बच्चों में मोटापा

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Childhood obesity
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
Children with varying degrees of body fat.
आईसीडी-१० E66.
आईसीडी- 278
डिज़ीज़-डीबी 9099
मेडलाइन प्लस 003101
ईमेडिसिन med/1653 
एम.ईएसएच C23.888.144.699.500

बाल्यकाल स्थूलता एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में उपस्थित अतिरिक्त वसा बच्चे के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। चूंकि प्रत्यक्ष रूप से शारीरिक वसा के मापन की विधियां कठिन हैं, मोटापे या स्थूलता का निदान अक्सर बीएमआई पर आधारित होता है। बच्चों में स्थूलता या मोटापे की स्थिति बढती जा रही है और मोटापा स्वास्थ्य पर कई प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसीलिए इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य से सम्बंधित एक गंभीर चिंता का विषय माना जाता है।[1] ऐसे बच्चों को अक्सर स्थूलता से पीड़ित नहीं कहा जाता बल्कि ऐसा कहा जाता है कि उनका वजन अधिक है या वे ओवरवेट हैं, क्योंकि यह सुनने में कम बुरा लगता है।[2]

वर्गीकरण[संपादित करें]

2 से 20 वर्ष की उम्र के लड़कों के लिए आयु प्रतिशतक के लिए बीएमआई.
2 से 20 वर्ष की उम्र की लड़कियों के लिए आयु प्रतिशतक के लिए बीएमआई

दो साल या इससे अधिक उम्र के बच्चों में स्थूलता के निर्धारण के लिए बॉडी मास इंडेक्स (शरीर भार सूचकांक) (बीएमआई) एक स्वीकार्य तरीका है।[3] बच्चों में बीएमआई की सामान्य रेंज आयु और लिंग पर निर्भर करती है। रोग नियंत्रण केंद्र (The Center for Disease Control) के अनुसार बीएमआई का 95 परसेंटाइल से अधिक होना स्थूलता को इंगित करता है। बच्चों में इसके निर्धारण के लिए प्रकाशित सारणियाँ हैं।[4]

स्वास्थ्य पर प्रभाव[संपादित करें]

मोटापे या स्थूलता से ग्रस्त बच्चों में पहली समस्या यह होती है कि वे आमतौर पर भावुक होते हैं या मनोवैज्ञानिक रूप से समस्याग्रस्त होते हैं।[5] बच्चों में मोटापा जीवन भर के लिए खतरनाक विकार भी उत्पन्न कर सकता है जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, निद्रा रोग, कैंसर और अन्य समस्याएं.[6][7] कुछ अन्य विकारों में यकृत रोग, यौवन आरम्भ का जल्दी होना, या लड़कियों में मासिक धर्म का जल्दी शुरू होना, आहार विकार जैसे एनोरेक्सिया और बुलिमिया, त्वचा में संक्रमण और अस्थमा और श्वसन से सम्बंधित अन्य समस्याएं शामिल हो सकती हैं।[8] अध्ययनों से पता चला है कि अधिक वजन वाले बच्चों में व्यस्क होने पर भी अधिक वजन बने रहने की संभावना अधिक होती है।[7] ऐसा भी पाया गया है कि किशोरावस्था के दौरान स्थूलता व्यस्क अवस्था में मृत्यु दर को बढाती है।[9]

मोटे बच्चों को अक्सर उनके साथी चिढ़ाते हैं।[10][11] ऐसे कुछ बच्चों के साथ तो खुद उनके परिवार के लोगों के द्वारा भेदभाव किया जाता है।[11] इससे उनके आत्मविश्वास में कमी आती है और वे अपने आत्मसम्मान को कम महसूस करते हैं और अवसाद से भी ग्रस्त हो सकते हैं।[12]

2008 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि स्थूलता से पीड़ित बच्चों में कैरोटिड धमनियां समय से पहले इतनी विकसित हो जाती हैं जितनी कि तीस वर्ष की उम्र में विकसित होनी चाहिए, साथ ही उनमें कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी असामान्य होता है।[13]

प्रणाली स्थिति प्रणाली स्थिति
अंत: स्राव (एन्डोक्राइन)
  • विकास और यौवन आरम्भ पर प्रभाव
  • बंध्यता (Nulliparity) और बांझपन (nulligravidity)[14]
कार्डियोवैस्कुलर (हृदयवाहिका से संबंधित)
अमाशय-आंत्रीय (Gastroentestinal)
  • गैर-अल्कोहलिक वसा यकृत रोग
  • पित्तपथरी (कोलेलिथियेसिस)
श्वसन संबंधी
  • ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया
  • स्थूलता हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम
पेशीकंकालीय (Musculoskeletal)
  • स्लिप्ड केपिटल फेमोरल एपीफाइसिस (SCFE)
  • टिबिअ वारा (ब्लाउंट रोग)
स्नायु संबंधी (Neurological)
  • इडियोपेथिक इंट्राक्रेनिअल हाइपरटेंशन
साइकोसोशल (मनो सामाजिक)
  • विकृत सहकर्मी सम्बन्ध
  • आत्म सम्मान या आत्मविश्वास में कमी[15]
  • व्यग्रता या चिंता
  • अवसाद
त्वचा
  • फुरुन्कुलोसिस
  • त्वग्वलिशोथ (Intertrigo)

