सदस्य:Raopavan/प्रयोगपृष्ठ/1

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ब्राह्मण भोजनविधि[संपादित करें]

ब्राह्मण जनांग में खाना खाने के लिये कई रीति-रिवाज होते है। वे सिर्फ भूख को मिटाने के लिये खाते नहीं है, बल्कि प्राणाग्निहोत्र नामक यज्ञ के लिये खाते है। प्राणाग्निहोत्र का मतलब है- हर एक जीवित प्राणि के भीतर के अग्नि को सदा प्रज्वलित रखने का कार्य हैं। क्योंकि यह एक यज्ञ के समान है हमे खाते समय यज्ञ के रीति-रिवाजों का पालन करना हैं। क्योंकि यज्ञ साधारणतह पवित्र माना जाता है भोजन के पेहले नहाना अनिवार्य है। कम से कम हाथ धोना तो जरूरी है।

पहले हम चावल को नमस्कार करते है और दाये हाथ मे पानी लेकर गायत्री मंत्र को कहते हुए उस पानी को चावल पर प्रोक्षण करते हैं। गायत्री मंत्र मंत्रो मे सबसे शक्तिशाली माना जाता है।कहा जाता है कि इस मंत्र की आराधन से हमारा खाना शुद्ध हो जाता है। इसके बाद दाये हाथ मे पानी लेकर निम्नलिखित मंत्र को केहते हुए खाने की थाली के ईशान कोण से शुरू करके धीरे से पानी गिराते हुए खाने की थाली के परिक्रम करके फिर ईशान कोण तक लाना है।

अगर दोपहर का खाना हो तो मंत्र है-"सत्यम् त्वर्तेन परिषिंचामि"। अगर रात का खाना हो तो-"ऋतम् त्वा सत्येन परिषिंचामी "। इस क्रम के दो अंश होते है-"सत्य और ऋत"। सत्य एक शाश्वत तत्व है जिसका मतलब है कि जब हमे भूक लगे तो हम चावल जैसे मूल भोजन करते है। ऋत राष्ट्र तथा कालानुसार बदलनेवाला तत्व है जैसे उप्मा,दोसा,इड्ली और चपाती खाते है। पुराने जमाने मे अगसर दोपहर का भोजन महत्वपूर्ण होता था और रात का खाना कम होता था। इसी संधर्ब को देख मंत्र को बनाया गया था।

भोजनविधि

अन्नाभिमंत्रण[संपादित करें]

इसके बाद अन्नाभिमंत्रण करते है। दाये हाथ से चावल को छूकर "अंतश्चरति भूतेषु गुहायाम सर्वतो मुखः त्वमं यज्ञस्त्व्म वषट्कारः त्वमं विष्णुः पुरषः परः" मंत्र को केहना है। इस मंत्र के अर्थ यह है कि आत्मा हर जीवित चीज के ह्रदय मे बसी रहती है। आत्मा को परमात्मा विष्णु के समान मानकर कहते है कि परमात्मा हमेषा हमारे अंदर रहते है। इसी कारण भोजन करते समय मूर्ख विचार नही करना चाहिए। भोजन करते समय उच्च विचार के बारे मे चिंतन करना चाहिये। उत्तम कार्य के बारे मे सोचना चाहिये। इस तरह खाना अच्ची तरह से सेवन कर सकते है।

आपोशन[संपादित करें]

इसके बाद आपोशन करते है। दाय हाथ मे पानी लेकर बाय हाथ के बीचवाली उंगली से खाने की थाली को छूकर '"अम्रतोपस्तरणमसि दियोमि स्वाहा" मंत्र केहते हुए दाय हाथ के पानी को पीना है। हम इस विधी को करते है क्योन्कि पानी, खाने की पाचन के लिये अत्यंत जरूरी होता है। अम्रत उपस्तरण का मतलब है 'पानी के तल' जिसके ऊपर हम खाना डालते है।

पंचप्राणाहुति[संपादित करें]

