तंजावुर चौकड़ी

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तंजावुर चौकड़ी तंजोर के चार भाई थे: चिन्नैईः, पोन्नईः, सिवानन्दम तथा वडिवेलू, जो उन्नीसवीं सदी में रहे तथा भरतनाट्यम और करनाटिक संगीत के प्रती अपना बहुत बडा योगदान दिया। मराठा के राजा सरफोजी॥ ने इन चारों भाइयों को दाखिल किया।


व्यक्तिगत जीवन[संपादित करें]

तंजोर क्वार्टेट का जन्म नट्टूवनर परिवार में हुआ था और वे इसई-वेल्ललार के जाति के थे। उन्हें तंजाई नलवार के नाम से भी जाना जाता हैं। उन्हें संगीत की शिक्षा उनके पिता सुब्बयार पिल्लई तथा एक महान संत कवि तथा संगीत ट्रिनिटी के सदस्य, मुत्तुस्वामी दीक्षित से मिली थी। उन्हें अनेक कला रूपों में दिलचस्पी थी। उन्नीसवीं सदी में इन भाईयों ने नृत्य तथा संगीत में कई बदलाव लाने की कोशिश की और वे कामियाब भी हुए। वे तंजोर दरबार में भी कुछ समय तक रहें।

योगदान[संपादित करें]

तंजोर क्वार्टेट दक्षिण भारत में समश्ठान विद्वान के रूप से जाने जा रहे थे। वे चारों देवदासी अनुष्ठान में परिवर्तन लाए। उनका व्यक्तिगत योगदान भी था। चिन्नैईः (जन्म: १८०२) ने भरतनाट्यम को वोडेयार दरबार, मैसूर मे पेश किया। उन्होंने कई कीर्तन और वर्नम को राजा ने सम्मान में भी पेश किया। पोन्नईः (जन्म: १८०४) और सिवानन्दम (जन्म: १८०८) मराठा संरक्षण के अंतरगत तंजोर में ही रहे। वडिवेलू (जन्म: १८१०) सारंगी मे बदलाव लाए ताकि इस साधन को करनाटिक संगीत मे उपयोग किया जा सके। उन्होंने मोहिनीआटम को भी मराठा दरबार मे स्वाति तिरुनाल के कहने पर पेश किया।

तंजोर क्वार्टेट ने भरतनाट्यम के प्रदर्शनों की सूची को तय किया। उन्होंने भरतनाट्यम के मूलभूत अडवु को संहिताकृत किया तथा संगीत कार्यक्रम मे पेश करने लायक मार्गम डिजाइन किया। उन्होंने कई तरह के अल्लारिपू, जत्तिस्वरम, कौत्वम, शब्दम, वर्नम, पदम, जवाली, कीर्तनै तथा तिल्लान्ना की रचना की और इन्में अनेक कलात्मक परिवर्तन तथा नए तत्वों को लाया गया। उनके नृत्य और संगीत की रचनाओं के बारे में देश-विदेश में जाना जाता हैं। उनके शिक्षक के श्रद्धांजलि में तंजोर क्वार्टेट ने नौ गीत का समूह, नवरत्न मेला लिखा था। इसके अलावा भी इन्होंने कई रचनाएं की है जैसे अंबा सौरंबा, अंबा नीलंबा, अंबा नीलंबरी और सतिलेनी। पंडानल्लुर और तंजावुर नृत्य के अंदाज़ भी तंजोर क्वार्टेट के प्रदर्शनों की सूची के हिसाब से होता था।

वडिवेलू को ख़ास तौर पर स्वाति तिरुनाल, त्रावणकोर, केरला के महाराजा के दरबार का मुख्य संपत्ति माना जाता था। उनके रचनाओं पर वडिवेलू का ख़ास प्रभाव नज़र आता है। वडिवेलू एक नर्तकी होने के साथ-साथ माहिर गायक और वायोलिन-वादक भी थे। वे तमिल और तेलुगू के विद्वान भी थे। श्री मुथुस्वमि दीक्षितर का यह मानना था की वडिवेलू गानो के बोल को एक बार सुनते ही दोहरा सकते थे।

तंजोर क्वार्टेट के योगदान के कारण पूर्व उन्निस्वी सदी को भरतनाट्यम इतिहास का सबसे नवीन अवधि माना जाता हैं। उनके कार्यों के चर्चे अब भी पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। उनके वंश भी नट्टूवनर थे और वे भी नृत्य और संगीत में कई बदलाव लाए।

सन्दर्भ[संपादित करें]

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  1. [acceleratedmotion.org/artist-profiles/thanjavur-tanjore-quartet thanjavur-tanjore-quartet]