[16]

कारण[संपादित करें]

जैसा कि कई स्थितियों में होता है, बच्चों में मोटापा कई कारकों के कारण होता है, जो अक्सर संयोजन में काम करते हैं।[17][18][19][20][21]

आहार-संबंधी[संपादित करें]

बच्चों में मोटापे पर खाने की आदतों के प्रभाव को निर्धारित करना मुश्किल है। तीसरी श्रेणी के 1704 बच्चों में तीन साल का एक यादृच्छिक नियंत्रित अध्ययन किया गया, इस दौरान बच्चों को एक दिन में दो बार स्वस्थ आहार के साथ व्यायाम भी करवाया गया। इस अध्ययन में पाया गया नियंत्रित समूह की तुलना में आहार परामर्श शारीरिक वसा की प्रतिशतता को कम करने में ज्यादा कारगर साबित नहीं हुआ। यह आंशिक रूप से इस तथ्य के कारण था कि हालांकि ऐसा माना जा रहा था कि बच्चे कम खा रहे हैं, वास्तव में उनका कैलोरी उपभोग हस्तक्षेप के द्वारा कम नहीं हुआ। साथ ही प्रेक्षित ऊर्जा व्यय समूहों के बीच समान बना रहा. ऐसा तब भी हुआ जब आहार वसा के सेवन को 34 प्रतिशत से कम करके 27 प्रतिशत तक कर दिया गया।[22] 5106 बच्चों में किये गए एक और अध्ययन में भी इसी तरह के परिणाम सामने आये. हालांकि बच्चे बेहतर आहार ले रहे थे, फिर भी बीएमआई पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.[23]

क्यों इन अध्ययनों से बच्चों में मोटापे पर वांछित प्रभाव क्यों नहीं पड़ा, इसका कारण या था कि हस्तक्षेप पर्याप्त नहीं था। प्राथमिक रूप से परिवर्तन स्कूल के वातावरण में किये गए, जबकि ऐसा माना जाता है कि ऐसे परिवर्तन घर, समुदाय और स्कूल में एक साथ किये जाने चाहियें ताकि वांछित परिणाम प्राप्त किया जा सके.[24]

कैलोरी युक्त पेय और खाद्य पदार्थ बच्चों को आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। चीनी से भरी हुई सोफ्ट-ड्रिंक्स का उपभोग बच्चों में मोटापे में बहुत अधिक योगदान देता है। 19 महीने तक 548 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि प्रति दिन एक अतिरिक्त सोफ्ट ड्रिंक पीने से स्थूलता की संभावना 1.6 गुना तक बढ़ जाती है।[25]

कैलोरी से युक्त, तैयार स्नैक्स भी बच्चों को आसानी से कई जगहों पर मिल जाते हैं। क्योंकि बच्चों में स्थूलता बढती जा रही है, कुछ स्थानों में कानून के द्वारा स्नैक्स बेचने वाली मशीनों को कम कर दिया गया है। युवा फास्ट फ़ूड रेस्तरां में खाना बहुत पसंद करते हैं, 7 वीं से 12 वीं कक्षा के 75 प्रतिशत छात्र फास्ट फूड खाते हैं।[26]

फास्ट फ़ूड उद्योग भी बच्चों में मोटापा बढ़ने में काफी योगदान दे रहा है। इस उद्योग लगभग 42 बिलियन डॉलर विज्ञापन पर खर्च करता है, जिसमें छोटे बच्चों को मुख्य रूप से लक्ष्य बनाया जाता है। अकेले मैकडॉनल्ड्स की तेरह वेबसाइटें हैं जिसे हर महीने 365,000 बच्चे और 294,000 किशोर देखते हैं। इसके अतिरिक्त, फास्ट फूड रेस्तरां बच्चों को भोजन के साथ खिलौने देते हैं, जो बच्चों को लुभाने में मदद करता है। चालीस प्रतिशत बच्चे लगभग रोज़ अपने माता पिता को फास्ट फूड रेस्तरां ले जाने के लिए कहते हैं। फास्ट फूड रेस्तरां में मिलने वाले 3000 लोकप्रिय व्यंजनों में से केवल 13 ऐसे व्यंजन हैं जो छोटे बच्चों के लिए पोषण सम्बन्धी दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हैं, यह स्थिति को बदतर बनाने के लिए काफी है।[27]

