भरतपुरा

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भरतपुरा
गाँव[1]
भरतपुरा बिहार,भारत में
निर्देशांक: 25°19′37″N 84°48′2″E / 25.32694°N 84.80056°E / 25.32694; 84.80056निर्देशांक: 25°19′37″N 84°48′2″E / 25.32694°N 84.80056°E / 25.32694; 84.80056
देश भारत
राज्यबिहार
ज़िलापटना
स्थापित1840
भाषाएँ
 • बोलीमगही, भोजपुरी, हिन्दी, अंग्रेज़ी
समय मण्डलIST (यूटीसी+5:30)
पिन कोड801102 / 801104
टेलीफोन कोड06135
वाहन पंजीकरणBR-01
वेबसाइटwww.bharatpuragaon.com

भरतपुरा बिहार राज्य के पटना जिले में स्थित एक गाँव है। यह पटना से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित है।

भरतपुरा पुस्तकालय[संपादित करें]

भरतपुरा गांव में एक ऐसा पुस्तकालय है जिसके ढेर सारे अमूल्य दुर्लभ ग्रन्थ, प्राचीन तथा मुगलकालीन सचित्र पाण्डुलिपियां, पंचमार्क से लेकर मुगलकालीन सोने के सिक्के किसी को भी विस्मित कर सकती हैं। इसका नाम है, 'गोपालनारायण पब्लिक लाइब्रेरी'। कहने भर को ही यह 'पुस्तकालय' है। वास्तव में यह अमूल्य एवं दुर्लभ सचित्र पाण्डुलिपियों की खान है। यहां फिरदौसी का शाहनामा, निजामी का सिकन्दरनामा, अमीर हम्जा का दास्तान-ए-अमीर हम्जा, दसवीं सदी के जरीन रकम, अलहुसैनी, शिराजी तथा ११वीं सदी के मुहम्मद मोमिन जैसे उत्कृष्ट कैलिग्राफरों की कृतियों (वैसलिस) समेत 11वीं सदी की सिंहासन बतीसी, बैताल पचीसी, अबुलफजल की कृतियां, त्रिपुरसुन्दरी पटलम, गर्ग संहिता जैसे ग्रन्थ एवं पाण्डुलिपियां हैं। पटना कलम के पूर्वज मनोहर के पिता बसावन की पेंटिंग ‘साधु’ इस लाइब्रेरी की खास धरोहर है।

राजा भरत सिंह के वंशज गोपालनारायण सिंह ने इस पुस्तकालय की स्थापना सन् 1912 ईस्वी में ब्रिटिश भारत में सम्राट के दिल्ली में ताजपोशी के अवसर पर पटना के तत्कालीन कलक्टर मि॰ प्रेन्टिस के हाथों करवाई थी। गोपाल नारायण सिंह राजा बनारस के दामाद थे। राजा बनारस से उपहारस्वरूप उन्हें अनेक दुर्लभ बहुमूल्य पाण्डुलिपियां मिली। जिनमें ताड़ के पत्ते पर महाभारत, त्रिपुरसुन्दरी पटलम, तुलसीकृत रामायण, सिकन्दरनामा, शाहनामा, वैसलिस (कैलिग्राफी के बेहतरीन एवं दुर्लभ नमूने) तथा कई अन्य प्राचीन तथा मुगलकालीन ग्रन्थ थे। बाद के दिनों में गोपालनारायण सिंह ने और भी बहुमूल्य, दुर्लभ पाण्डुलिपियों का संग्रह किया।


लाइब्रेरी के कर्ताधर्ताओं को इन पाण्डुलिपियों के महत्व का अंदाजा नहीं था। शायद इसलिए यह लाइब्रेरी बरसों यूं ही उपेक्षित पड़ी रही। तभी पटना से दो रिसर्च स्कालर डा॰ क्यामुद्दीन अहमद (बाद के दिनों के प्रसिद्ध इतिहासकार) और एस.एन. शर्मा 1960 के आसपास शोध के लिए लाइब्रेरी में पहुंचे। यहां उन्होंने शाहनामा की मूल प्रति, सिकन्दरनामा, वैसलिस और मुताला-उल-हिन्द की पाण्डुलिपियां देखीं तो चौंक उठे।

