हरिदास निरंजनी

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सन्त हरिदास निरंजनी का एक पुराने तैल चित्र से पुनरुत्पादित चित्र। इस चित्र का उपयोग 2011 में एक धार्मिक सभा की घोषणा के लिए किया गया था।

हरिदास निरंजनी एक भारतीय संत कवि थे। माना जाता है कि उनका जीवनकाल १६वीं शताब्दी के मध्य से १७वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक था। वे निरंजनी सम्प्रदाय के संस्थापक माने जाते हैं।

ब्रजभाषा में प्राप्त उनकी अतिश्रद्धापूर्ण जीवनियों में बताया गया है कि हरिदास कापडोड के मूल निवासी थे जो वर्तमान समय में राजस्थान के डिडवाना के निकट स्थित है। [1] कुछ जीवनियों से पता चलता है कि वे पहले डाकू थे जो बाद में निर्गुण राम के उपासक हो गये। कभी-कभी यह भी उल्लेख मिलता है कि योगी गोरखनाथ ने उन्हें डाकू से सन्त बना दिया। इन्हें राजस्थान का वाल्मीकि कहा जाता हैं।

यह भी मान्यता है कि हरिदास निरंजनी संप्रदाय के संस्थापक थे। निरंजनी सम्प्रदाय मुख्य रूप से मध्य राजस्थान में प्रचलित एक हिन्दू सम्प्रदाय है। हरिदास की अधिकांश काव्य रचनाएँ भजन और साखी के रूप में हैं, लेकिन उन्होंने विभिन्न छन्दों कई लम्बी रचनाएँ भी की हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Mahārāj Śri Haridās Jī Kī Vaṇī." In Mahārāj Śri Haridās Jī Kī Vaṇī, edited by Swami Mangaldas. Jaipur: Nikhil Bharatiya Niranjani Mahasabha, 1931.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]