फास्ट फ़ूड के उपभोग और मोटापे के बीच कुछ सम्बन्ध तो पाया ही गया है।[28] ऐसे ही एक अध्ययन में पाया गया कि स्कूल के पास फास्ट फूड रेस्तरां का होना बच्चों में स्थूलता के जोखिम को बढ़ता है।[29]

सिर्फ दूध पीने के बजाय 2 प्रतिशत दूध का उपभोग एक से दो साल के बच्चों में उंचाई, वजन, या शारीरिक वसा की प्रतिशतता को प्रभावित नहीं करता. इसलिए, इस आयु वर्ग के लिए केवल दूध के उपभोग की सलाह ही दी जाती है। हालांकि दूध से युक्त मीठे पेय विकल्पों के उपभोग की प्रवृति बढ़ गयी है, जो बेवजह मोटापे का कारण बनती है।[30]

गतिहीन जीवन शैली[संपादित करें]

शारीरिक रूप से बच्चों का निष्क्रिय होना भी स्थूलता का एक गंभीर कारण है, जो बच्चे नियमित रूप से शारीरिक गतिविधियां नहीं करते, उनमें स्थूलता की संभावना अधिक होती है। शोधकर्ताओं ने तीन सप्ताह की अवधि के लिए 133 बच्चों में शारीरिक गतिविधियों का अध्ययन किया, इसमें हर बच्चे की शारीरिक गतिविधि के स्तर के मापन के लिए एक्स्लेरोमीटर का उपयोग किया गया। उन्होंने पाया कि सामान्य बच्चों की तुलना में मोटे बच्चे स्कूल के दिनों में 35% कम सक्रिय थे और 65% बच्चे सप्ताहांत पर कम सक्रिय थे।

एक बच्चे में शारीरिक निष्क्रियता उसकी व्यस्क अवस्था में भी शारीरिक निष्क्रियता का कारण बन सकती है। 6000 वयस्कों के एक फिटनेस सर्वेक्षण में शोधकर्ताओं ने पाया कि 14 से 19 वर्ष की उम्र के बीच सक्रिय रहे लोगों में 25 प्रतिशत सक्रिय व्यस्क थे और इसी आयुवर्ग में निष्क्रिय रहे लोगों में से केवल 2 प्रतिशत ही सक्रिय व्यस्क थे।[31] शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहने से शरीर में अप्रयुक्त ऊर्जा जमा हो जाती है, जिसमें से अधिकांश ऊर्जा वसा के रूप में संचित हो जाती है। एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 14 दिन के लिए 16 पुरुषों को उनकी प्रतिदिन की ऊर्जा आवश्यकता की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक खिलाया, यह अतिरिक्त भोजन उन्हें वसा और कार्बोहाइड्रेट के रूप में दिया गया। उन्होंने पाया कि अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट खिलाने से उनके शरीर में 75–85% अतिरिक्त ऊर्जा शारीरिक वसा के रूप में संचित हो गयी और अतिरिक्त वसा खिलाने से उनके शरीर में 90–95% अतिरिक्त ऊर्जा शारीरिक वसा के रूप में संचित हो गयी।[32]

कई बच्चे शारीरिक व्यायाम नहीं कर पाते क्योंकि वे स्थिर गतिविधियों में अपना समय बिताते हैं जैसे कंप्यूटर का उपयोग करना, वीडियो गेम खेलना या टीवी देखना. टीवी और इसी प्रकार की अन्य तकनीकें बच्चों में शारीरिक व्यायाम की कमी का एक बड़ा कारण हैं। शोधकर्ताओं ने 14, 16 और 18 वर्ष के 4561 बच्चों को एक तकनीकी प्रश्नावली दी.

उन्होंने पाया कि प्रति दिन 4 घंटे से ज्यादा टीवी देखने वाले बच्चों में मोटापे की संभावना 21.5% अधिक होती है, प्रतिदिन एक या अधिक घंटों तक कंप्यूटर का उपयोग करने वाले बच्चों में मोटापे की संभावना 4.5% अधिक होती है और वीडियो गेम खेलने से उनके वजन पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता.[32] एक यादृच्छिक परीक्षण से पता चला है कि टीवी और कंप्यूटर का उपयोग कम करने से आयु-समायोजित बीएमआई कम हो सकता है; कैलोरी का अंतर्ग्रहण कम करने से बीएमआई को कम करने में भी योगदान मिलता है।[33]

