ऐरिक्सन द्वारा प्रतिपादित मनोसामाजिक विकास के चरण

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में एरिक एरिक्सन ने जोआन एरिक्सन [1] के साथ मिलकर मनोसामाजिक विकास का सिद्धान्त दिया जिसमें उन्होने मनोसामाजिक विकास के आठ चरण गिनाए। इस सिद्धान्त के अनुसार सभी स्वस्थ विकासशील व्यक्तियों को बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक पहुँचने में आठ चरणों से होकर गुजरना पड़ता है। एरिकसन के सिद्धान्त के अनुसार, प्रत्येक चरण के परिणाम, चाहे सकारात्मक हों या नकारात्मक, वे सफल चरणों के परिणामों को प्रभावित करते हैं। [2]

ऐरिकसन ने 1950 के दशक के आसपास चाइल्डहुड एंड सोसाइटी (Childhood and Society) नामक एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसने उन्होने अपना सिद्धान्त वर्णित किया। इससे उनको अत्यन्त प्रसिद्धि मिली। [3] ऐरिकसन मूल रूप से सिगमंड फ्रायड के विकास के मनोवैज्ञानिक चरणों से प्रभावित थे। उन्होंने विशेष रूप से फ्रायड के सिद्धान्तों के साथ काम करना शुरू किया, लेकिन जैसे ही उन्होंने जैवमनोसामाजिक विकास में गहराई से गोता लगाना शुरू किया और समझा कि अन्य पर्यावरणीय कारक मानव विकास को कैसे प्रभावित करते हैं, तो उन्होंने जल्द ही फ्रायड के सिद्धान्तों को पीछे छोड़ते हुए अपने स्वयं के विचारों को विकसित किया। [3]

ऐरिक्सन के इस मॉडल के लिए विभिन्न शब्दों का प्रयोग किया गया जैसे "जीव मनोसामाजिक सिद्धान्त", "एरिकसन का मानव विकास का चक्र" आदि। "मनोसामाजिक विकास" एरिकसन का प्रयोग किया गया शब्द है। एरिकसन के मनोसामाजिक विकास के प्रतिमान का बहुत महत्व है। यह सिद्धान्त बाल विकास के साथ प्रौढ़ों के विकास में भी सहायक है।

मनोसामाजिक अवस्थाओं की विशेषताएँ[संपादित करें]

ऐरिक्शन के मनोसामाजिक विकास सिद्धान्त के अनुसार पूरा जीवन विकास के आठ चरणों से होकर जाता है। प्रत्येक चरण में एक विशिष्ट विकासात्मक मानक होता है, जिसे पूरा करने में आने वाली समस्याओं का समाधान करना आवश्यक होता है। ऐरिक्सन के अनुसार समस्या कोई संकट नहीं होती है, बल्कि संवेदनशीलता और सामर्थ्य को बढ़ाने वाला महत्वपूर्ण बिन्दु होती है। समस्या का व्यक्ति जितनी सफलता के साथ समाधान करता है उसका उतना ही अधिक विकास होता है।

(१) विश्वास बनाम अविश्वास (Hope: trust vs. mistrus) - यह ऐरिक्सन का पहला मनोसामाजिक चरण है जिसका जीवन के पहले वर्ष में अनुभव किया जाता है। बच्चों को अपने माता-पिता को देखकर उचित स्नेह व प्रेम मिलता है, जो उनमें विश्वास (Trust) का भाव विकसित करता है। जब माता-पिता बच्चों को रोते-बिलखते व चिल्लाते छोड़ जाते हैं, तो उनमें अविश्वास (Mistrust) की भावना विकसित हो जाती है। विश्वास के अनुभव के लिए शारीरिक आराम, कम से कम डर, भविष्य के प्रति कम से कम चिन्ता जैसी स्थितियों की आवश्यकता होती है। बचपन में विश्वास के अनुभव से संसार के बारे में अच्छे और सकारात्मक विचार, जैसे संसार रहने के लिए एक अच्छी जगह है, आदि उम्रभर के लिए विकसित हो जाते हैं।

(२) स्वायत्ता बनाम शर्म (Will: autonomy vs. shame/doubt) - ऐरिक्सन के द्वितीय विकासात्मक चरण में यह स्थिति शैशवावस्था के उत्तरार्ध और बाल्यावस्था (1 से 3 वर्ष) के बीच होती है। इस अवस्था में बालक दूसरों पर निर्भर रहना नहीं चाहते बल्कि अपने-आप भोजन करना, कपड़े पहनना इत्यादि करना चाहते हैं। वे स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहते हैं। दूसरी तरफ बहुत सख्त माता-पिता बच्चों को साधारण कार्य करने पर भी डाँटते हैं तथा उनकी क्षमता पर शक करते हैं, जिसके कारण बच्चे अपने अन्दर लज्जा अनुभव करते हैं। अगर बालक पर अधिक बंधन लगाया जाए या कठोर दंड दिया जाए तो उनके अंदर शर्म और संदेह की भावना विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है।

