मटौंध

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मटौंध
Mataundh
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मटौंध is located in उत्तर प्रदेश
मटौंध
मटौंध
उत्तर प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 25°27′N 80°09′E / 25.45°N 80.15°E / 25.45; 80.15निर्देशांक: 25°27′N 80°09′E / 25.45°N 80.15°E / 25.45; 80.15
देश भारत
प्रान्तउत्तर प्रदेश
ज़िलाबांदा ज़िला
जनसंख्या (2011)
 • कुल8,278
भाषा
 • प्रचलितहिन्दी, बुंदेली
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)

मटौंध (Mataundh) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा ज़िले में स्थित एक कस्बा है। यहाँ की आबादी लगभग 9,371 है , यह क़स्बा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 27 के मध्य में स्थित है जो झाँसी और प्रयागराज को जोड़ता है यहाँ से जिला मुख्यालय की दूरी 18 किलोमीटर है , यहाँ रेलवे स्टेशन भी है जो कस्बे से 3 किलोमीटर की दूरी पर है कस्बे के दक्षिण में लगभग 15 किलोमीटर बाद मध्यप्रदेश सीमा प्रारंभ हो जाती है , यह क़स्बा नगर पंचायत है और वर्तमान 2022-23 में यहाँ के नव निर्वाचित अध्यक्ष सुधीर सिंह उर्फ़ रामबाबू सिंह हैं जो भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं , यहाँ की जनसँख्या में क्षत्रिय, कुशवाहा , प्रजापति समाज की भूमिका अहम् है

मटौंध का पुरातन इतिहास[संपादित करें]

  • मटौंध कस्बे का इतिहास चंदेल काल से भी पहले का है , लेकिन चंदेल काल में यहाँ तालाबों का निर्माण कराया गया , जिसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं यह बुंदेलखंड क्षेत्र के अंतर्गत आता था , मध्यकाल में यह गाँव गौडवाना का हिस्सा था ,बीसवीं शती के प्रारंभिक दशक में रायबहादुर महाराजसिंह के दीवान प्रतिपाल सिंह ने सम्पूण बुन्देलखण्ड को गौडवाना के राजाओं की देन बताया जिसमे मटौंध भी इसी का हिस्सा था विभिन्न शासकों में मौर्य, सुंग, शक, हुण, कुषाण, नाग, वाकाटक, गुप्त, गौडवाना के राजगौड (गौर)पुलिस्त वंशी ,चंदेल बुंदेला , मराठा और अंग्रेज मुख्य हैं। ई० पू० ३२१ तक वैदिक काल से मौर्यकाल तक का इतिहास वस्तुत: गौडवाना का पौराणिक-इतिहास माना जा सकता है।
  • मटौंध क़स्बा 831 ई0 से 1182 ई० तक चंदेल वंश के अधिकार में रहा , इसके बाद 15०० ई० तक बुंदेला राजाओं के अधीन रहा , परन्तु मुगलों से लडाई जारी रही ,कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1203 ईस्वी में महोबा और कालिंजर का सफाया कर लिया।इनके बीच में होने के कारण मटौंध भी मुगलों के जुल्मों का शिकार हुआ बाद में, परमाला के एक और बेटे ट्रेलोक्य वर्मन ने महोबा और कालींजर को पुनः प्राप्त कर दिया, लेकिन चांदेलों ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। महोबा को अपनी आजादी खोनी पड़ी और दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनना पड़ा। लगभग 2 शताब्दियों की अनिश्चितता के बाद एक उल्लेखनीय चन्देला शासक केरत पाल सिंह ने सत्ता में उठे और कालिंजर और महोबा पर अपने डोमेन को पुनः स्थापित कर लिया और मटौंध भी उनके आधीन दोबारा हो गया
  • 1501 से 1950 ई तक मटौंध बुंदेला राजाओं के आधीन रहा परन्तु 1800 ईस्वी के आसपास में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में दस्तक दे दी थी जब से पहले चंडेला शासक चंद्र-वरमैन ने इसे अपनी राजधानी के रूप में अपनाया था। मोगल काल के दौरान महोबा के राजस्व आकलन पड़ोसी ‘महल’ की तुलना में एक उच्च स्तर की समृद्धि का सुझाव देते हैं। बाद में, छत्रसूल बुंदेला के उदय के साथ, महोबा अपने दम पर पारित कर दिया, लेकिन प्राप्त करने में असफल रहा और उसे पूर्व-अनुष्ठान भी मिला। 17 वीं पंचवर्षीय छत्रसाल में स्वतंत्रता की घोषणा की और औरंगजेब के खिलाफ कड़ा विरोध किया। वह स्थापित एक बुंडेला रियासत और बहादुर शाह मोगल को ‘बुंदेलखंड’ नामक क्षेत्र में अपने सभी अधिग्रहण की पुष्टि करनी थी। फारुख्शीयार के शासनकाल के दौरान छात्रावासों का पुनरुद्धार तब हुआ जब उनके जनरल मोहम्मद खान बंगश ने 1729 ईस्वी में बुंदेलखंड पर हमला किया। और वृद्ध शासक छत्रसाल को पेशवा बाजी राओ से सहायता प्राप्त करना पड़ा। उनके ‘मराठा’ में 70 हजार पुरुष शामिल थे, इंदौर (मालवा) से मारे गए और महोबा और मटौंध में डेरे डाले। उन्होंने जैवतपुर, बेलाल, मुधारी और कुलपहार आदि पर कब्जा कर लिया नवाब बंगहेश की सेनाओं को घेर लिया। पेशवा ने जैतपुर, मुधारी और सलात आदि के घने जंगलों में अपनी सेनाओं का विनाश करके नवाब के ऊपर एक कुचलने की हार की। इस सहायता के लिए छात्राल अपने प्रभुत्व के एक तिहाई मराठा चेतचैन को सौंप दिया उस भाग में मटौंध , महोबा, श्री नगर, जैतपुर, कुलपहर आदि शामिल थे। बाद में, 1803 ईस्वी में संधि बेसीन के तहत मराठों ने बुंदेलखंड क्षेत्र को ब्रिटिश शासकों को सौंप दिया I
  • 1858 ईसा पूर्व तक जलाउन के सुबेदार द्वारा किया गया था मुर्गी को आखिरकार ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जोड़ा गया था। मटौंध को महोबा का उप मुख्यालय हमीरपुर जिले में शामिल किया गया । इसके बाद का इतिहास 1857 ईस्वी में स्वतंत्रता संग्राम के समय मटौंध अंग्रेजों के आधीन था I

