शब्दभेदी

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शब्द भेदी धनुर्विद्या की एक कला है जिसमें ध्वनि के सहारे लक्ष्य भेदा जाता है। इस पद्धति से ल७्य को देखना या उसके सामने होना आवश्यक नहीं होता है। केवल लक्ष्य की ध्वनी सुनकर ही धनुर्धारी उसे भेद सकता है। संसार के प्राचीनतम महाकाव्य रामायण और महाभारत में इस धनुर्विद्या का उल्लेख मिलता है। महाराजा दशरथ को इसी विद्या के प्रयोग के कारण श्रवण कुमार के माता-पिता द्वारा श्राप दिया गया था। महाभारत में भील पुत्र एकलव्य ने शब्द भेदी धनुर्विद्या का उपयोग किया था , अन्य पुराणों में भी इसका उल्लेख विभिन्न कथा प्रसंगों में किया गया है। हिंदी महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में भी पृथ्वीराज चौहान द्वारा मुहम्मद गौरी को शब्द भेदी द्वारा मारने का उल्लेख मिलता है। बारहवीं शताब्दी में,अजमेर में एक महान हिन्दू राजपूत सम्राट हुए पृथ्वीराज चौहान एक नायक जीवन का उपभोग किया उन्होंने वीरता जैसे उनके रक्त में सम्मिलित थी। कहते हैं युवावस्था में ही उन्हें, शब्दभेदी बाण चलने में महारत हासिल हो चुका था।

जिस प्रकार आज के समय मे सेंसर जैसी वस्तु उपलब्ध है, कुछ इसी प्रकार से प्राचीन समय मे शब्दभेदी बाण जैसे शास्त्र के अस्तित्व को नकारा नही जा सकता। सनातन धर्म के गौरवशाली इतिहास में अनेको विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक आस्त्रो का उल्लेख मिलता है जो कि आज के समय मे किसी और रूप में हमारे सामने जीवंत है। शब्दभेदी बाण विद्या भी कुछ वैसी ही है। [उद्धरण चाहिए]

पृथ्वीराज चौहान शब्दवेदी बाङ चलाने की शिक्षा मगद मे भील (निषाद) गुरू से प्राप्त किये थे!


और जीस पृथ्वीराज रासो मे इसका वर्णन मिलता है। वो सम्राट पृथ्वीराज चौहान के राजकवि चंदबरदाई द्वारा लिखी गयी है।