(३) पहल बनाम अपराध बोध (Purpose: initiative vs. guilt) - ऐरिक्सन के विकास का तीसरा चरण शाला जाने के प्रारंभिक वर्ष के बीच होता है। एक प्रारंभिक शैशव अवस्था की तुलना में और अधिक चुनौतियां झेलनी पड़ती हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एक सक्रिय और प्रयोजन पूर्ण व्यवहार की आवश्यकता होती है। इस उम्र में बच्चों को उनके शरीर, उनके व्यवहार, उनके खिलौने और पालतू पशुओं के बारे में ध्यान देने को कहा जाता है। अगर बालक गैर जिम्मेदार है और उसे बार-बार व्यग्र किया जाए तो उनके अंदर असहज अपराध बोध की भावना उत्पन्न हो सकती है। ऐरिक्सन का इस चरण के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण है उनका यह मानना है कि अधिकांश अपराध बोध की भावनाओं के प्रति तुरंत पूर्ति ही उपलब्धि की भावना द्वारा की जा सकती है।

(४) परिश्रम/उद्यम बनाम हीन भावना (Competence: industry vs. inferiority)- यह ऐरिक्सन का चौथा विकासात्मक चरण है जो कि बाल्यावस्था के मध्य में (प्रारंभिक वर्षां में) परिलक्षित होता है। बालक द्वारा की गई पहल से वह नए अनुभवों के संपर्क में आता है। और जैसे-जैसे वह बचपन के मध्य और अंत तक पहुंचता है, तब तक वह अपनी ऊर्जा को बौद्धिक कौशल और ज्ञान से हासिल करने की दिशा में मोड़ देता है। बाल्यावस्था का अंतिम चरण कल्पनाशीलता से भरा होता है, यह समय बालक के सीखने के प्रति जिज्ञासा का सबसे अच्छा समय होता है। इस आयु में बालक के अन्दर हीनभावना (अपने आपको अयोग्य और असमर्थ समझने की भावना) विकसित होने की संभावना रहती है।

(५) पहचान बनाम पहचान भ्रान्ति (Fidelity: identity vs. role confusion) - यह ऐरिक्सन का पाँचवा विकासात्मक चरण है, जिसका अनुभव किशोरावस्था के वर्षां में होता है। इस समय व्यक्ति को इन प्रश्नों का सामना करना पड़ता है कि वो कौन है? किसके संबंधित है? और उनका जीवन कहां जा रहा है? किशोरों को बहुत सारी नई भूमिकाएं और वयस्क स्थितियों का सामना करना पड़ता है जैसे व्यावसायिक और रोमेंटिक। उदाहरण के लिए अभिभावकों को किशोरों की उन विभिन्न भूमिकाओं और एक ही भूमिका के विभिन्न भागों का पता लग सकता है, जिनका वह जीवन में पालन कर सकता है। यदि इसके सकारात्मक रास्ते पता लगाने का मौका न मिले तब, पहचान भ्रान्ति की स्थिति हो जाती है।

(६) आत्मीयता बनाम अलगाव (Love: intimacy vs. isolation) - यह ऐरिक्सन का छटवां चरण है। जिसका अनुभव युवावस्था के प्रारंभिक वर्षो में होता है। यह व्यक्ति के पास दूसरों से आत्मीय संबंध स्थापित करने का विकासात्मक मानक है। एरिक्सन ने आत्मीयता को परिभाषित करते हुए कहा है कि आत्मीयता का अर्थ है, स्वयं को खोजना, जिसमें स्वयं को किसी और (व्यक्ति में) खोजना पड़ता है। व्यक्ति की किसी के साथ स्वस्थ मित्रता विकसित हो जाती है और एक आत्मीय संबंध बन जाता है, तब उसके अंदर आत्मीयता की भावना आ जाती है। यदि ऐसा नहीं होता है तो अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाती है।