अकेले प्रौद्योगिकीय गतिविधियां ही बच्चों में मोटापे को प्रभावित नहीं करती हैं। कम आय वाले परिवारों के बच्चों में भी वजन बढ़ने की प्रवृति ज्यादा होती है। शोधकर्ताओं ने 11 से 12 वर्ष के 194 बच्चों में तीन सप्ताह तक अध्ययन किया, इस दौरान उनकी सामाजिक-आर्थिक अवस्था और शरीर के भार के बीच सम्बन्ध का अध्ययन किया गया। इसमें शरीर के वजन, कमर की परिधि, कद, त्वचा के वलनों, शारीरिक गतिविधी, टीवी देखना और एसईएस का मापन किया गया; शोधकर्ताओं ने पाया कि निम्न वर्ग की तुलना में उच्च वर्ग के बच्चों में स्पष्ट एसईएस है।[34]

संयुक्त राज्य अमेरिका में बच्चों में निष्क्रियता स्थूलता का मुख्य कारण है, ज्यादातर बच्चे कम उम्र में में ओवरवेट हो जाते हैं। 2009 एक पूर्वस्कूली अध्ययन में पाया गया कि 89 प्रतिशत पूर्व स्कूली बच्चों का दिन गतिहीन रहता है और इसी अध्ययन में यह भी पाया गया कि यहां तक कि जब बच्चे घर से बाहर होते हैं तब भी 56 प्रतिशत गतिविधियां स्थिर प्रवृति की ही होती हैं। ऐसा माना जाता है कि अध्यापक के द्वारा प्रेरणा की कमी गतिविधी की कमी का एक कारण है,[35] लेकिन जब खिलौने, जैसे गेंद आदि उपलब्ध करायी जाती है, बच्चों के खेलने की संभावना बढ़ जाती है।[35]

आनुवांशिकी[संपादित करें]

आनुवंशिक और पर्यावरणी कारक भी अक्सर बच्चों में मोटापे का कारण होते हैं। भूख और चयापचय को नियंत्रित करने वाले भिन्न जीनों में बहुरूपता भी मोटापे का कारण बन सकती है, जबकि व्यक्ति में पर्याप्त कैलोरी मौजूद होती है। इस तरह की स्थूलता कई दुर्लभ आनुवंशिक परिस्थितियों का एक प्रमुख लक्षण है जो अक्सर बचपन में दिखाई देता है।

  • 12,000 में से 1 और 15,000 जन्मों में से 1 व्यक्ति में प्रेडर-विली सिंड्रोम पाया जाता है, हाइपरफेगिया जिसका विशिष्ट लक्षण है, इससे प्रभावित लोगों का वजन तेजी से बढ़ता है।
  • बार्डेट-बाइ़ड्ल सिंड्रोम
  • मोमो सिंड्रोम
  • लेप्टिन रिसेप्टर उत्परिवर्तन
  • जन्मजात लेप्टिन की कमी
  • मेलानोकोर्टिन रिसेप्टर उत्परिवर्तन

जिन बच्चों में जल्दी ही गंभीर स्थूलता की शुरुआत हो जाती है (दस साल की उम्र से पहले शुरुआत हो जाती है और शरीर भार सूचकांक सामान्य से तीन मानक विचलन ऊपर होता है), ऐसे 7 प्रतिशत बच्चों में एक लोकस पर उत्परिवर्तन देखा जाता है।[36] एक अध्ययन में पाया गया कि जिन मामलों में दोनों अभिभाक मोटे होते हैं, 80 प्रतिशत बच्चे भी मोटे ही होते हैं, इसके विपरीत ऐसे अभिभावकों के केवल 10 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य होता है।[1][24] जांच की गयी जनसंख्या में पाया गया कि 6 से 85 प्रतिशत लोगों में स्थूलता आनुवंशिकता पर निर्भर करती है।[37] तुलना करें: सेकण्डहैण्ड स्थूलता.

घर का माहौल[संपादित करें]

बच्चों के भोजन विकल्प परिवार के भोजन से भी प्रभावित होते हैं। शोधकर्ताओं ने 11 से 21 आयु वर्ग के 18177 बच्चों को घरेलू भोजन से सम्बंधित प्रश्नावली दी और पाया कि पांच में चार अभिभावक बच्चों के भोजन के फैसले को बच्चों पर छोड़ देते हैं। उन्होंने यह भी पाया कि प्रति सप्ताह तीन से चार बार भोजन खाने वाले किशोरों की तुलना में, प्रति सप्ताह परिवार के साथ चार से पांच बार भोजन खाने वालों में सब्जियों के कम उपभोग की संभवना 19 प्रतिशत कम होती है, फलों के कम उपभोग की सम्भावना 22 प्रतिशत कम होती है और डेरी उत्पादों के कम उपभोग की सम्भावना 19 प्रतिशत कम होती है।

