सदस्य:M Deepak giri goswami

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गोस्वामी समाज को आदि गुरु शंकराचार्य ने बौद्ध धर्म मे धर्मांतरण कर रहे सनातनी लोगो को बचाने के लिये तथा कुछ पथ भ्रष्टी ब्राम्हणो से सनातनी लोगों को बचाने के लिए विद्वान ब्राह्मणों को साथ लेकर दसनाम गोस्वामी समाज की की नीव रखी यह समाज पुरातन शैव परम्परा पर आधारित है इसलिए इनका संबंध भगवान दत्तात्रेय से माना जाता है। इन्हे दसनाम गोस्वामी या गोसाईं भी कहा गया।

कुल दस भागों में इन्हे विभाजित किया गया अर्थात इसमें दश तरह की उपजातिया होती है जिनमे गिरि, पुरी,भारती,पर्वत,सरस्वती,सागर, वन,अरण्य, आश्रम एवं तीर्थ शामिल है इस शीर्षक का मतलब गौ अर्थात पांचो इन्द्रयाँ, स्वामी अर्थात नियंत्रण रखने वाला। इस प्रकार गोस्वामी का अर्थ पांचो इन्द्रयों को वस में रखने वाला होता हैं। यह समाज सम्पूर्ण भारत में फैला है सर्वाधिक गोस्वामी समाज के लोग राजस्थान,मध्यप्रदेश,गुजरात,उत्तराखंड,उड़ीसा,पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, बिहार एवम विदेशो में रहते है ये शिव के उपासक होते है। दिन रात शिव की पुजा करते हैं। जिस करण लोग इन्हें ब्राह्मण समझते है वास्तव में ये शैव परंपरा के ब्रह्मण होते है

इस समाज के लोग प्रायः गेरुआ (भगवा रंग)वस्त्र पहनते है और गले में 54 या 108 रुद्राक्षों की माला पहनते हैं[कृपया उद्धरण जोड़ें] तथा ललाट पर चंदन या राख से तीन क्षैतिज रेखाएं बना लेते, तीन रेखाएं शिव के त्रिशूल का प्रतीक होती है, दो रेखाओं के साथ एक बिन्दी ऊपर या नीचे बनाते, जो शिवलिंग का प्रतीक होती है। ज्यादातर लोग शिखा एवं जनेऊ भी धारण करते हैं, दशनाम गोस्वामी समाज के लोग 'ॐ नमो नारायण' या 'नम: शिवाय' से शिव की आराधना करते हैं। ये साधु अन्य साधुओं की तरह घर घर जाकर पूजन नहीं करते बल्कि इनके स्वयं के मठ मंदिर आश्रम होते हैं जिनमे जाकर इच्क्षुक व्यक्ति इनसे रुद्राभिषेक यज्ञ हवन शिव पूजन कराता है और दीक्षा ले सकता है इसके अलाबा इनका प्रमुख्य कार्य शिव पुराण शिव कथा देवी कथा आदि करना है इन्हें गुरूजी, महाराज जी आदि नामों से पुकारा जाता है ।

इनके अलाबा वैष्णव संप्रदाय, तेलंग समाज भी गोस्वामी सरनेम का प्रयोग करते हैं|