सुशीला सामद

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सुशीला सामद या सुशीला सामंत (7 जून 1906-10 दिसंबर 1960) हिंदी की पहली भारतीय आदिवासी कवयित्री, पत्रकार, संपादक और स्वतंत्रता आंदोलनकारी हैं।[1] हिंदी कविता में ये महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमार चौहान की समकालीन हैं।[2] पश्चिमी सिंहभूम के चक्रधरपुर स्थित लउजोड़ा गांव में मां लालमनी सांडिल और पिता मोहनराम सांडिल के घर इनका जन्म हुआ था। 1931 में सुशीला सामद ने प्रयाग-महिला-विद्यापीठ से प्रवेशिका की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। फिर 1932 में वहीं से सफलतापूर्वक विनोदिनी और 1934 में विदुषी (बी.ए. ऑनर्स) की शिक्षा पूरी की। इस प्रकार हिंदी माध्यम से ‘हिंदी विदूषी’ होने का गौरव हासिल करने वाली वह भारत की प्रथम आदिवासी महिला भी हैं।[3]

सुशीला सामद मात्र एक कवयित्री ही नहीं हैं, बल्कि 1925-30 के दौर में वे एक साहित्यिक-सामाजिक पत्रिका ‘चाँदनी’ का संपादन-प्रकाशन भी कर रही थीं और तत्कालीन बिहार में गांधी की एकमात्र आदिवासी महिला ‘सुराजी’ आंदोलनकर्ता भी थीं। वे एमएलसी भी रहीं[4] और सामाजिक-सांस्कृतिक, साहित्यिक दायित्वों का निर्वाह भी सुसंगठित तरीके से किया। इनके दो काव्य संग्रह प्रकाशित है: 1935 में ‘प्रलाप’ और 1948 में ‘सपने का संसार’।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. भारत की पहली महिला आदिवासी संपादक - सुशीला सामद | https://www.facebook.com/AdivasiLiterature/photos/a.159734160887444/218793921648134/?type=1&theater
  2. सजग ऐंद्रिय बोध और वस्तु-पर्यवेक्षण की कविताएँ | https://samkaleenjanmat.in/2018/08/26/
  3. प्रलाप, पृ 7-8 | https://books.google.co.in/books?id=RpxVDwAAQBAJ Archived 2018-10-03 at the वेबैक मशीन
  4. The Bihar Gazette, 1959, p. 546 | https://books.google.co.in/books?id=AxvOtTEIsTEC& Archived 2018-10-03 at the वेबैक मशीन