प्रति सप्ताह तीन या कम भोजन खाने वाले किशोरों की तुलना में, प्रति सप्ताह परिवार के साथ छह से सात बार भोजन खाने वाले किशोरों में सब्जियों के कम उपभोग की संभावना 38 प्रतिशत कम होती है, फलों के कम उपभोग की सम्भावना 31 प्रतिशत कम होती है और डेरी उत्पादों के कम उपभोग की सम्भावना 27 प्रतिशत कम होती है।[38]

2010 में संयुक्त राष्ट्र में प्रकाशित एक सर्वेक्षण के परिणाम दर्शाते हैं कि माता पिता के बजाय दादा दादी के द्वारा पाले जाने वाले बच्चों में व्यस्क होने पर स्थूलता की सम्भावना अधिक होती है।[39] 2011 में अमेरिका में जारी एक अध्ययन में पाया गया कि मां के काम करने से बच्चों में स्थूलता की सम्भावना बढ़ जाती है।[40]

विकास के कारक[संपादित करें]

विकास के भिन्न कारक स्थूलता की दर को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए स्तनपान बाद के जीवन में स्थूलता से सुरक्षा करने में मदद करता है, स्तनपान की अवधि के कम होने से बाद के जीवन में वजन बढ़ने की संभावना अधिक हो जाती है।[41] एक बच्चे के शरीर के विकास का प्रतिरूप उसकी वजन बढ़ने की प्रवृति को प्रभावित कर सकता है। शोधकर्ताओं ने 848 शिशुओं के कोहोर्ट अध्ययन में मानक विचलन (एसडी [वजन और लम्बाई]) स्कोर का मापन किया। उन्होंने पाया कि जिन शिशुओं का एसडी स्कोर 0.67 से अधिक था उनके ओवरवेट होने की संभावना कम थी, इसके बजाय जिन शिशुओं का एसडी स्कोर 0.67 से कम था उनमें वजन बढ़ने की सम्भावना अधिक थी।[42]

एक बच्चे का वजन तब भी प्रभावित हो सकता है जब वह शिशु होता है। शोधकर्ताओं ने 1997 शिशुओं में एक कोहोर्ट अध्ययन किया। इसमें उनके जन्म से सात साल की आयु तक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में पाया गया कि चार माह की उम्र में जो बच्चे ओवरवेट थे, उनके सात साल की उम्र में ओवरवेट होने की सम्भावना 1.38 गुना अधिक थी। एक साल की उम्र में ओवरवेट बच्चों के सात साल की उम्र में ओवरवेट होने की सम्भावना 1.17 गुना अधिक थी।[43]

चिकित्सकीय बीमारी[संपादित करें]

कुशिंग सिंड्रोम (एक स्थिति जिसमें शरीर में कोर्टिसोल की मात्रा ज्यादा होती है) भी बच्चों में स्थूलता को प्रभावित कर सकती है। शोधकर्ताओं ने 16 ऐसे वयस्कों की कोशिकाओं में आइसोफोर्म (प्रोटीन जिसका वही काम होता है, जो अन्य प्रोटीन का, लेकिन ये एक अलग जीन के द्वारा प्रोग्राम किये जाते हैं) का विश्लेषण किया जिनके पेट की शल्य चिकित्सा हो चुकी थी। उन्होंने पाया कि एक प्रकार का आइसोफोर्म ओक्सो-रिडकटेस गतिविधि का निर्माण करता है (कोर्टीसोन का कोर्टिसोल में रूपांतरण) और यह गतिविधि 127.5 pmol mg sup को बढाती है, जब एक अन्य प्रकार का आइसोफोर्म कोर्टिसोल और इंसुलिन के साथ क्रिया करता है। कोर्टिसोल और इंसुलिन की गतिविधि संभवतया कुशिंग सिंड्रोम का सक्रियण कर सकती है।[44]

हाइपोथायरायडिज्म मोटापे का एक हार्मोनल कारण है, परन्तु यह मोटे लोगों पर अधिक प्रभाव नहीं डालता जिनमें यह होता है। जिनमें यह नहीं होता, उन पर इसका अधिक प्रभाव पड़ता है। हाइपोथायरायडिज्म से युक्त 108 मोटे रोगियों की तुलना 131 ऐसे मोटे लोगों से की गयी, जिनमें हाइपोथायरायडिज्म नहीं था, शोधकर्ताओं ने पाया कि हाइपोथायरायडिज्म रहित रोगियों की तुलना में हाइपोथायरायडिज्म से युक्त रोगियों के कैलोरी अंतर्ग्रहण पैमाने पर 0.077 पोइंट्स अधिक थे।[45]