के.पी. जायसवाल रिसर्च इंस्टीच्यूट की 1962-63 की वार्षिक रिपोर्ट में दोनों की एक रिपोर्ट छपी, जिसमें इन पाण्डुलिपियों का विवरण था। इधर रिपोर्ट छपी और उधर भरतपुरा लाइब्रेरी चर्चित होने लगी। 1964 के बाद विदेशी भी यहां आने लगे। डा॰ अहमद के साथ आनेवाले अमेरिका के डा॰ हौजर संभवतः पहले विदेशी थे।

अब तस्करों की इस पर नजर पड़ी। तस्करों ने अपने एक व्यक्ति को लाइब्रेरी में शोधार्थी के रूप में भेजा। वह नियमित रूप से लाइब्रेरी में आने लगा। वह लाइब्रेरी का सदस्य भी बन गया। एक दिन मौका पाकर उसने सिकन्दरनामा से एक सचित्र पन्ना चुरा लिया। उसने उसे दिल्ली स्थित एक ऐंटिक डीलर को दो हजार रुपये में बेचा। तब उसे इसकी वास्तविक कीमत का पता चला।

तस्करों ने लाइब्रेरी के सचिव को पटाने की कोशिश की और मुंहमांगी कीमत पर पाण्डुलिपियों को बेच देने को कहा। किन्तु, उन्होंने इसे पूर्वजों की धरोहर मानते हुए बेचने से इनकार कर दिया। यह पाण्डुलिपियां कितनी कीमती और दुर्लभ हैं, इसका अंदाजा सचिव को भी नहीं था, इसलिए यह ऐसे ही असुरक्षित एक टेबुल के उपर पड़ी रहती थी। सो एक दिन 8 जनवरी 1973 की रात तस्करों ने पाण्डुलिपियां चुरा ली।

अगले दिन स्थानीय थाना को उसकी सूचना दी गयी। थानेदार को यकीन नहीं हो पा रहा था कि पुरानी पुस्तकों की चोरी भी हो सकती है। इधर चोरी का हल्ला उठा और बिहार विधानसभा में सरकार निरूत्तर रह गयी। मामला विकट होता गया और इसकी गूंज लोकसभा में हुई। उसी वर्ष जून में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने यह सारा मामला सी.बी.आई. को सौंप दिया। डी.एस.पी. बलराम दूबे के नेतृत्व में जांच चलने लगा।काफी मशक्कत के बाद तस्करों को पकड़ा जा सका। चार पाण्डुलिपियों में से तीन सिकन्दरनामा, शाहनामा और वैसलिस तो मिल गयी किन्तु मुताला-उल-हिन्द का तब पता नहीं चल सका था। बाद के दिनों में इंटरपोल ने उसे भी केलिफोर्निया के निकट एलिजा नामक स्थान पर बरामद कर लिया।

वर्षों उपेक्षित रही इस लाइब्रेरी पर अब सरकार की नजर भी पड़ी है। वर्तमान सरकार ने भी इसके संरक्षण, संवर्धन के लिए एक बड़ी राशि दी है। नेशनल मैन्युस्क्रिप्ट मिशन, नई दिल्ली यहां कैटलागिंग का काम कर रहा है। शोधार्थियों, दर्शकों का आना-जाना भी बढ़ गया है।

60 हजार पद्यों वाली इस सचित्र पाण्डुलिपि में सोने एवं नीलम से बनी बेहद खूबसूरत तस्वीरें हैं। यह बेहद साफ-सुथरे ढंग से सोने के रंगों से 4 कालमों में लिखी हुई है। सिकन्दरनामा (सन् 1200 ईसवी) में शेख निजामी द्वारा तैयार किया गया था। इसमें महान सिकन्दर के जन्म, उसके साहसिक कारनामों, उसकी विजयगाथा का सचित्र वर्णन है। सिकन्दरनामा शानदार लिखावट और उत्कृष्ट तस्वीरों से भरा हुआ है। अकबर के दरबार के मशहूर चित्रकार बसावन की पेंटिंग ‘साधु’ इस लाइब्रेरी की एक खास धरोहर है। यह तस्वीर कागज पर काली स्याही से बनायी गयी है। बसावन कितना महत्वपूर्ण रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसकी अन्य कृतियां बोदलियन लाइब्रेरी, इंडिया आफिस लाइब्रेरी लंदन, मेट्रोपालिटन म्यूजियम, न्यूयार्क में रखी हैं। स्टेनगनधारी पुलिसकर्मियों से घिरी ऐसी दुर्लभ लाइब्रेरी को यदि आपने न देखी हो तो भरतपुरा लाइब्रेरी तो आईये-सड़क से मुड़ते ही सामने दिखाई देंगे

भरतपुरा लाइब्रेरी में ऐतिहासिक वस्तुएँ[संपादित करें]

  1. "भरतपुरा गांव का इतिहास". मूल से 13 अक्तूबर 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 फ़रवरी 2018.

