धनदेव का अयोध्या अभिलेख

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
धनदेव का अयोध्या अभिलेख
प्राचीन संस्कृत अभिलेख
सामग्रीप्रस्तर
लेखनसंस्कृत
कृतिईसापूर्व प्रथम शताब्दी
स्थानअयोध्या (उत्तर प्रदेश)
अवस्थितिरणोपाली आश्रम, श्री उदासीन संगत ऋषि आश्रम
रणोपाली आश्रम, अयोध्या is located in भारत
रणोपाली आश्रम, अयोध्या
रणोपाली आश्रम, अयोध्या
रणोपाली आश्रम, अयोध्या (भारत)

धनदेव का अयोध्या अभिलेख एक प्राचीन प्रस्तर अभिलेख है जो ईसापूर्व पहली शताब्दी के भारतीय शासक धनदेव के काल की है। धनपाल देव राजवंश के राजा थे।[1][2][3] उन्होने कोशल राज्य के अयोध्या नगरी से शासन चलाया। धनदेव का नाम प्राचीन सिक्कों एवं अभिलेखों में मिलता है। श्री पी एल गुप्त के कथनानुसार, ईसापूर्व १३० ई से १५८ ई (ईसा पश्चात) की कालावधि में पन्द्रह शासकों ने अयोध्या से शासन संभाला जिसमें धनदेव भी सम्मिलित हैं। इन शासकों द्वारा प्रचलित सिक्के प्राप्त हुए हैं। इनके नाम ये हैं- मूलदेव, वायुदेव, विशाखदेव, धनदेव, अजवर्मन, संघमित्र, विजयमित्र, सत्यमित्र, देवमित्र, और आर्यमित्र। [4] दिनेशचन्द्र सरकार ने इस अभिलेख का काल प्रथम शताब्दी (ईसा पश्चात) निर्धारित किया है। [5] यह अभिलेख संस्कृत भाषा में लिखा है और संस्कृत में लिखे प्राचीनतम अभिलेखों में से एक है।

अभिलेख क्षतिग्रस्त अवस्था में है। इसमें सेनापति पुष्यमित्र शुंग और उसके उत्तराधिकारी 'धन-' का उल्लेख है। उसके द्वारा अश्वमेध यज्ञ करने का उल्लेख है।[6]

कोसलाधिपेन द्विररश्वमेधयाजिनः सेनापतेः पुष्पमित्रसुंगस्य षष्ठेन कोशिकीपुत्रेण धनदेवेन धर्मराज्ञा पितुः फल्गुदेवस्य केतन कारितं।।
(अर्थ : दो अश्वमेध यज्ञ करने वाले सेनापति पुष्यमित्र सुंग के कौशिकीपुत्र कोसलाधिप धनदेव ने अपने पिता धर्मराज फल्गुदेव का केतन (ध्वज स्तम्भ) बनवाया।)

यह अभिलेख अयोध्या से डेढ़ किमी दूर बने रणोपाली भवन में बाबा सन्तबख्श की समाधि के पूर्वी द्वार के चौखट-ललाट (सिरदल) से प्राप्त हुआ है। लगता है कि यह कहीं वहीं आसपास मिट्टी में दबा मिला होगा जिसे अनजाने में इस चौखट पर किया गया होगा। इसका उद्धार किसी इतिहास-संरक्षी व्यक्ति की दृष्टि पड़ने पर हुई होगी। [7]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. P. K. Bhattacharyya. Historical Geography of Madhyapradesh from Early Records. Motilal Banarsidass. पपृ॰ 9 footnote 6. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-3394-4.
  2. Ashvini Agrawal (1989). Rise and Fall of the Imperial Guptas. Motilal Banarsidass. पृ॰ 126. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-0592-7.
  3. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; bhandare77 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  4. P.L. Gupta (1969), Conference Papers on the Date of Kaniṣka, Editor: Arthur Llewellyn Basham, Brill Archive, 1969, p.118
  5. डी सी सरकार (1965), Select Inscriptions, Volume 1, 2nd Edition, pages 94-95 and footnote 1 on page 95
  6. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; sahnidhana नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  7. भारतीय पुरालेखों का अध्ययन, पृष्ट १६९-१७० Archived 2018-11-10 at the वेबैक मशीन (गूगल पुस्तक ; लेखक- शिव स्वरूप सहाय)

इन्हें भी देखें[संपादित करें]