मनोवैज्ञानिक कारक[संपादित करें]

शोधकर्ताओं ने 9-10 वर्ष की उम्र के 1520 बच्चों पर अध्ययन किया, इसके साथ चार साल का फोलो अप भी किया और चार साल के फोलो अप में पाया कि स्थूलता और आत्म विश्वास में कमी के बीच एक सकारात्मक सम्बन्ध है। उन्होंने यह भी पाया कि आत्म विश्वास में कमी के कारण 19 प्रतिशत मोटे बच्चे उदास महसूस करते हैं, 48 प्रतिशत उबाऊ महसूस करते हैं और 21 प्रतिशत नर्वस महसूस करते हैं। तुलना में, 8 प्रतिशत सामान्य वजन के बच्चे उदास महसूस करते हैं, 42 प्रतिशत उबाऊ और 12 प्रतिशत नर्वस महसूस करते हैं।[46] तनाव भी एक बच्चे की खाने की आदतों को प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं ने कॉलेज की 28 महिलाओं पर परीक्षण किया और पाया कि वे महिलाएं जो जरुरत से ज्यादा खाती हैं, उन्हें तनाव के पैमाने पर औसतन 29.65 अंक मिले, इसकी तुलना में खाने पर नियंत्रण रखने वाले समूह को इस पैमाने पर औसतन 15.19 अंक मिले.[47] ये साक्ष्य खाने और तनाव के बीच सम्बन्ध को प्रदर्शित करते हैं।

अवसाद से ग्रस्त एक बच्चा जरुरत से ज्यादा खाने लगता है। शोधकर्ताओं ने 9 वीं से लेकर 12 वीं कक्षा के 9,374 किशोरों के घर में जाकर उनसे साक्षात्कार लिया और पाया कि अवसाद और खाने के बीच कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। स्थूलता से पीड़ित किशोर बच्चों में से 8.2% बच्चे अवसाद ग्रस्त पाए गए, जबकि स्थूलता रहित किशोरों में 8.9% अवसाद ग्रस्त थे।[48]

हालांकि अवसाद रोधी दवाओं का बच्चों में स्थूलता पर बहुत कम प्रभाव देखा गया है। शोधकर्ताओं ने 487 ओवरवेट/स्थूलता से पीड़ित लोगों को अवसाद से सम्बंधित एक प्रश्नावली दी और पाया कि अवसादरोधी दवाओं का उपयोग करने वाले अवसाद के कम लक्षणों से युक्त 7 प्रतिशत लोगों का बीएमआई स्कोर 44.3 था, जबकि अवसादरोधी दवाओं का उपयोग करने वाले अवसाद के मध्यम लक्षणों से युक्त 27 प्रतिशत लोगों में बीएमआई स्कोर 44.7 था और अवसाद रोधी दवाओं का उपयोग करने वाले अवसाद के अधिक लक्षणों से युक्त 31 प्रतिशत लोगों में औसत बीएमआई स्कोर 44.2 था।[49]

प्रबंधन[संपादित करें]

जीवनशैली[संपादित करें]

सभी नवजात शिशुओं में पोषण और अन्य लाभकारी प्रभावों के लिए विशेष रूप से स्तनपान की सलाह दी जाती है। यह बाद के जीवन में स्थूलता से रक्षा भी करता है।[41]

औषधि चिकित्सा[संपादित करें]

वर्तमान में बच्चों में मोटापे के इलाज के लिए कोई अनुमोदित चिकित्सा नहीं है। हालांकि किशोरावस्था में मध्यम स्थूलता के प्रबंधन में ओरलिस्टेट और सिबुट्रमिन फायदेमंद हो सकती हैं।[41] सिबुट्रमिन 16 साल से अधिक उम्र के किशोरों के लिए अनुमोदित है। यह मस्तिष्क के रसायन शास्त्र में फेरबदल करके और भूख में कमी लाकर काम करती है। ऑर्लिस्टेट को 12 वर्ष से बड़े किशोरों के लिए मंजूरी दी गई है। यह आंतों में वसा के अवशोषण को रोक देती है।[50]

महामारी-विज्ञान[संपादित करें]

संयुक्त राज्य अमेरिका में 2 से 19 साल के बच्चों के ओवरवेट होने की प्रवृति.

