सभ्यताओं के बीच संवाद

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पूर्व ईरानी राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी ने सैमुअल पी हंटिंगटन के सभ्यताओं का संघर्ष के सिद्धांत के जवाब के रूप में सभ्यताओं के बीच संवाद का विचार पेश किए। इस शब्द का प्रयोग शुरू में ऑस्ट्रियाई दार्शनिक हैंस कोचलर द्वारा किया गया था, जिन्होंने 1972 में यूनेस्को को लिखे एक पत्र में "विभिन्न सभ्यताओं के बीच संवाद" पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के विचार का सुझाव दिया था और 1974 में, सेनेगल के राष्ट्रपति ल्योपोल्ड सेडेल सेनघोर के समर्थन और न्रेतत्व में "परस्पर संवाद की भूमिका" पर पहला अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ("द कल्चरल सेल्फ-कॉम्प्रिहेंशन ऑफ़ नेशंस") का आयोजन किया था।[1][2]


सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. International Conference "The Cultural Self-comprehension of Nations", organized by the International Progress Organization, Innsbruck, Austria, 27–29 July 1974. For details, see the conference proceedings: Hans Köchler (ed.), Cultural Self-comprehension of Nations. (Studies in International [Cultural] Relations, Vol. 1.) Tübingen/Basel: Erdmann, 1978. ISBN 3-7711-0311-8
  2. For a detailed chronology see "Global Debate: Dialogue of Civilizations".