन किया था। नाभकीय हथियारो के परीक्षण पर रोक संबंधी प्रयासो के कारण उन्हे १९६२ का नोबेल शांति पुरुष्कार भी दिया गया।

लाइस मिट्नर (Lise Meitner)[संपादित करें]

ऑस्ट्रियन मूल की भौतिकविद् लाइस मिट्नर (१८६८ -१९७८) ने नाभकीय भौतिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण खोजें की। उन्होंने अपने सहकर्मी भौतिकविद् ओट्टो हान के साथ मिलकर प्रोटेक्टीनियम तत्व की खोज की।

निकोलस कोपरनिकस (Nicolaus Copernicus)[संपादित करें]

पोलैण्ड के खगोलविद निकोलस कॉपरनिकस (१४७३-१५४३) ने ब्रह्माण्ड के प्रति तत्कालीन धारणा को बदल कर रख दिया। कॉपरनिकस ने बताया कि सूर्य ब्रह्माण्ड का केन्द्र है ना कि पृथ्वी। उनके इस सिध्दांत को साधारणतया अपना लिया गया। १७ वी सदी में खगोलविदो ने यह सिध्द किया कि पृथ्वी और अन्य ग्रह अपनी अपनी कक्षाओ में सूर्य का चक्कर लगाते हैं।

मेरी क्युरी (Marie Curie)[संपादित करें]

पोलेंड में जन्मीं भौतिकविद् मेरी क्युरी (१८६७ -१९३४) रेडियोधर्मी पदार्थों के अध्ययन के लिए जानी जाती है। उन्होंने दो नयें तत्वों पोलोनियम और रेडियम की खोज की। उन्हें सन् १९०३ में भौतिकी और सन १९११ में रसायनशास्त्र के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए नोबल पुरुष्कार दिया गया।

मैक्स प्लांक (Max Planck)[संपादित करें]

जर्मन भौतिकविद मैक्स प्लांक (१८५८-१९४७) ने क्वांटम भौतिकी की नींव रखी। प्लांक ने विकिरण की विद्युत चुंबकीय प्रकृति ज्ञात की। उन्होने कृष्ण वस्तु पर अनेक शोध किये। सन १९१८ में उन्हे नोबेल पुरष्कार से सम्मनित किया गया।

मोर्टिमर ह्वीलर (Mortimer Wheeler)[संपादित करें]

तत्कालिन प्रसिध्द पुरातत्ववेत्ता मोर्टिमर च्हीलर (१८९०-१९७६) ने पुरातत्व संस्थान लंदन की नींव डाली। सन १९४४ में वे भारत में पुरातत्व विभाग के निदेशक बने। उन्होने सिंधु घाटी सभ्यता की खोज की।

रॉबर्ट वाटसन-वाट (Robert Watson-Watt)[संपादित करें]

स्कॉटिस भौतिकविद रॉबर्ट वाटसन-वाट (१८९२-१९७३) ने १९३० में पहले प्रायोगिक राडार व्यवस्था का विकास किया था। द्वितिय विश्वयुध्द में इस व्यवस्था का उपयोग हवाई हमलो से पूर्व सचेत करने के लिये किया गया।

सत्येन्द्र नाथ बसु (Satyendra Nath Bose)[संपादित करें]

भारतीय भौतिकविद एवं गणितज्ञ सत्येन्द्रनाथ बोस (१८९४-१९७४) क्वांटम यांत्रिकी में किये गये कार्य से जाने जाते हैं। ब्रह्माण्ड में पाये जाने वाले दो तरह के कणो में से एक " बोसॉन " बोस के नाम पर रखा गया है। बोस-आइंस्टाइन सांख्यिकी से कणो के व्यवहार को समझा जा सकता है। बोस को सन १९५४ में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

स्वान्ते अर्हिनियस (Svante arrhenius)[संपादित करें]

स्वीडिस वैज्ञानिक स्वेन्ट अर्हेनियस (१८५९-१९२७) को अपने इस अनुसंधान के लिए काफी प्रशंसा मिली कि कैसे कोई घटक विलयन में आयन बनाते हैं। अपने कार्यो से उन्होने समझाया कि यह हाइड्रोजन आयन ही है जो अपने विशेष गुणो से अम्ल का निर्माण करते हैं।

थॉमस यंग (Thomas Young)[संपादित करें]

अंग्रेज चिकित्सक एवं भौतिकविद थॉमस यंग (१७७३-१८२९) ने प्रकाश के तरंग व्यवहार को सिध्द करने के लिए अनेक परीक्षण किये। उन्होने बताया कि विभिन्न वर्ण, विभिन्न लम्बाई की प्रकाश तरंगे हैं। १८०१ में यंग ने वर्ण दृष्टि की खोज की और समझाया कि मनुष्य की आंखो में तीन तरह के वर्ण संवेदक होते हैं, जिन्हे अब शंकु कोशिका के नाम से जाना जाता है, जो कि नीले, लाल और हरे प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती है।

विलियम हेनरी ब्रैग (William Henry Bragg)[संपादित करें]

अंग्रेज भौतिकविद विलियम हेनरी ब्रेग (१८६२-१९४२) और उनके पुत्र विलियम लॉरेन्स ब्रेग ने खोज की कि जब क्ष-किरण क्रिस्टल में से होकर गुजरती है तो वो फोटोग्रफिक फिल्म पर बिन्दुओ की विशिष्ट प्रतिकृति बनाती है। यह प्रतिकृति क्रिस्टल के भीतर मौजुद परमाणुओ कि विशिष्ट व्यवस्था को दर्शाती है।