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विक्टर जॉन पीटर (वी जे पीटर)
जन्म विक्टर जॉन पीटर
१९ जून १९३७
चेन्नाई, तमिलनाडु
मौत ३० जून १९९८
राष्ट्रीयता भारतीय
उपनाम वी जे पीटर
पेशा हॉकी खिलाड़ी और प्रशिक्षक
कार्यकाल १९६०-१९९८
प्रसिद्धि का कारण एक उत्कृष्ट हॉकी खिलाड़ी और प्रशिक्षक
उल्लेखनीय कार्य १९६० के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में रजत पदक, १९६४ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में स्वर्ण पदक और १९६८ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में कांस्य पदक आदि।

विक्टर जॉन पीटर (वी जे पीटर) एक महान भारतीय फील्ड हॉकी खिलाड़ी थे। उनका जन्म १९ जून १९३७ चेन्नाई, तमिलनाडु में हुआ था। उन्होंने १९६० के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में, १९६४ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक और १९६८ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भाग लिया था। वी जे पीटर को हमेशा उस व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा जिसने अपनी प्रतिभा और समर्पण के साथ हॉकी में इतिहास बनाया था। देश में कई पदक लाने में उन्होंने अत्यधिक कठोर परिश्रम और दृढ़ संकल्प लगाया। उनका मृत्यु ३० जून १९९८ में हुआ था।


परिचय[संपादित करें]

विक्टर जॉन पीटर (वी जे पीटर) एक महान भारतीय फील्ड हॉकी खिलाड़ी थे। उनका जन्म १९ जून १९३७ चेन्नाई, तमिलनाडु में हुआ था। बहुत कम उम्र से ही पीटर को हॉकी से लगाव था। उनके पिता फ़ुटबॉल खिलाड़ी थे और इसी वजह से पीटर और उनके दो भाई भी खिलाड़ी रहे। वह बहुत मेहनती था। कुछ साल शहर में खेलने के बाद पीटर मद्रास इंजीनियरिंग समूह (एमईजी), बैंगलोर, में चले गए और १९५४ में मैसूर का प्रतिनिधित्व किया। उनके तीन बेटियाँ और दो बेटे हैं।


खेल में योगदान[संपादित करें]

वी जे पीटर-मैदान में (दाएं तरफ से पहले)

उसके बाद वे सेवाओं में चले गए, जहाँ उनहोंने टीम में लगभग दो दशकों तक खेला और प्रशिक्षित किया। भारतीय टीम के सदस्य के रूप में पूर्वी अफ्रीका की पहली यात्रा के बाद, पीटर ने १९६०, १९६४ और १९६८ के ओलंपिक में देश को रोशन किया [1]। वह भारतीय टीम के सदस्य भी थे जिन्होंने बैंकाक एशियाई खेल में स्वर्ण जीता और जकार्ता में हुई खेल में रजत जीता। उन्हें १९६६ में 'अर्जुन पुरस्कार' से पुरस्क्रित किया गया था। उनहोंने १९६०, १९६४ और १९६८ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भाग लिया था। १९६० के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक, जिसे रोम में आयोजित किया था, उसमें पुरुषों की फील्ड हॉकी में पीटर ने भारत के लिए रजत पदक जीता। १९६४ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक, जिसे टोक्यो में आयोजित किया था, उसमें उसी श्रेणी में उन्होंने भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता और १९६८ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक, जिसे मेक्सिको शहर में आयोजित किया था, उसमें भी पुरुषों की फील्ड हॉकी में उन्होंने भारत के लिए कांस्य पदक जीता। उन्होंने कुल मिलाकर तीन ओलंपिक पदक जीते है।


मैदान के बाहर[संपादित करें]

पीटर, न सिर्फ एक महान खिलाड़ी था वे, एक महान व्यक्ति भी थे। वह पैसों के लिए लालची नहीं थे। वह एक साधारण व्यक्ति थे लेकिन, एक असाधारण हॉकी खिलाड़ी थे। जब वे नहीं खेलते थे, तब वे बेबुनियाद बच्चों को हॉकी सिखाते थे। हॉकी खेलने के लिए जो वस्तुओं की आवश्यक्ता थी, वो पीटर खुद अपने पैसों से खरीदकर बच्चों को देते थे, भले ही उन्होंने ज्यादा कमाई नहीं की। जहाँ जगह मिलते थे, वहाँ पीटर बच्चों को हॉकी सिखाते थे, चाहे कम जगह क्यों न हो। यह उस खेल के लिए थोडा सा योगदान करने का उसका तरीका था, जिसे वो प्यार करता था और खेलता था। वह युवा पीढ़ी को अपना कौशल और ज्ञान पारित करना चाहता था। उनकी इसी गुण की वजह से, जो भी पीटर को जानता था, उसे बहुत प्यार और सम्मान करता था। उन्हें मद्रास इंजीनियर्स समूह हॉकी टीम की "रीढ़ की हड्डी" माना जाता है। एमईजी की फैली इकाई में एक स्टेडियम का नाम उनके नाम पर रखा गया है। एमईजी में जब वे खेलते थे, तब उन्की खेल में स्थिती:सही के अंदर थे। अपने शानदार ड्रबलिंग कौशल, गेंद नियंत्रण और प्लेमेकिंग के लिए जाना जाता था। उनके लिए उनका खेल हमेशा पहला था। सेवानिवृत्ति के बाद १९८३ से पीटर, अन्य टीमों के बीच, भारतीय बैंक के प्रशिक्षक रहे और साथ ही उन्होंने एक इंजीनियरिंग कॉलेज में शारीरिक शिक्षा अधिकारी के रूप में काम किया। अपने जीवन के कई साल उन्होंने सेंट थॉमस माउंट में बिताए, जो मद्रास शहर में एक प्रसिद्ध जगह है। सेंट थॉमस माउंट हमेशा हॉकी के लिए प्रसिद्ध है और कई हॉकी खिलाड़ी उसी जगह से थे।


