हज्रे अस्वद

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हज्रे अस्वद

हज्रे अस्वद (अंग्रेज़ी: Black Stone), (अरबी: ar: الحجر الأسود) मुसलमानों के तीर्थ स्थल काबा में वो पत्थर है जो काबा की दीवार पर लगा है।[1] अरबी भाषा में 'हज्र' पत्थर और 'अस्वद 'काला को कहते हैं। कई घटनाओं के बाद इस समय ये तीन बड़े और विभिन्न रूपों के कई छोटे टुकड़ों में है।[2] ये टुकड़े लगभग ढाई फुट के दायरे में जड़े हुए हैं जिन ओर चांदी का गोल चक्कर बना हुआ है। जो मुस्लमान हज या उमरा करने जाते हैं उनके लिए अनिवार्य है कि तवाफ़ करते हुए हर बार हजर-ए-असवद को चूमें। अगर संख्या ज़्यादा हो तो हाथ के इशारे से भी चूम या बोसा दिया जा सकता है।[3] [4]

इतिहास[संपादित करें]

The fragmented Black Stone as it appeared in the 1850s, front and side illustrations हज्रे अस्वद

इस्लामी पौराणिक कथाएँ के अनुसार जब इब्राहीम (इस्लाम) और उनके बेटे इस्माईल ख़ाना काबा की तामीर कर रहे थे। तो हज़रत जिब्राईल ने ये पत्थर जन्नत से ला कर दिया जिसे हज़रत इबराहीम ने अपने हाथों से दीवार काबा में नसब किया। 606 ई. में जब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र 35 साल थी, सेलाब ने काबे की इमारत को सख़्त नुक़्सान पहुंचाया और क़ुरैश ने इस की दुबारा तामीर की लेकिन जब हज्र-ए-असवद रखने का मसला आया तो क़बाइल में झगड़ा हो गया। हर क़बीले की ये ख़ाहिश थी कि ये सआदत उसे ही नसीब हो। अल्लाह ने इस झगड़े को तै करने के लिए ये तरीक़ा इख़तियार किया कि हज्र-ए-असवद को एक चादर में रखा और तमाम सरदार क़बाइल से कहा कि वो चादर के कोने पकड़ कर उठाएं। सबने मिलकर चादर को उठाया और जब चादर इस मुक़ाम पर पहुंची जहां उस को रखा जाना था तो आपने अपने मुबारक हाथों से इस को दीवार काअबा में नसब कर दिया। सबसे पहले अबदुल्लाह बिन ज़ुबैर ने हज्र-ए-असवद पर चांदी चढ़वाई।1268 ई. में सुलतान अबद अलहमेद ने हजर-ए-असवद को सोने में मढ़ दिया।1281 ई. में सुलतान अबदुल अज़ीज़ ने उसे चांदी से मढ़वाया।

हज्र-ए-असवद का हदीस और पुस्तकों में उल्लेख[संपादित करें]

हज्रे अस्वद के बारे में इस्लाम में इसकी अहमियत बारे में हदीसों में काफी विवरण मिलता है:[5]

इबन अब्बास रज़ी अल्लाह-तआला अन्ना बयान करते हैं कि नबी सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:

         हजर-ए-असवद जन्नत से नाज़िल हुआ ۔

(सुंन तिरमिज़ी हदीस नंबर 877 , सुंन नसाई हदीस नंबर 2935 ) 

उमर रज़ी अल्लाह-तआला अन्ना हजर-ए-असवद के पास तशरीफ़ लाये और उसे बोसा दे कर कहने लगे मुझे ये इलम है कि तो एक पत्थर है ना तो नफ़ा दे सकता और ना  ही नुक़्सान पहुंचा सकता है, अगर मैं ने नबी सल्ललाहु अल्लाह अलैहि वसल्लम को तुझे चूमते होए ना देखा होता तो में भी तुझे ना चूमता।(सही बुख़ारी हदीस नंबर 1250, सही मुस्लिम हदीस नंबर 1720)[6]

इबन उम्र रज़ी अल्लाह-तआला अन्हुमा बयान करते हैं कि मुहम्मद ने फ़रमाया उनका छूना गुनाहों का कफ़्फ़ारा है । (तिरमिज़ी हदीस नंबर 959)

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "पहले भी इन कारणों से रोकी जा चुकी है मक्का-मदीना की पवित्र यात्रा, पढ़ें रिपोर्ट".
  2. "कहानी काबा में लगे काले पत्थर की, जिसके बारे में अलग-अलग किस्से मशहूर हैं".
  3. "حجر اسود - ویکیپیڈیا". Cite journal requires |journal= (मदद)
  4. "The Black Stone" https://islamqa.info/en/1902
  5. "हज्र-ए-असवद की एहमीयत"". मूल से 30 अक्तूबर 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 अगस्त 2020. Cite journal requires |journal= (मदद)
  6. "क्या मुसलमान "हजरे अस्वद"(शुभ कअबा में जड़े काले पत्थर) को पूजते हैं?". Cite journal requires |journal= (मदद)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]