सिर्फ यहीं देखी जा सकती है सूर्य की अखंडित मूर्ति, हाथी के दांत से बनी शाहजहां की छड़ी भी है खास। लाइब्रेरी में मौजूद हैं 8000 पांडुलिपियां, 400 प्राचीन मूर्तियां, 1000 ऐतिहासिक चित्र और 4000 से अधिक प्राचीन सिक्के।

आप भले ही देश-विदेश के कई म्यूज़ियम और लाइब्रेरी की सैर कर चुके होंगे, मगर बिहार की राजधानी पटना से करीब 45 किलोमीटर दूर भरतपुरा गांव में एक ऐसी लाइब्रेरी कम म्यूज़ियम है जहां ऐसा ऐतिहासिक खजाना देखने को मिलेगा जो कि भारत की किसी और लाइब्रेरी में नहीं है। चलिए आज हम आपको छोटे से गांव में बनी एक ऐसी ही खास और अनोखी गोपाल नारायण पब्लिक लाइब्रेरी की सैर कराते हैं।

पटना से पालीगंज जाने वाली सड़क पर ऐतिहासिक धरोहरों और खजानों को समेटे एक गांव है भरतपुरा और इसी गांव में एक ऊंचे टीले पर स्थित है गोपाल नारायण पब्लिक लाइब्रेरी। अकबर के शासन काल के दौरान यहां महाराष्ट्र से राजा कंचन सिंह आकर बसे थे। उनके वंशज राजा भरत सिंह ने यहां एक किले का निर्माण करवाया था। बाद में भरत सिंह के नाम पर ही इलाके का नाम भरतपुरा पड़ा। उन्हीं के वंशजों में से एक गोपाल नारायण सिंह ने 12 दिसंबर 1912 में इस लाइब्रेरी की स्थापना की। इसका उद्घाटन तत्कालीन जिलाधिकारी डब्लू डी आर प्रेंटिस ने किया था। शुरुआत में गोपाल नारायण ने अपने पुर्वजों से संबंधित कई एंटीक और खास वस्तुओं का संग्रहण उस लाइब्रेरी में किया। उसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने अपनी लाइब्रेरी कम म्यूजियम को ऐतिहासिक खजानों से भर दिया। बताया जाता है भरतपुरा गांव के आस-पास से खुदाई में कई ऐतिहासिक महत्व की चीजें प्राप्त हुई है जिन्हें इसी लाइब्रेरी में रखा गया है।


सूर्य की अखंडित मूर्ति[संपादित करें]

इस लाइब्रेरी में करीब 8000 पांडुलिपियों, 400 प्राचीन मूर्तियों, 1000 ऐतिहासिक चित्रों, 4000 से भी ज्यादा प्राचीन सिक्कों समेत कई एंटीक एवं ऐतिहासिक महत्व की वस्तुओं का संग्रह है। लाइब्रेरी के वर्तमान सचिव एवं गोपाल नारायण के पौत्र ध्रुपद नारायण सिंह बताते हैं कि यहां 5वीं सदी की शिव और पार्वती की श्रृंगारिक मुद्रा में एक ऐसी खास मूर्ति है जो कि देश-विदेश में कहीं नहीं है। वहीं 8वीं और 9वीं सदी में निर्मित सूर्य की 3 खास मूर्तियां हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार आज तक विश्व में सूर्य की ऐसी पूर्ण आकार की मूर्ति कहीं भी नहीं मिली है। यह मूर्ति 2012 में तीढ़ी मोड के पास चल रही खुदाई में मिली थी। इसके अलावा यहां नंदी की 8 किलोग्राम अष्टधातु की मूर्ति भी खास है। यहां भगवान बुद्ध की भी एक मूर्ति जो कि सिर्फ 8 इंच की है लेकिन वजन 10 किलोग्राम है, जो अपने आप में अनोखा है। यह मूर्ति गुप्त काल की बतायी जाती है। इसके अलावा मौर्य वंश समेत कई अन्य काल की खास मूर्तियां भी यहां की शोभा बनी हुई हैं।