बाद मे हम पंचप्राणाहुति का मंत्र शुरू करते है।

इसमे पेहले दाय हाथ के तर्जनी और अंगूठे के बीच एक चावल के दाना उठाकर मुंह के पास लाकर "ॐ प्राणाय स्वाहा" कहते उस दाने को खाते है।

फिर दाय हाथ के बीच के उंगली और अंगूठे के बीच एक और दाना उठाकर "ॐ अपानाय स्वाहा" कहते हुए खाना है।

अब दाय हाथ के अनामिका और अंगूठे के बीच एक दाना लेकर "ॐ व्यानाय स्वाहा" कहकर खाना है।

फिर दाय हाथ के छोटी उंगली और अंगूठे के बीच एक दाना लेकर "ॐ उदानाय स्वाहा" कहते खाना है।

अब पूरी हाथ से एक दाना उठाकर "ॐ समानाय स्वाहा" कहते हुए खाना है।

ज्यादातर लोग इसके बाद अच्ची तरह से खाना खाते है मगर कुछ लोग "ॐ ब्रह्मणे स्वाहा" भी कहते है।

इन पाँच मंत्र के अनुसार हम हमारे पंचतत्वों के लिये पेहले खाना देते हैं। इसके बाद खाना खाते है। ब्राह्मण लोगों का खाना शाकाहारी और सात्विक खाना होता है। इस तरह के खाना खाने से हम सेहतमंद रेहते है और खुश रेहते है।

उत्तरापोशन[संपादित करें]

खाना पूर्ण होने के बाद एक और बार आपोशन करना होता है। इसको उत्तरापोशन कहते है। '"अम्रतापिधानमसि स्वाहा" कहते हुए दय हाथ मे पानी लेकर हम पीते है। अम्रत अपिधान ने मतलब है-'पानी के ढकनक। इस तरह हम खाने के पेहले पानी और खाने के बाद भी पानी सेवन करते है ताकी हम जो भी खाये वह अच्ची तरह से पाचन हो जाये।

कथा[संपादित करें]

अगस्थ्य ऋषि

ब्राह्मणों मे खाना जीर्ण होना बहुत जरूरी है क्योंकि पुराने जमाने मैं दो राक्षस थे वातापी और इल्वल । वे दोनो ब्राह्मणों को हानी पहुंचाते थे। वातापी के पास माया की शक्ति थी जिसके उपयोग से वह किसी भी रूप को धारण कर सकता था। इल्वल को म्रितसंजीवनि मंत्र पता था जिससे वह मरा हुआ शरीर को जीवित कर सकता था। वातापी ब्राह्मण के भोजन मे मिल जाता और खाने के बाद इल्वल मंत्र से वातापी को बुलाता। वातापी ब्राह्मण से बाहर आता और इससे ब्राह्मण मर जाता था और वे दो राक्षस ब्राह्मण को खा लेते थे।

एक बार अगस्थ्य ऋषि के साथ भी वे इसी तरह करने की सोची मगर अगस्थ्य ऋषि खाने के बाद कहते है "वातापी जीर्णोभव" और इससे इल्वल के बुलाने पर वातापी न आ सका। अगस्थ्य ऋषि ने इल्वल को भी अपने तप की शक्ति से मार डाला। इसी कारण ब्राह्मण जनांग मे खाना जीर्ण होना जरूरी है।

आपोशन करने के बाद उत्तरापोशन होने तक हमे उठना नहीं है और बात नही करना है मगर भतवान के स्मरण और पुण्यकथा प्रवचन कर सकते है। बात करना मना है क्योंकि अगर हम बात करते रहे तो खाना गले मे अटक सकता है और हमे श्वास लेने मे तकलीफ हो सकता है। अगर हम बात न करे तो हम समय गवाये बिना खाना समाप्त कर सकते है। इस रिवाज का अनुष्ठान ब्राह्मण पुरुषो मे ब्रह्मोपदेश/यज्ञोपवीत संस्कार के बाद ही शुरू होता हैं। यह रिवाज स्त्रियों के लिये नही है।

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[2]

[v. k. vitlapur, rughvediya sandhyopasane, saligrama: guru naranimha temple administration]