हिन्दी राष्ट्र या सूबा हिन्दुस्तान

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हिन्दी राष्ट्र या सूबा हिन्दुस्तान  
लेखक धीरेन्द्र वर्मा
देश उत्तर प्रदेश, भारत
भाषा हिन्दी भाषा
प्रकाशक लीडर प्रेस
प्रकाशन तिथि 1930
पृष्ठ 96

हिन्दी राष्ट्र या सूबा हिन्दुस्तान भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के हिन्दी भाषा के इतिहासकार धीरेन्द्र वर्मा[1] द्बारा लिखी गई एक पुस्तक है। पुस्तक लीडर प्रेस, इलाहाबाद से 1930 ई में प्रकाशित हुई थी।[2]

सारांश[संपादित करें]

हिन्दी राष्ट्र या सूबा हिन्दुस्तान श्रीमान वर्मा द्बारा लिखे गये पाँच निबन्धों का संकलन है:

  1. राष्ट्र के लक्षण - राष्ट्र शब्द की परिभाषा
  2. क्या भारत एक राष्ट्र है?
  3. हिन्दी राष्ट्र
  4. सूबा हिन्दुस्तान
  5. हिन्दी राष्ट्र को द्दढ़ तथा स्थायी बनाने के उपाय

राष्ट्र के लक्षण - राष्ट्र शब्द की परिभाषा[संपादित करें]

सबसे पहले निबन्ध में वर्मा राष्ट्र के आठ लक्षण बयान करते हैं।

  • देश-सम्बन्धी एकता: राष्ट्र के पास ज़मीन होनी आवश्यक है। 1930 ई में यहुदीयों को एक राष्ट्र इस लिए नही कहा जा सकता था क्यों कि उन के पास ज़मीन नही थी। यह तर्क सोवियत संघ के जोसेफ़ स्टालिन ने भी अपने निबंध ru:Марксизм и национальный вопрос (मार्क्सवाद और राष्ट्रीयता) में भी दिया था।
  • हानि लाभ की एकता: यदी राष्ट्र तर्रकी करता है, तो लगभग सभी लोगों को फायदा होता है और अगर राष्ट्र मुसिबत में है, तो सब को दर्द का अनुभव होता है। यहाँ पर एक उदाहरण है। पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की हार के बाद जर्मन लोगों को मुआवज़ा देना पड़ा था, जिस से तकलीफ उनहीं को हुयी थी, ना कि फरांस या ब्रिटेन को।
  • राज्य की एकता: राष्ट्र में एक ही सरकार होनी ज़रूरी है।
  • भाषा की एकता: राष्ट्र की आधिकारिक एंव लोक भाषा एक होनी चाहीये।
  • धर्म की एकता: एक ही धर्म होने से राष्ट्र निर्माण आसान हो जाता है।
  • वर्ग की एकता: एक ही वर्ग होने से राष्ट्र निर्माण आसान हो जाता है।
  • ऐतिहासिक पूर्वजों पर मान: एक ही इतिहात होने पर गर्व।

क्या भारत एक राष्ट्र है?[संपादित करें]

इस लेख में वर्मा यह साबित करते हैं कि भारत एक राष्ट्र नही है। लेकिन भारत एक उपमहाद्बीप है जिममें कई राष्ट्र रहते हैं, जैसे कि पंजाबी, बंगाली, तमिल, मराठा, और कन्नड़। वह भारतीय राज्यों की तुलना योरपीय देशें से करते है और यह भी कहते हैं कि इतिहात में भारत की भूमि को वर्ष कहा गया है, ना कि राष्ट्र।

  • देश-सम्बन्धी एकता: भारत में देश-सम्बन्धी एकता नही है। मराठी बंगाली या फिर पंजाबी तमिल में कोई खास अपनेपन की भावना नही है। लोग जाती एंव प्रांत के लिहाज़ पर बंटे हुये हैं। हर प्रांत का अफसर अपने इर्द-गिर्द अपने प्रांत या जाति वालो को देखना चाहता है।
  • हानि लाभ की एकता: अनाज के निर्यात पर कर लगाने से पंजाब को अधिक नुक्सान होता है, लेकिन बाकी प्रांतो को कोई खास फर्क नही पड़ता। इसी तरह यदि ब्राहमणों को किसी नौकरी करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाये, तो उसका विरोध शायद ही कोई और जाती के लोग करें।
  • राज्य की एकता: भारत में एक सरकार है।
  • भाषा की एकता: भारत में एक आधिकारिक भाषा है, अंग्रेज़ी। लेकिन ये बाकी भारतीय भाषायों से काफी भिन्न है।
  • धर्म की एकता: भारत में हिन्दू धर्म के बहुत से अनुयायी हैं लेकिन उन में काफी फर्क हैं। मसलन बंगाल की दुर्गा पूजा में गणेश चतुर्थी मनाने वाले मराठी कम ही हिस्सा लेते हैं।
  • वर्ग की एकता: भारत में कई वर्ग हैं, आर्य, मंगोल और द्रविड।
  • ऐतिहासिक पूर्वजों पर मान: भारत के लोगों को ऐतिहासिक पूर्वजों पर मान एक जैसा नही है। मसलन महाराष्ट्र में शिवाजी और पंजाब में रणजीत सिंह।

हिन्दी राष्ट्[संपादित करें]

इस निंबध में वर्मा हिन्दी भाषीयों को खुद पर मान करने का अवाहन करते हैं।[2]

सूबा हिन्दुस्तान[संपादित करें]

इस निंबध में ब्रिटिश राज में सभी हिन्दी भाषी इलाकों को एक सूबा बनाने का विचार रखते हैं। उस सूबे का नाम होगा हिन्दुस्तान। यदि यह सूबा ब्रिटिश हकुमत के लिये बहुत बडा हो, तो वह एक दूसरा विचार रखते है जिस में तीन हिन्दी भाषी सूबे होंगे: राजस्थान, हिन्दुस्तान और बिहार।[1]

हिन्दी राष्ट्र को द्दढ़ तथा स्थायी बनाने के उपाय[संपादित करें]

इस निबंध में वर्मा राजस्थान, हिन्दुस्तान और बिहार में बोलीयों की जगह साहित्यक हिंदी के इस्तेमाल पर ज़ोर देते हैं, हिन्दी लिखने के लिए फ़ारसी लिपी के उपयोग को उचित नही ठहराते एंव सरल साहित्यक हिंदी प्रयोग करने की सलाह देते हैं। इस के इलावा वह इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि हिन्दुस्तान और भारत को प्रायवाची शब्द न समझा जाये। भारत एक उपमहाद्बीप है जिममें कई राष्ट्र रहते हैं और हिन्दुस्तान उन में से एक राष्ट्र है।[1]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. शर्मा, राम विलास. निराला की साहित्य साधना: खंड -1. नयी दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. पृ॰ 69. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-8126704354.
  2. सिंघ, बीरेंद्र. "भारतेन्दुयुगीन साहित्य में जातीय चेतना". हिंदी विभाग. कलकत्ता विश्वविद्यालय. अभिगमन तिथि 2019-10-27. Cite journal requires |journal= (मदद)

बाहरी कडीयां[संपादित करें]