भारतीय संविधान का 35अ अनुच्छेद

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भारतीय संविधान का 35अ अनुच्छेद एक अनुच्छेद था जो जम्मू और कश्मीर राज्य विधानमण्डल को "स्थायी निवासी" परिभाषित करने तथा उन नागरिकों को विशेषाधिकार प्रदान करने का अधिकार देता था। जिसे दिनांक 5 अगस्त 2019 को निरस्त कर दिया गया था ।[1][2] यह भारतीय संविधान में जम्मू और कश्मीर सरकार की सहमति से राष्ट्रपति के आदेश पर जोड़ा गया था , जो कि भारत के राष्ट्रपति द्वारा 14 मई 1954 को जारी किया गया था। यह अनुच्छेद ३७० के खण्ड (1) में उल्लेखित है।[3]

अनुच्छेद का पाठ[संपादित करें]

"स्थायी नागरिकों के अधिकारों के संबंधित कानूनों का संरक्षण करना — संविधान में कुछ भी हो फिर भी, कोई भी वर्तमान कानून जम्मू और कश्मीर राज्य में तथा भविष्य में राज्य विधानमंडल द्वारा क्रियान्वयित नहीं होगा:[4]

(अ) जम्मू और कश्मीर राज्य स्थायी नागरिक कौन हैं अथवा होंगे इसे परिभाषित करना; या

(ब) ऐसे स्थायी नागरिकों को विशेषाधिकार प्रदान करना तथा अन्य व्यक्तियों पर इन क्षेत्रों में प्रतिबन्ध लगाना—

  • (i) राज्य सरकार में नौकरी
  • (ii) राज्य की अचल सम्पत्ति का अधिग्रहण
  • (iii) राज्य में बसना; या
  • (iv) राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति या ऐसी कोई अन्य सहायता

अन्य भारतीय नागरिकों को इस आधार पर नहीं दी जाएगी क्योंकि यह स्थायी नागरिकों के लिये असंगत या उनको प्रदत्त विशेषाधिकारों का हनन होगा।

क्रियान्वयन[संपादित करें]

संवैधानिक (जम्मू और कश्मीर में विनियोग) आदेश 1954, राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा अनुच्छेद ३७० के अन्तर्गत जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व वाली संघीय सरकार से सलाह के पश्चात जारी किया गया। यह जवाहलाल नेहरु तथा जम्मू और कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के मध्य हुए "1952 दिल्ली समझौते" के बाद जारी किया गया, जो जम्मू और कश्मीर के "राज्य विषयों" के साथ वहाँ के नागरिकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के सम्बन्ध में था।[5][6][7]

इस अधिनियम के पश्चात जम्मू और कश्मीर राज्य को भारतीय संविधान के राज्य में विस्तार का अधिकार मिल गया। अतः इस अनुच्छेद को धारा ३७० के अपवाद के रूप में देखा गया, जो कि इसी अनुच्छेद के खण्ड (1)(ड) में उल्लेखित है।[5][6][8]

यह अनुच्छेद संविधान में राष्ट्रपति आदेश द्वारा बिना संसद में चर्चा हुए लागू हुआ, जिससे आज भी इसके क्रियान्वयन के तरीके को लेकर सवाल उठाये जाते हैं।[9]

स्थायी निवासी[संपादित करें]

17 अगस्त 1956 को लागू हुए जम्मू और कश्मीर का संविधान ने स्थायी निवासियों की परिभाषा दी है, जिसके अनुसार 14 मई 1954 से, या 10 साल पहले से राज्य में रह रहे निवासी जिन्होंने राज्य की अचल सम्पत्ति क़ानूनी तरीके से प्राप्त की हो, उसे राज्य का स्थायी नागरिक माना जायेगा।[1][10] जम्मू और कश्मीर सरकार ही स्थायी निवासियों की परिभाषा बदल सकती है, जिसे विधानमंडल के दोनों सदनों से दो-तिहाई बहुमत से पास कराना पड़ेगा।

  • जम्मू और कश्मीर संविधान सभा ने जम्मू और कश्मीर का संविधान में अनुभाग 51 (विधानमंडल की सदस्यता हेतु योग्यताएँ – कोई भी व्यक्ति विधानमंडल का सदस्य तब तक नहीं बन सकता जब तक वह राज्य का स्थायी निवासी न हो), अनुभाग 127 व अनुभाग 140 में इसका उल्लेख किया है।
  • वह व्यक्ति जो जम्मू और कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं है, राज्य में सम्पत्ति नहीं खरीद सकता।
  • वह व्यक्ति जो जम्मू और कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं है, जम्मू और कश्मीर सरकार की नौकरियों के लिये आवेदन नहीं कर सकता।
  • वह व्यक्ति जो जम्मू और कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं है, जम्मू और कश्मीर सरकार के विश्विद्यालयों में दाखिला नहीं ले सकता, न ही राज्य सरकार द्वारा कोई वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Origin of Jammu and Kashmir: Analysis of Article 370 in Present Scenario". LexHindustan (अंग्रेज़ी में). मूल से 12 अक्टूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 मार्च 2017.
  2. राशिद, डी॰ ए॰. "'If Article 35A goes, all Presidential Orders from 1950-75 will go'". ग्रेटर कश्मीर. मूल से 23 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 मार्च 2017.
  3. "The Constitution (Application to Jammu and Kashmir) Order, 1954" (PDF). मूल (PDF) से 4 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अगस्त 2015.
  4. The Constitution (Application to Jammu and Kashmir) Order, 1954
  5. "JK ready to defend Article 35-A in Supreme Court". ग्रेटर कश्मीर. मूल से 23 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 मार्च 2017.
  6. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Noorani नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  7. "What Delhi Agreement of 1952 is all about". कश्मीर रीडर. 22 सितम्बर 2016. मूल से 16 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 मार्च 2017.
  8. Srinath Raghavan, Kashmir’s Article 35A conundrum: New Delhi must tread carefully Archived 2017-08-10 at the वेबैक मशीन, हिंदुस्तान टाइम्स, 3 अगस्त 2017.
  9. "Denial of Citizenship Rights to the J&K Migrants under Article 35A: A Debate'" (अंग्रेज़ी में). मूल से 25 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 मार्च 2017.
  10. दस गुप्ता, जम्मू और कश्मीर 2012, पृ॰प॰ 225–226.