बच्चों में स्थूलता की दरें 1980 और 2010 के बीच तेजी से बढ़ी हैं।[51] वर्तमान में दुनिया भर में 10 प्रतिशत बच्चे ओवरवेट हैं या स्थूलता से ग्रस्त हैं।[2]

कनाडा[संपादित करें]

हाल ही के वर्षों में कनाडा के बच्चों में वजन बढ़ने और स्थूलता की दर में तेजी से कमी आई है। लड़कों में, 1980 के दशक में यह दर 11 प्रतिशत थी जो 1990 के दशक में कम होकर 3 प्रतिशत हो गयी।[52]

ब्राज़ील[संपादित करें]

ब्राजील के बच्चों में वजन बढ़ने और स्थूलता की दर 1980 के दशक में 4 प्रतिशत थी जो 1990 के दशक में बढ़कर 14 प्रतिशत हो गयी।[52]

संयुक्त राज्य अमेरिका[संपादित करें]

संयुक्त राज्य अमेरिका के बच्चों और किशोरों में स्थूलता की दर 1980 के दशक के प्रारम्भ से लेकर 2000 तक लगभग तीन गुनी हो गयी है। हालांकि 2000 और 2006 के बीच इसमें ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है, हाल ही के आंकड़े दर्शाते हैं कि यह स्तर 17 प्रतिशत ऊपर है।[53] 2008 में, संयुक्त राज्य अमेरिका में ओवरवेट और स्थूलता से पीड़ित बच्चों की दर 32 प्रतिशत थी, अब इस दर का बढना रुक गया है।[54]

ऑस्ट्रेलिया[संपादित करें]

21 वीं सदी की शुरुआत के बाद से, ऑस्ट्रेलिया में पाया गया है कि यहां के बच्चों में मोटापा संयुक्त राज्य अमेरिका का अनुसरण कर रहा है। जानकारी से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि निम्न सामाजिक आर्थिक क्षेत्रों में इसमें वृद्धि हुई है जहां इसके लिए पोषण से सम्बंधित शिक्षा को दोषी ठहराया जा सकता है।

भारत[संपादित करें]

भारत में बच्चों में स्थूलता एक मूक महामारी है, जिसे मुख्य रूप से समाज के उच्च आर्थिक वर्ग में देखा जा रहा है।


बाल्यकाल स्थूलता (बच्चों में मोटापा) मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से Childhood obesity {{{other_name}}} वर्गीकरण एवं बाह्य साधन

Children with varying degrees of body fat. आईसीडी-१० E66. आईसीडी-९ 278 डिज़ीज़-डीबी 9099 मेडलाइन प्लस 003101 ईमेडिसिन med/1653 एम.ईएसएच C23.888.144.699.500 बाल्यकाल स्थूलता एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में उपस्थित अतिरिक्त वसा बच्चे के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। चूंकि प्रत्यक्ष रूप से शारीरिक वसा के मापन की विधियां कठिन हैं, मोटापे या स्थूलता का निदान अक्सर बीएमआई पर आधारित होता है। बच्चों में स्थूलता या मोटापे की स्थिति बढती जा रही है और मोटापा स्वास्थ्य पर कई प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसीलिए इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य से सम्बंधित एक गंभीर चिंता का विषय माना जाता है।[1] ऐसे बच्चों को अक्सर स्थूलता से पीड़ित नहीं कहा जाता बल्कि ऐसा कहा जाता है कि उनका वजन अधिक है या वे ओवरवेट हैं, क्योंकि यह सुनने में कम बुरा लगता है।[2] वर्गीकरण दो साल या इससे अधिक उम्र के बच्चों में स्थूलता के निर्धारण के लिए बॉडी मास इंडेक्स (शरीर भार सूचकांक) (बीएमआई) एक स्वीकार्य तरीका है।[3] बच्चों में बीएमआई की सामान्य रेंज आयु और लिंग पर निर्भर करती है। रोग नियंत्रण केंद्र (The Center for Disease Control) के अनुसार बीएमआई का 95 परसेंटाइल से अधिक होना स्थूलता को इंगित करता है। बच्चों में इसके निर्धारण के लिए प्रकाशित सारणियाँ हैं।[4

