बिजोलिया किसान आन्दोलन

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बिजोलिया आन्दोलन मेवाड़ राज्य के किसानों द्वारा 1897 ई मे किया गया था। यह आन्दोलन किसानों पर अत्यधिक लगान लगाये जाने के विरुद्ध किया गया था। यह आन्दोलन बिजोलिया जागीर से आरम्भ होकर आसपास के जागीरों में भी फैल गया। इसका नेतृत्व विभिन्न समयों पर विभिन्न लोगों ने किया, जिनमें फ़तेह करण चारण, सीताराम दास, विजय सिंह पथिक और माणिक्यलाल वर्मा के नाम उल्लेखनीय हैं। यह आन्दोलन लगभग आधी शताब्दी तक चला और 1941 में समाप्त हुआ।

वर्तमान समय में बिजोलिया, राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है। आंदोलन के मुख्य कारण थे- 84 प्रकार के लाग बाग़ (कर), लाटा कूंता कर (खेत में खड़ी फसल के आधार पर कर), चवरी कर (किसान की बेटी के विवह पर), तलवार बंधाई कर (नए जागीरदार बनने पर कर) आदि ।

यह सर्वाधिक समय (44 साल) तक चलने वाला एकमात्र अहिंसक आन्दोलन था। इसमें महिला नेत्रियो जैसे अंजना देवी चौधरी, नारायण देवी वर्मा व रमा देवी आदि ने भी प्रमुखता से हिसा लिया था। गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने समाचार पत्र प्रताप में इस आंदोलन को प्रमुखता दी थी। जानकी देवी का संबंध बिजौलिया किसान आंदोलन से रहा था।

आन्दोलन के चरण[संपादित करें]

इस आन्दोलन को मुख्यतः तीन चरणों में विभक्त माना जाता है-

प्रथम चरण (1897-1916)[संपादित करें]

बिजोलिया के राव कृष्ण सिंह ने किसानों पर पांच रुपए की दर से चवंरी कर लगा दिया था जिसके अंतर्गत किसानों को अपनी पुत्री के विवाह पर ठिकाने को कर देना पड़ता था। बिजोलिया ठिकाने में अधिकतर धाकड़ जाति के लोग थे। 1897 में गिरधारीपुरा नामक गांव में गंगाराम धाकड़ के पिता के मृत्यु भोज के अवसर पर किसानों ने एक सभा रखी जिसमें कर बढ़ोतरी की शिकायत मेवाड़ के महाराजा से करने का प्रस्ताव रखा गया। इस हेतु नानजी पटेल एवं ठाकरी पटेल को उदयपुर भेजा गया। महाराणा ने हामिद नामक जांच अधिकारी भेजा।

1913 में, फ़तेह करण चारण के नेतृत्व में, लगभग 15,000 किसानों ने 'नो टैक्स' अभियान शुरू किया, जिसके तहत उन्होंने बीजोलिया की भूमि को बंजर छोड़ने और इसके बजाय बूंदी, ग्वालियर और मेवाड़ राज्यों के पड़ोसी क्षेत्रों में किराए के भूखंडों पर खेती करने का फैसला किया। इसके परिणामस्वरूप पूरे बिजोलिया में कृषि भूमि असिंचित रह गई और खाद्य सामग्री की कमी के अलावा जागीर के राजस्व में भारी गिरावट आई। किसान आंदोलन में उनकी भूमिका के कारण, फ़तेह करण चारण से उनकी जागीर (सामंती-अनुदान) छीन ली गई और उन्हें मेवाड़ से निर्वासित कर दिया गया। [1][2]

1906 कृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद नये ठिकानेदार पृथ्वी सिंह ने जनता पर 'तलवार बधाई शुल्क' अर्थात उत्तराधिकार शुल्क लगा दिया। 1903 में साधु सीताराम दास व उनके सहयोगियों को बिजोलिया से निष्कासित कर दिया गया।

स्थानीय नेताओं द्वारा आंदोलन चलाया गया - 1.प्रेमचंद भील 2. फतेहकरण चारण 3.ब्रह्मदेव

द्वितीय चरण (1916 -1923 )[संपादित करें]

इस चरण का नेतृत्व विजय सिंह पथिक ने किया था जो 1916 में इस आन्दोलन से जुड़े थे जब पृथ्वी सिंह ने जागीरदार बनने पर जनता पर 'तलवार बंधाई का कर' (1906 में )लगा दिया। 1917 ई में हरियाली अमावस्या के दिन 'ऊपरमाल पंचायत बोर्ड' की स्थापना की गई व मन्ना जी पटेल को इसका अध्यक्ष बनाया गया एवं पथिक ने ऊपरमाल का डंका नामक पर्चा प्रकाशित किया । मेवाड़ रियासत में बिंदुलाल भट्टाचार्य 1919 की अध्यक्षता में आयोग गठित किया गया। AGG हॉलेंड के प्रयासों से किसानों व रियासत के बीच एक समझौता हुआ लेकिन ठिकाने ने इसे लागू नहीं किया। विजय सिंह पथिक ने इस आंदोलन के मुद्दे को कांग्रेस के अधिवेशन में उठाया।

तृतीय चरण (1923-1941 )[संपादित करें]

तीसरे चरण में जमना लाल बजाज ने नेतृत्व संभाला एवं हरिभाऊ उपाध्याय को नियुक्त कर दिया। माणिक्यलाल वर्मा ने अपने 'पंछीड़ा' गीत से किसानों में जोश भर दिया। विजय सिंह पथिक का गीत - पीड़ितों का पंछीडा। भंवरलाल जी ने अपने गीतों से किसानों को प्रेरित किया।

प्रेमचंद जी का रंगभूमि उपन्यास बिजौलिया आंदोलन पर आधारित है

उमा जी का खेड़ा - यहां माणिक्य लाल वर्मा विद्यालय संचालित किया करते थे।

1941 में रियासत व किसानों के बीच समझौता हो गया एवं आंदोलन का अंत हो गया। 

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Pande, Ram (1974). Agrarian Movement in Rajasthan (अंग्रेज़ी में). University Publishers (India).
  2. Hooja, Rima (2006). A History of Rajasthan (अंग्रेज़ी में). Rupa & Company. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-291-0890-6.