ऊर्जा दक्षता ब्यूरो

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ऊर्जा दक्षता ब्यूरो
Bureau of Energy Efficienccy
चित्र:Bureau of Energy Efficiency, India logo.svg
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (भारत)
संक्षेपाक्षर BEE
स्थापना 1 मार्च 2002; 22 वर्ष पूर्व (2002-03-01)
प्रकार स्वायत्त शासकीय एजेन्सी
वैधानिक स्थिति ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, २००१ के द्वारा निर्मित
मुख्यालय सेवा भवन
स्थान
  • रामकृष्णपुरम, नई दिल्ली - 110066
सेवित
क्षेत्र
भारत
आधिकारिक भाषा
हिन्दी
अंग्रेजी
पैतृक संगठन
विद्युत मंत्रालय (भारत)
जालस्थल beeindia.gov.in

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency) भारत सरकार की एक एजेन्सी है जिसका लक्ष्य ऊर्जा दक्षता की सेवाओं को संस्थागत रूप देना है ताकि देश के सभी क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता के प्रति जागरूकता उत्पन्न हो। इसका गठन ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, २००१ के अन्तर्गत मार्च २००२ में किया गया था और यह यह विद्युत मन्त्रालय के अन्तर्गत कार्य करती है। [1] इस एजेन्सी का कार्य ऐसे कार्यक्रम बनाना है जिनसे भारत में ऊर्जा के संरक्षण और ऊर्जा के उपयोग में दक्षता (एफिसिएन्सी) बढ़ाने में मदद मिले। [2] भारत सरकार का प्रस्ताव है कि सन २०१० के पश्चात भारत में प्रयुक्त कुछ उपकरणों पर ऊर्जा दक्षता ब्यूरो की ऊर्जा-दक्षता-रेटिंग अंकित किया जाना अनिवार्य होगा।[3]

यह ऊर्जा संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत सौंपे गए कार्यों को करने के लिए अभिहित उपभोक्ताओं, अभिहित अभिकरणों और अन्य संगठनों के साथ समन्वय करके वर्तमान संसाधनों और अवसंरचना को मान्यता देने, इनकी पहचान करने तथा इस्तेमाल का कार्य करता है।

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो की भूमिका[संपादित करें]

ऊर्जा संरक्षण अधिनियम में विनियामक (रेगुलेटरी) और संवर्द्धनात्मक कार्यों का प्रावधान है।

विनियामक कार्य[संपादित करें]

बीईई के प्रमुख विनियामक कार्यों में निम्नलिखित कार्य शामिल हैं-

  • उपकरण और उपस्करों के लिए न्यूनतम ऊर्जा निष्पादन मानकों और लेबलिंग डिजाइन का विकास करना
  • विशिष्ट ऊर्जा संरक्षण भवन निर्माण संहिता का विकास करना
  • अभिहित उपभोक्ताओं पर केन्द्रित गतिविधियां
  • विशिष्ट ऊर्जा खपत मानदण्डों का विकास करना
  • उर्जा प्रबन्धकों और उर्जा संपरीक्षकों का प्रमाणन
  • ऊर्जा संपरीक्षकों को प्रत्यायन
  • अनिवार्य ऊर्जा संपरीक्षक का तरीका और आवधिकता निश्चित करना
  • ऊर्जा खपत एवं ऊर्जा संपरीक्षकों की सिफारिशों पर की गई कार्यवाही की रिपोर्ट देने का प्रोफार्मा तैयार करना

संवर्द्धनात्मक कार्य[संपादित करें]