स्वास्थ्य पर प्रभाव

मोटापे या स्थूलता से ग्रस्त बच्चों में पहली समस्या यह होती है कि वे आमतौर पर भावुक होते हैं या मनोवैज्ञानिक रूप से समस्याग्रस्त होते हैं।[5] बच्चों में मोटापा जीवन भर के लिए खतरनाक विकार भी उत्पन्न कर सकता है जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, निद्रा रोग, कैंसर और अन्य समस्याएं.[6][7] कुछ अन्य विकारों में यकृत रोग, यौवन आरम्भ का जल्दी होना, या लड़कियों में मासिक धर्म का जल्दी शुरू होना, आहार विकार जैसे एनोरेक्सिया और बुलिमिया, त्वचा में संक्रमण और अस्थमा और श्वसन से सम्बंधित अन्य समस्याएं शामिल हो सकती हैं।[8] अध्ययनों से पता चला है कि अधिक वजन वाले बच्चों में व्यस्क होने पर भी अधिक वजन बने रहने की संभावना अधिक होती है।[7] ऐसा भी पाया गया है कि किशोरावस्था के दौरान स्थूलता व्यस्क अवस्था में मृत्यु दर को बढाती है।[9] मोटे बच्चों को अक्सर उनके साथी चिढ़ाते हैं।[10][11] ऐसे कुछ बच्चों के साथ तो खुद उनके परिवार के लोगों के द्वारा भेदभाव किया जाता है।[11] इससे उनके आत्मविश्वास में कमी आती है और वे अपने आत्मसम्मान को कम महसूस करते हैं और अवसाद से भी ग्रस्त हो सकते हैं।[12] 2008 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि स्थूलता से पीड़ित बच्चों में कैरोटिड धमनियां समय से पहले इतनी विकसित हो जाती हैं जितनी कि तीस वर्ष की उम्र में विकसित होनी चाहिए, साथ ही उनमें कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी असामान्य होता है।

अनुसंधान[संपादित करें]

कॉलैक, ऑस्ट्रेलिया में 2 से 12 वर्ष के 1800 बच्चों में एक अध्ययन किया गया, इसमें बच्चों को एक प्रतिबंधित आहार (इसमें कोई कार्बोनेटेड पेय या मिठाई उन्हें नहीं दी गयी) के साथ अतिरिक्त व्यायाम भी करवाया गया। अंतरिम परिणामों में स्कूल के बाद की गतिविधि में 68 प्रतिशत की वृद्धि को शामिल किया गया, टीवी देखने की दर में 21 प्रतिशत की कमी लायी गयी और इसमें नियंत्रित समूह की तुलना में वजन में औसतन 1 किलोग्राम कमी आई.[55]

अमेरिकी स्थूलता एसोसिएशन ने एक सर्वेक्षण में बच्चों के वजन के प्रति अभिभावकों के नज़रिए पर अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि अधिकांश अभिभावक सोचते हैं कि अवकाश को कम या प्रतिस्थापित नहीं किया जाना चाहिए. लगभग 30% ने कहा कि वे अपने बच्चे के वजन को लेकर चिंतित हैं। 35 प्रतिशत अभिभावक सोचते हैं कि बच्चे का स्कूल उसे स्थूलता के बारे में पर्याप्त शिक्षा नहीं दे रहा है और 5 प्रतिशत से अधिक लोगों का मानना है कि उनके बच्चे में स्थूलता उनके स्वास्थ्य के लिए एक दीर्घकालिक ख़तरा है।[56]

एक नॉर्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय एक अध्ययन इंगित करता है कि अपर्याप्त नींद का प्रभाव बच्चे के स्कूल के प्रदर्शन पर पड़ता है, इसका प्रभाव उनके भावनात्मक और सामाजिक कल्याण पर भी पड़ता है। इससे वजन बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाती है। इस अध्ययन ने सबसे पहले राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व किया, इसमें 3 से 18 साल के बच्चों में नींद, बॉडी मॉस इंडेक्स (BMI) और वजन बढ़ने के बीच सम्बन्ध का अध्ययन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि एक घंटे की अतिरिक्त नींद बच्चों में वजन बढ़ने के जोखिम को 36 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक कम कर देती है।[57]

एक अध्ययन में पाया गया है कि बच्चों में मोटापे से निपटने से बाद के जीवन में खाने से सम्बंधित कोई असामान्यता उत्पन्न नहीं होती है।[58]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Peter G. Kopelman (2005). Clinical obesity in adults and children: In Adults and Children. Blackwell Publishing. पृ॰ 493. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4051-1672-5.
  2. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  3. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  4. "Healthy Weight: Assessing Your Weight: BMI: About BMI for Children and Teens". CDC. मूल से 12 जून 2019 को पुरालेखित.
  5. Great Britain Parliament House of Commons Health Committee (2004). Obesity - Volume 1 - HCP 23-I, Third Report of session 2003-04. Report, together with formal minutes. London, UK: TSO (The Stationery Office). आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-215-01737-6. मूल से 24 जनवरी 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 दिसंबर 2007. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  6. [1] [मृत कड़ियाँ]
  7. "बल्च्चों में मोटापा". मूल से 24 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 मार्च 2011.
  8. "बच्चों में मोटापा: जटिलताएं - MayoClinic.com". मूल से 5 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 मार्च 2011.
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  12. "SRTS गाइड: स्वास्थ्य के जोखिम". मूल से 21 मार्च 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 मार्च 2011.
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बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]