मटौंध के लोगों का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान[संपादित करें]

    • रज्जू लोहार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
      मटौंध के बहुत से लोग स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिए जिसमें इतिहास में बाँदा के जमुना प्रसाद बोस के साथ मटौंध के रजवा उर्फ़ रज्जू लोहार का नाम जत्था सेना नायक के नाम से उल्लेखित है जो नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल थे तथा गोवा आजाद कराने के लिए मेरी गोवा यात्रा में भी शामिल हुए ,
    • रज्जू लोहार ने गोवा को आजाद करवाने के लिए गाँव से पैसे इकठा करके सुभाष जी को भेंट किये , उनके साथ मटौंध के ७२ लोगो का जत्था ट्रेन द्वारा नेता जी के साथ गोवा गया और गोवा को मुक्त कराया I
    • मटौंध का समाज उस समय दो धडों में विभाजित था , एक धडा अंग्रेजों से आजादी चाहता था , और दूसरा धड़ा अंग्रेजों की महमान नवाजी के लिए जाना जाता था , और इसी के चलते इस दूसरे धड़े ने मटौंध पर अपनी हुकूमत कायम कर रखी थी , जिनके जुल्म और बादशाहत का शिकार यहाँ की जनता थी , और उसके बाद मटौंध में जमीदारी प्रथा और खाप पंचायत का प्रचलन था जो अंग्रेजों के दिशानिर्देशों के अनुसार मटौंध पर शासन करते थे और ये प्रथा देश की आजादी के कई वर्षों बाद समाप्त हुई I
    • साभार - पुस्तक मेरी गोवा यात्रा (सुभाषचंद्र बोस )

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

मेरी गोवा यात्रा