  • ऊर्जा दक्षता और संरक्षण पर जागरूकता उत्पन्न करना एवं इसका प्रसार करना
  • ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण के लिए तकनीकों के कार्मिक और विशेषज्ञों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना और उसका आयोजन करना
  • ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में परामर्शी सेवाओं का सुदृढ़ीकरण
  • अनुसन्धान और विकास का संवर्द्धन
  • परीक्षण और प्रमाणन की पद्धतियों का विकास करना और परीक्षण सुविधाओं का संवर्द्धन करना
  • प्रायोगिक परियोजनाओं तथा निदर्शन परियोजनाओं के कार्यान्वयन का निरूपण एवं सरलीकरण
  • ऊर्जा दक्ष प्रक्रियाओं, उपकरण, युक्तियों और प्रणालियों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना
  • ऊर्जा दक्ष उपकरण अथवा उपस्करों के इस्तेमाल के लिए तरजीही व्यवहार को प्रोत्साहन देने के लिए कदम उठाना
  • ऊर्जा दक्ष परियोजनाओं के नूतन निधियन को बढ़ावा देना
  • ऊर्जा के दक्ष उपयोग को बढ़ावा देने और इसका संरक्षण करने के लिए संस्थाओं को वित्तीय सहायता देना
  • ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण पर शैक्षणिक पाठ्यक्रम तैयार करना
  • ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण से सम्बन्धित अंतरराष्ट्रीय सहयोग के कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना

बीईई स्टार रेटिंग कार्यक्रम[संपादित करें]

बीईई विभिन्न उपकरणों की स्टार रेटिंग आकलन के लिए मानकों और लेबल सेटिंग के कार्य में निरंतर अग्रसर रहती है। वह परीक्षण और प्रमाणीकरण प्रक्रियाओं का विकास और परीक्षण सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए निरन्तर कार्यशील रहती है। वह उपकरणों के सभी प्रकार के परीक्षण और प्रमाणन प्रक्रियाओं को परिभाषित करने का कार्य करती है। निर्माता जब भी कोई नया मॉडल का निर्माण करता हैं, वह यह जरूर चाहता है कि उसका उत्पाद अवश्य प्रमाणित हो जाए। वे बीईई द्वारा डिजाइन प्रक्रियाओं के अनुसार अपने उपकरणों का परीक्षण करने के उपरान्त, प्राप्त आंकड़ों के साथ स्टार प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करते हैं। परीक्षण के आंकड़ों के आधार पर बीईई इन उपकरणों के लिए एक स्टार रेटिंग प्रदान करता है। बीईई समय-समय पर मानकों और प्रमाणीकरण प्रक्रियाओं को परिष्कृत भी करता रहता है।

चिलर का स्टार अंकन[संपादित करें]

चिलर (Chiller) एक मशीन है जो वाष्प-संपीडन (vapour-compression) या अवशोषण प्रशीतन चक्र (absorption refrigeration cycle) के माध्यम से द्रव से गर्मी को हटा देती है। इसका व्यापक उपयोग भवनों में अंतर्निहित जगह के वातानुकूलन के लिए तथा औद्योगिक प्रक्रियाओं से जुड़े शीतलन में किया जाता है।

वाणिज्यिक भवनों में 40 प्रतिशत से भी अधिक ऊर्जा की खपत चिलर ही करते हैं, इसलिए चिलर को ऊर्जा गहन प्रणाली माना जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए चिलर ऊर्जा की खपत को कम करना और इसके इस्तेमाल करने वालों के बीच जागरूकता पैदा करना आवश्यक है, ताकि लोग कम ऊर्जा खपत वाले चिलर का इस्तेमाल करने की ओर अग्रसर हो सकें। अतः भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने देश भर में कम ऊर्जा खपत वाली चिलर प्रणालियाँ लगाने को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 'चिलर स्टार लेबलिंग' कार्यक्रम की शुरुआत की है जिसे ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) ने तैयार किया है।[4]

इस कार्यक्रम के तहत इनके द्वारा ऊर्जा की खपत करने की दृष्टि से इन्हें स्टार रेटिंग प्रदान करने की परिकल्पना की गई है। आरम्भ में इस कार्यक्रम को स्वैच्छिक आधार पर शुरू किया गया है जो 31 दिसम्बर, 2020 तक मान्य रहेगा। बीईई ने इस पहल के तहत आसान एवं त्वरित स्वीकृति के लिये एक ऑनलाइन पंजीकरण प्लेटफॉर्म विकसित किया है। चिलर उपकरण की उपयुक्त स्टार रेटिंग से लाभ उठाने के लिये निर्माता ऑनलाइन पंजीकरण करा सकते हैं। नामित एजेंसियों से प्राप्त परीक्षण प्रमाण-पत्र के साथ-साथ बीईई की ओर से निर्धारित सत्यापन हो जाने के बाद स्टार लेबल प्रदान किया जाता है जो 1 से लेकर 5 तक की संख्या है। '5 स्टार' प्राप्त करने वाले उपकरण को सबसे कम ऊर्जा खपत वाला (सबसे दक्ष) चिलर माना जाएगा।