अर्जुन पुरस्कार और अन्य पुरस्कार[संपादित करें]

पीटर और उनके भाई हमेशा इस जगह को प्यार से 'क्रेड़ल आफ हॉकी' कहते थे। १९६७ में अपनी अर्जुन पुरस्कार के लिए केन्द्र सरकार से उन्हें हर मास कुछ पैसे मिलते थे। उन्हें अपनी खेल के लिये कई पुरस्कार मिले जैसे कि, बैंकाक एशियाई खेल में स्वर्ण जीता और जकार्ता में हुई खेल में रजत जीता। उनहोंने १९६०, १९६४ और १९६८ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भाग लिया था। रोम के खेल में पीटर ने भारत के लिए रजत पदक जीता। टोक्यो के खेल में उन्होंने भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता और मेक्सिको के खेल में उन्होंने भारत के लिए कांस्य पदक जीता। उन्होंने कुल मिलाकर तीन ओलंपिक पदक जीते है।


व्यक्तिगत जीवन[संपादित करें]

पीटर, मैदान के अंदर और बाहर एक विनम्र व्यक्ति थे। उन्होंने एक साधारण जीवन बिताया था। उन्होंने समाज के लिये उतना योगदान दिया, जितना वह कर सकता था, एक प्रशिक्षक होकर और एक महान खिलाड़ी होकर। उन्के पत्नी का नाम शान्ति मेरी है। उनके तीन बेटियाँ और दो बेटे हैं। उनका पहला बेटा क्रिस्टोफर एमईजी के साथ काम कर रहा है। उनका दूसरा बेटा, सैमसन, जूनियर राष्ट्रीय खिलाड़ी थे। उनकी एक बेटी, अनीता, की शादी भी हो गई। पीटर कई सालों तक बैंगलोर में रहे। चेन्नाई में रहने की वजह से शान्ति और बच्चें, पीटर से मिलने, बैंगलोर कभी-कभी आते थे। [2]


मृत्यु[संपादित करें]

पीटर कई सालों तक बैंगलोर में रहे। अपने अंतिम कुछ दिन भी वहीं रहे। बाद में उनहें चेन्नाई लाया गया। जून ३० १९९८ को, बीमारी की वजह से, पीटर का देहांत हो गया। तब वे ६२ साल के थे। पीटर के देहांत के बाद, 'नेहरु हॉकी टूर्नामेंट सोसाइटी' ने, पीटर के परिवार को २ लाख रुपये दिए। यह उस महान हॉकी खिलाड़ी के प्रति उनका सम्मान था। उनकी मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी ने अपने बच्चों को अकेला सँभाला। पीटर की मृत्यु के बाद, जीवन उनके लिए पहले जैसा नहीं था। उन्हें काफी कठिन समय से गुजरना पड़ा। [3]


सबका प्रेरणास्रोत[संपादित करें]

पीटर हमेशा एक प्रेरणास्रोत रहा हैं, चाहे वह उनके साथियों, उनके छात्रों या उनके परिवार हो। पीटर का भाई वी जे फिलिप्स भी उनके जैसे एक प्रसिद्ध हॉकी खिलाडी हैं। उन्हें १९९९ में 'अर्जुन पुरस्कार' से पुरस्क्रित किया गया था। फिलिप्स ने भी ओलंपिक्स, विश्व कप और एशियाई खेल में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वे लगभग २५० से अधिक परीक्षण मैच के हिस्सा रहे। पीटर का सबसे छोटा भाई, थॉमस, भी हॉकी खिलाड़ी रहा। एक दुर्लभ द्रिष्टि में, तीनों भाइयों ने न्यूजीलैंड के सद्भवना दौरे में भाग लिया, जिसमें पीटर प्रशिक्षक रहे जबकि फिलिप्स और थॉमस टीम में थे। शुरुआत में उनके पास खेलने के लिए उचित उपकरण नहीं थे लेकिन, एक बार जब वे टीम में शामिल हुए तो उनके पास उनकी जरूरत थी। पीटर एक मेहनती इंसान था। उन्होंने अपने जीवन में कभी हार नहीं माना। वे एक कठिन परिश्रमी थे। फिलिप्स और थॉमस के लिए उनका बडा भाई, पीटर, हमेशा उनका प्रेरणा स्त्रोत रहा।


संदर्भ[संपादित करें]

  1. https://www.rediff.com/sports/1998/jul/01d.htm
  2. https://www.thehindu.com/thehindu/2000/05/20/stories/0720051g.htm
  3. https://timesofindia.indiatimes.com/sports/hockey/top-stories/Peters-family-struggles-to-make-ends-meet/articleshow/9476256.cms