(७) उत्पादकता बनाम स्थिरता (Care: generativity vs. stagnation) - यह ऐरिक्सन का सातवां चरण है जो 'मध्यवयस्कावस्था' (Middle Adulthood) भी कहलाती है। इस अवस्था में व्यक्ति अगली पीढ़ी के लोगों के कल्याण तथा उस समाज के लिए जननात्मक में उत्पादकता सम्मिलित करता है, लेकिन जब व्यक्ति को जननात्मकता की चिन्ता उत्पन्न नहीं होती, तो उसमें स्थिरता उत्पन्न हो जाती है। ऐरिक्सन का उत्पादकता से यही अर्थ है कि नई पीढ़ी के लिए कुछ नहीं कर पाने की भावना से स्थिरता की भावना उत्पन्न होती है।

(८) संपूर्णता बनाम निराशा - (Wisdom: ego integrity vs. despair) यह ऐरिक्सन का आठवाँ और अन्तिम चरण है जो कि वृद्धावस्था में अनुभव होता है। इस अवस्था में 65 वर्ष के बाद से प्रारम्भ होकर मृत्यु तक की अवधि सम्मिलित होती है, इसे बुढ़ापा की अवस्था कहा जाता है। इस चरण में व्यक्ति अपने अतीत को टुकड़ों में एक साथ याद करता है और एक सकारात्मक निष्कर्ष निकालता है या फिर बीते हुए जीवन के बारे में असंतुष्टि भरी सोच बना लेता है। अलग-अलग प्रकार के वृद्ध लोगों की अपने बीते हुए जीवन के विभिन्न चरणों के बारे में एक सकारात्मक सोच विकसित होती है। अगर ऐसा होता है तो बीते जीवन का एक अच्छा चित्र (खाका) बन जाता है और व्यक्ति को भी एक तरह के संतोष का अनुभव होता है। संपूर्णता की भावना का अनुभव होता है। अगर बीते हुए जीवन के बारे में सकारात्मक विचार नहीं बन पाते हैं तो उदासी की भावना घर कर जाती है जिसे ऐरिक्सन ने निराशा का नाम दिया है।

नौवाँ चरण जोन एम एरिक्शन, जो एरिक ऐरिक्शन की पत्नी और सहयोगी थीं, ने एक नौवाँ चरण जोड़ा। इसके बारे में उन्होने कहा कि जब व्यक्ति ८०-९० वर्ष पार कर लेता है तब नई आवश्यकताएँ (डिमान्ड), नए पुनर्मूल्यांकन और दैनिक समस्याएँ आने लगतीं हैं। इन नई चुनौतियों के लिए नौवें चरण के निर्माण का आवश्यकता है। जब वह इस चरण के बारे में लिख रहीं थीं तब वे ९३ वर्ष की थीं।

ऐरिक्सन का यह मानना है कि विभिन्न चरणों में आने वाली समस्याओं का उचित समाधान हमेशा सकारात्मक नहीं हो सकता है। कभी-कभी समस्या के ऋणात्मक पक्षों से परिचय भी अपरिहार्य (जरूरी) हो जाता है। उदाहरण के लिए, आप जीवन की हर स्थिति में सभी लोगों पर एक जैसा विश्वास नहीं कर सकते। फिर भी चरण में आने वाली विकासात्मक मानक की समस्या के सकारात्मक समाधान से होती है। उसके बारे में सकारात्मक प्रतिबद्धता प्रभावी होता है।

आलोचना[संपादित करें]

आलोचकों का मत है कि ऐरिक्सन ने आवश्यकता से अधिक आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है जिससे उनके सिद्धान्त में अव्यावहारिकता झलकती है। लेकिन एरिक्सन ने इस आलोचना का खंडन किया है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का मत है कि एरिक्सन के सिद्धान्त में जितने तथ्यों की व्याख्या की गई है उनका कोई प्रयोगात्मक समर्थन भी नहीं है। कुछ आलोचकों का यह कथन मान्य नहीं है कि बदलती हुई सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार समायोजन करके ही उत्तम एवं स्वस्थ व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है। शुल्ज के अनुसार अन्तिम मनोसामाजिक अवस्था की व्यवस्था अधूरी और असंतोषजनक है। आलोचकों का मानना है कि अंतिम अवस्था में व्यक्ति में विकास उतना सन्तोषजनक नहीं होता जितना कि ऐरिक्सन के अहम संपूर्ण के संप्रत्यय से संकेत मिलता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Robert Mcg. Thomas Jr., "Joan Erikson Is Dead at 95; Shaped Thought on Life Cycles," New York Times obituary, August 8, 1997. Online at https://www.nytimes.com/1997/08/08/us/joan-erikson-is-dead-at-95-shaped-thought-on-life-cycles.html.
  2. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  3. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर[मृत कड़ियाँ]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]