राज्य ऊर्जा दक्षता तत्परता सूचकांक, 2018[संपादित करें]

जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए ऊर्जा दक्षता ब्यूरो तथा ऊर्जा दक्ष अर्थव्यवस्था हेतु गठबंधन (AEEE) ने मिलकर 1 अगस्त, 2018 को भारत का पहला 'राज्य ऊर्जा दक्षता तैयारी सूचकांक' (State Energy Efficeiency Preparedness Index / SEEPI) जारी किया। यह राज्य ऊर्जा दक्षता तैयारी सूचकांक का पहला संस्करण है।यह सूचकांक देश के सभी राज्यों में ऊर्जा उत्सर्जन के प्रबंधन में होने वाली प्रगति की निगरानी करने, इस दिशा में राज्यों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करने और कार्यक्रम कार्यान्वयन में सहायता प्रदान करेगा। ऊर्जा दक्षता सूचकांक इमारतों, उद्योगों, नगरपालिकाओं, परिवहन, कृषि और बिजली वितरण कंपनियों जैसे क्षेत्रों के 63 संकेतकों पर आधारित है।

ये संकेतक नीति और विनियमन, वित्तपोषण तंत्र, संस्थागत क्षमता, ऊर्जा दक्षता उपायों को अपनाने और ऊर्जा बचत प्राप्त करने जैसे मानकों पर आधारित हैं। बीईई के अनुसार, ऊर्जा दक्षता प्राप्त करके भारत 500 बिलियन यूनिट ऊर्जा की बचत कर सकता है और 2030 तक 100 गीगावाट बिजली क्षमता की आवश्यकता को कम कर सकती है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में लगभग 557 मिलियन टन की कमी हो सकती है। इसके अन्य मापकों में विद्युत वाहनों (EVs) के माध्यम से भारत के विकास की गतिशीलता को फिर से परिभाषित करना तथा विद्युत उपकरणों, मोटरों, कृषि पम्पों तथा ट्रैक्टरों और यहां तक कि भवनों की ऊर्जा दक्षता में सुधार लाना शामिल है।

प्रमुख बिंदु
  • (१) राज्यों को पांच क्षेत्रकों यथा- भवन, उद्योग, नगर निगम, परिवहन, कृषि व डिस्कॉम में 63 संकेतकों (पैरामीटर्स) पर मापा गया है।
  • (२) राज्यों को उनके प्रदर्शन के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा गया है : अग्रगामी (फ्रंट रनर), लब्धकर्ता (एचीवर), प्रतिस्पर्धी (कंटेंडर) व आकांक्षी (ऐस्पिरैंट)। सूचकांक में 60 से अधिक अंक पाने वाले राज्यों को 'अग्रगामी', 50-60 तक अंक पाने वाले राज्यों को 'लब्धकर्ता', 30-49 तक अंक पाने वाले राज्यों को 'प्रतिस्पर्धी' और 30 से कम अंक पाने वाले राज्यों को 'आकांक्षी' श्रेणी में रखा गया है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "THE ENERGY CONSERVATION ACT, 2001 No 52 OF 2001, Chapter III" (PDF). www.beeindia.in. मूल (PDF) से 24 मार्च 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मई 2015.
  2. "The Action plan for Energy efficiency". The Day After. 1 अगस्त 2009. मूल से 3 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 अगस्त 2009.
  3. "Mandatory energy efficiency ratings in the offing". Sify. 31 जुलाई 2009. पृ॰ 1. मूल से 1 मार्च 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अगस्त 2009.
  4. इमारतों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए ऊर्जा दक्षता ब्‍यूरो और केंद्रीय सार्वजनिक निर्माण विभाग ने समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्‍ताक्षर किए

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]