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विशुपक्षी[संपादित करें]

विशु केरल में हिन्दुओ द्वारा मनाई गई एक त्यौहार हैं जिसमे लोग कृष्ण भगवान के पूजा करते हैं। विशुपक्षी एक ऐसी पक्षी हैं जिसका केरला की संस्कृति में बड़ा मूल्य हैं। विशुपक्षी का संदर्भ केरला की लोकप्रिय लोक गीतों में भी किया गया हैं। विशुपक्षी का नाम विषु त्यौहार से लिया गया हैं। विशु त्यौहार के समय इन पक्षियों की सुरीली गीत दूर दूर तक सुनाई पड़ती हैं और यही किसानो को यद् दिलाती हैं की खेती का समय हो गया हैं। स्थानीय लोग विशुपक्षी को "कन्यासत्री कोक्कू" नाम कर बुलाते हैं क्याकि उसके सर पर जो काला रंग हैं वह एक नन के घूंघट की तरह दिखाई पड़ता हैं।

खूबसूरती[संपादित करें]

विशुपक्षी का सारा देहा सफेद फर से भरा हुआ हैं। उसकी आँखें की चारो ओर अंगूठी आकार का बैंड होते हैं। विशुपक्षी के और कही नाम हैं जैसे की चटुकाककोक्कन और करंदिककोक्कन। विशु केरला का नया साल त्योहार हैं जो कृषि गतिविधियों को चिह्नित करता है।

कृषि[संपादित करें]

किसानो का मानना हैं की बारिश देवता उन्हे कभी निराश नहीं करेंगे। और उन्होंने कभी निराह कर भी दिया तो भी विहुपाक्षी उन्हे कभी निराश नहीं करेगी। केरला में किसान मानते हैं की विशुपक्षी उन्हें रोज सुबह खेती के लिए अपने "विट्ठुम कैककॉट्टोम" गाने से उठाते हैं। इस गीत से किसानो को याद् आती हैं की उन्हें कृषि गतिविधियों की शुरुवात करनी हैं।