फिरदौसी के सचित्र शाहेनामा[संपादित करें]

गोपाल नारायण लाइब्रेरी कम म्यूज़ियम पूरे विश्व में एक मात्र ऐसी लाइब्रेरी है जहां फिरदौसी के सचित्र शाहेनामा की इलकौती प्रति मौजूद है। इस शाहेनामा में ईरान की सभ्यता, संस्कृति को नीलम और सोने द्वारा बनाए गए चित्रों के माध्यम से जाना सकता है। इसके अलावा यहां निज़ामी रचित सचित्र सिकंदरनामा, सलामत अली रचित मुताल-उल-हिंद, 11वीं सदी की दीवाने हाफिज जैसे कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक महत्व की किताबें और चित्र मौजूद हैं। वहीं यहां अकबर के नौ रत्नों में शुमार बसावन की पेटिंग साधु भी देखने को मिल सकती है। जबकि तार के पत्ते पर ब्रह्मी लिपि में लिखी महाभारत भी यहां के खास आर्कषण में से एक है। ध्रुपद नारायण कहते हैं कि हमारे यहां जो आंकड़े हैं उसके हिसाब से यह 780 ई। की है।

हाथी के दांत से बनी शाहजहां की छड़ी[संपादित करें]

एक छोटे से गांव में स्थित इस लाइब्रेरी में कई और भी एंटीक वस्तुएं आपका ध्यान ज़रूर खीचेंगी। यहां बाबर के समय के कई चिराग-ए-गुल हैं जो कि उस समय रोशनी फैलाने के काम में लाए जाते थे। वहीं हाथी के दांत से निर्मित शाहजहां की छड़ी भी इस म्यूजियम में सुशोभित है। इसके अलावा यहां पंचमार्क सिक्के, अकबर के समय के दिन-ए-इलाही सिक्के, बुद्धा के समय के स्वर्ण सिक्के, एक तार से बनी साइकिल, खास घड़ी, पीपल के पत्ते पर गोल्ड से पेटिंग, मुगल पेटिंग, याक्षिणी की मूर्ति समेत कई अन्य बहुमूल्य वस्तुएं लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाली हैं। सिंह बताते हैं कि यहां धातुओं से बनी एक आदिवासी महिला का चित्र है जो कि हाथ में पुस्तक लिये हुए है। यह चित्र बताता है कि उस समय भी महिलाओं में शिक्षा के प्रति काफी रुचि थी। उस समय भी महिला सशक्तिकरण महत्वपूर्ण था।

लाइब्रेरी का महत्व[संपादित करें]

धुप्रद नारायण के कहा कि अभी कुछ दिनों पहले पुणे में भी लाइब्रेरी कम म्यूजियम की स्थापना हुई है लेकिन यहां जितने महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक खजानें उपलब्ध हैं, वह किसी अन्य लाइब्रेरी कम म्यूज़ियम में नहीं हैं। इसकी महत्ता को देखते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यहां कई बार आ चुके हैं और इसे बड़ा स्वरूप देने की बात कह चुके हैं। वहीं दूसरे राज्यों एवं केन्द्र के पुरातत्व विभाग के अधिकारियों, लेखकों, कलाकारों और पत्रकारों ने भी इस लाइब्रेरी की महत्ता को स्वीकार किया है। इसके संचालन के लिए समिति गठित है। इसका चेयरमैन जिलाधिकारी होता है। लेकिन, इन सबके बावजूद भी लाइब्रेरी को यहां की सरकार बड़ी पहचान दिलाने में विफल रही है। प्रशासनिक सुस्ती की वजह से यहां सुरक्षा के इंतजाम भी नाकाफी हैं। हालांकि लाइब्रेरी के लिए नये भवन का निर्माण हो रहा है। उम्मीद है आने वाले समय में यह और भव्य रूप में नज़र आएगी।

भरतपुरा गांव के कुछ तस्वीर[संपादित करें]
भरतपुरा गांव के निवासी[संपादित करें]

  भरतपुरा गाँव और गढ़ की तस्वीरें[संपादित करें]

चित्र दीर्घा[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]