दामोदरदेव

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दामोदरदेव (असमिया भाषा : দামোদৰ দেৱ; 1488–1598) सोलहवीं शताब्दी के एकशरण धर्म के उपदेशक एवं प्रचारक थे। दामोदरदेव महापुरुष भट्टदेव के बाद साहित्यिकक प्रेरणा बने।

प्रारम्भिक जीवन[संपादित करें]

उनका जन्म १४८८ ई में नवगाँव जिले के नालचा में हुआ था। दामोदर देव के पितृ-मातृ क्रम में शतानन्द और सुशीला कामरूप के हाजो के निवासी थे। कालक्रम से वे अपना मूल जन्मस्थान छोड़कर वर्तमान नवगांव के नालचा आ गये थे। वहीं दामोदर देव का जन्म हुआ। नालचा, शंकरदेव के गृहस्थान बारदोवा के निकट था और शतानन्द शंकरदेव के सखा थे। जब १५४६ में शंकरदेव धुवाहाट से बारपेटा आ गये, तब दामोदरदेव और उनका परिवार भी अपना गृहस्थान छोड़कर पटबाउसी (या चन्द्रबटीपुर) आ गया, जो शंकरदेव के सत्र के पास था।

दामोदरदेव ने अपने दो भाइयों के साथ नवद्वीप के कल्पचन्द्र से शिक्षा ग्रहण की। वहाँ उन लोगों ने विस्तार से व्याकरण, व्युत्पत्ति, चार वेद, चौदह शास्त्र, गीता, भागवत पुराण एवं अन्य धर्मग्रन्थों का अध्ययन किया।

शंकरदेव से मिलन[संपादित करें]

महापुरुष दामोदर देव और शंकरदेवर का मिलन वरपेटा के वाउसी परगना में हुआ था। दामोदरदेव, शंकरदेव से बहुत प्रभावित थे। शंकरदेव से मिलन होने पर शंकरदेव ने उनसे सत्र में भागवत का पाठ करने का कार्य सौंपा। दामोदरदेव ने कहा कि आपकी भूमि पर भक्तिवृक्ष उग सकता है। इसके साथ ही दोनों महापुरुषों एकसाथ मिलकर धर्मकार्य करने लगे।

सन्दर्भ[संपादित करें]