रसार्णव

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रसार्णव (=रस का समुद्र), रसशास्त्र का प्रमुख ग्रन्थ है। आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय का विचार है कि इस ग्रन्थ को भारत की अमूल्य निधि समझा जाना चाहिए। रसार्णव, भारतीय किमियागारी का प्रथम 'पूर्ण' ग्रन्थ है। प्रफुल्ल चन्द्र राय ने १९१० में बंगाल की एशियाटिक सोसायटी के सहयोग से 'रसार्णवम्' नाम से देवनागरी में मूलपाठ और अंग्रेजी में टिप्पणियों के साथ इसे प्रकाशित किया था।

विषयवस्तु[संपादित करें]

सम्पूर्ण ग्रन्थ कई पटलों (अध्यायों) में विभक्ता है जिसमें अलग-अलग विषयों का वर्णन किया गया है।

  1. प्रथम पटल (तन्त्रावतारः) -- रस की उत्पत्ति, महात्म्य, रसविद्या, रसनिन्दाफल
  2. द्वितीय पटल (दीक्षाविधान) -- रसगुरुलक्षण, शिष्यलक्षण, रसदीक्षाविधान आदि
  3. तृतीय पटल (मन्त्रन्यास) --
  4. चतुर्थ पटल (यन्त्रमूषाग्निवर्णन) -- यन्त्रसंग्रह, दोलायन्त्र, मूषायन्त्र, गर्भयन्त्र, वज्रमूषा, वरमूषा, प्रकाशमूषा, अन्धमूषा, भस्ममूषा, शुल्व आदि की विभिन्न वर्ण की ज्वालाएँ, कोष्ठक, मर्द्दक
  5. पंचम पटल (ओषधिनिर्णय) --
  6. षष्ट पटल (अभ्रकादिलक्षणसंस्कारनिर्णय)
  7. सप्तम पटल (महारसोपरस-लोहलक्षणसंस्कार रत्नद्रावणमारणनिर्णय)
  8. अष्टम पटमल (बीजसाधनः)
  9. नवम पटल (विडकथनः)
  10. दशम पटल (रसशोधनः)
  11. एकादश पटल (बालजारणः)
  12. द्वादश पटल ()
  13. त्रयोध पटल (द्रुतिबन्धन)
  14. चतुर्दश पटल (वज्रबन्धः)
  15. पञ्चदश पटल (महारसोपरसलोहबन्धः)
  16. षोडश पटल (रसरञ्जनः)
  17. सप्तदश पटल (लोहवेधः)
  18. अष्टादश पटल

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]