भीम

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भीम
हिंदू पौराणिक कथाओं के पात्र
नाम:भीम
अन्य नाम:भीमसेन, वृकोदर, जरासंधजीत, कीचकजीत, हिडिंब्जीत, पवनपुत्र , बजरंगभ्राता आदि।
संदर्भ ग्रंथ:महाभारत
जन्म स्थल:हस्तिनापुर
व्यवसाय:क्षत्रिय, कुरु राजकुमार, काम्यक का राजा
मुख्य शस्त्र:गदा
राजवंश:कुरुवंश
माता-पिता:कुन्ती (माता) ,वायुदेव (पिता)
भाई-बहन:कर्ण,युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, शाशवथी (बहन)
जीवनसाथी:द्रौपदी, हिडिम्बा और बलन्धरा
संतान:घटोत्कच, सुतसोम और सवर्ग
अपने बड़े भाई हनुमान जी की पूंछ को हटाने का प्रयत्न करते हुए भीमसेन
मगध नरेश जरासन्ध का वध करते हुए भीमसेन और श्रीकृष्ण और अर्जुन दृश्य देखते हुए
भीम कीचक का वध करते हुए

हिंदु धर्म के महाकाव्य महाभारत के अनुसार भीम या भीमसेन पाण्डवों में दूसरे स्थान पर थे। वे पवनदेव के वरदान स्वरूप कुन्ती से उत्पन्न हुए थे, लेकिन अन्य पाण्डवों के विपरीत भीम की प्रशंसा पाण्डु द्वारा की गई थी। सभी पाण्डवों में वे सर्वाधिक बलशाली और श्रेष्ठ कद-काठी के थे एवं युधिष्ठिर के सबसे प्रिय सहोदर थे। भीमसेन पौराणिक बल का गुणगान पूरे काव्य में किया गया है। जैसे:- "सभी गदाधारियों में भीम के समान कोई नहीं है और ऐसा भी कोई जो गज की सवारी करने में इतना योग्य हो और बल में तो वे दस हज़ार हाथियों के समान है। युद्ध कला में पारंगत और सक्रिय, जिन्हें यदि क्रोध दिलाया जाए जो कई धृतराष्ट्रों को वे समाप्त कर सकते हैं। सदैव रोषरत और बलवान, युद्ध में तो स्वयं इन्द्र भी उन्हें परास्त नहीं कर सकते।" वनवास काल में इन्होने अनेक राक्षसों का वध किया जिसमें बकासुर एवं हिडिंब आदि प्रमुख हैं एवं अज्ञातवास में विराट नरेश के साले कीचक का वध करके द्रौपदी की रक्षा की। यह गदा युद़्ध में बहुत ही प्रवीण थे एवं द्रोणाचार्य और बलराम के शिष़्य थे। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में राजाओं की कमी होने पर उन्होने मगध के शासक जरासंध को परास्त करके ८६ राजाओं को मुक्त कराया। द्रौपदी के चीरहरण का बदला लेने के लिए उन्होने दुःशासन की छाती फाड़ कर उसका रक्त पान किया। भीमसेन काम्यक वन नामक आसुरी वन के राजा थे। महाआसुरी वन का पूर्व राजा हिडिंबसुर राक्षस था।

महाभारत के युद्ध में भीम ने ही सारे कौरव भाइयों का वध किया था। इन्ही के द्वारा दुर्योधन के वध के साथ ही महाभारत के युद्ध का अंत हो गया।

जन्म[संपादित करें]

युधिष्ठिर के जन्म के बाद पाण्डु बहुत प्रसन्न हुए और उसने अपनी पत्नी कुन्ती से एक बलवान पुत्र की भी मांग की। कुन्ती ने पवनदेव की सहायता से भीमसेन को जन्म दिया।

बल[संपादित करें]

भीम के बचपन के बल को लेकर एक बहुत रोचक प्रसंग है। उसके अनुसार भीम को जन्म देते ही कुन्ती उसे पाण्डु के पास ले गई। पाण्डु भीम को देखकर ध्यान लगाने चल दिए। कुन्ती पाण्डु की प्रतीक्षा करते हुए कुटीर के बाहर बैठी हुई थी कि उसी समय वहां एक बाघ आ धमका। बाघ को देखकर कुन्ती बहुत डर गई। कुन्ती को ये तक याद नहीं रहा कि भीम उनके हाथ से छूट गया है। कुन्ती जब भीम को ढूंढते हुए पाण्डु की कुटीर के पास आई तो उन्होंने देखा कि भीम एक शिला पर गिरा हुआ था लेकिन उस शिला के भी टुकड़े टुकड़े हो गए थे। पाण्डु ने भी ये सब देखा और उसे भीम नाम दिया।

दस हजार हाथियों का बल आने का कारण[संपादित करें]

जब सभी पाण्डव हस्तिनापुर आ गए तो एक दिन दुर्योधन ने जल क्रीड़ा का आयोजन किया और भोजन का भी प्रबन्ध वहीं किया। भीम जब सरोवर से बाहर आकर भोजन की मांग करने लगे तो दुर्योधन ने भीम के भोजन में कालकूट विष मिला दिया। भोजन ग्रहण करने के बाद भीम बेहोश हो गए। दुर्योधन और दु:शासन ने शकुनि के साथ मिलकर भीम को बेलों के साथ बांधकर गंगा में फेंक दिया। भीम बेहोशी में नागलोक जा पहुंचे। नागलोक में सर्पों द्वारा डसें जाने पर विष का प्रभाव कम हो गया। भीम ने नागलोक के सभी सर्पों को पटक पटक कर मारा। ये सब देखकर सभी सर्प नागराज तक्षक के पास गए। तक्षक ने भीम को दण्ड देने का आदेश दिया। उसी समय कुन्ती के नाना ने भीम को पहचान लिया और नागराज तक्षक से आग्रह करके भीम को अमृत सोमरस पिलाया। तक्षक ने भीम को बताया कि एक कटोरे में एक हजार हाथियों का बल है। भीम ने दस कटोरे अमृत सोमरास पिया जिससे उनमें दस हजार हाथियों का बल आ गया।

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी सम्पर्क[संपादित करें]