टुसू पर्व

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टुसू पर्व या टुसू परब भारत में अगहन माह से पौष माह के अंतिम दिन यानी मकर संक्रांति पर आयोजित होने वाला एक लोक उत्सव है।[1][2] यह फसलों की कटाई के आनंद में कृषि समाज के विश्वास का एक एकीकृत रूप है।  उत्सव के अंत में, टूसू देवी की छवि का विसर्जन टुसू गीतों के साथ विशद रूप से किया जाता है। त्योहार के दौरान ग्रामीण मेलों का भी आयोजन किया जाता है।  टुसू त्योहार, ज्यादातर पश्चिम बंगाल के दक्षिण पश्चिम, झारखंड के दक्षिण पूर्व, पूर्वोत्तर ओडिशा के साथ-साथ असम के चाय-राज्य में मनाया जाता है।[3]

टुसू परब

टूसू एक धर्मनिरपेक्ष त्योहार है और सभी जातियों और धर्मों के लोगों द्वारा मनाया जाता है, जैसे कि ईसाई, हिंदू, गैर-हिंदू, आदिवासी, सभी।[4] टुसू परब मुख्यत: भूमिज, कोरा, मुंडा, संथाल, खड़िया, हो, गोंड, चिक बड़ाइक, उरांव, खेरवार, माहली, लोहरा, सबर, करमाली, कुड़मी महतो, लोधा, बागाल, भुइंया, गोंझू और अन्य समुदायों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है।[5][6] टुसू पर्व को तीन प्रमुख नामों से भी जाना जाता है - टुसू परब, मकर परब और पौष परब।[7][8]

परंपरा और त्योहार[संपादित करें]

पौष माह के अंतिम दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। मकर संक्रांति के पहले दिन "बांउड़ी" मनाया जाता है, जिसमें लोग त्योहार के लिए वस्तुओं की खरीदारी करते हैं। अगले दिन मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति के अगले दिन "आखाईन जातरा" मनाया जाता है। आमतौर पर बांउड़ी तक खलिहान का कार्य समाप्त हो जाता है और आखाईन जातरा के दिन किसान कृषि कार्य का प्रारंभ करता है।[9] इस दिन नये कार्यों की शुरुआत शुभ माना जाता है। आखाँइन जातरा के दिन भूमिज आदिवासी लोग "भेंजा बिंधा" (बिंधा परब)[10] और कुड़मी महतो लोग "पीठा परब" भी मनाते हैं।[11]

मकर परब के दौरान बनाए जाने वाली "पीठा" (एक प्रकार का पकवान) भारतीय सांस्कृतिक विरासत का ही एक अंग है। मकर परब में गुड़ पीठा सबसे प्रसिद्ध है। गांवों में अरवा चावल को लकड़ी की ढेंकी में कूटा जाता है, फिर उसमें गुड़, बादाम, आदि सामग्री मिलाकर गुड़ पीठा बनाया जाता है।[12] इसके अलावा संथाल और भूमिज आदिवासियों में "जीलू पीठा" (मांस पीठा) और "धुम्बु पीठा" (ढुम्बु पीड़ा) भी बहुत प्रचलित है। मांस पीठा में चावल की आटा में मांस, प्याज, मिर्च और मसाले मिलाकर बनाया जाता है। धुम्बु पीठा अरवा चावल के गोले में गुड़ डालकर, मिट्टी के बर्तन में पुआल में रखकर बनाया जाता है।

नदी तट पर टुसू मेला का आयोजन

मकर परब के दिन से महीनों तक झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में नदी तटों पर टुसू मेला का आयोजन किया जाता है। लोग टुसू की मुर्ति और मंदिर की तरह "चौड़ाल" बनाकर मेले में जाते हैं, और भूमिज, संथाल, कुड़मी महतो, मुंडा, लोधा समुदाय के लोग टुसू गीत गाते हैं।[13]

कहानी[संपादित करें]

टुसू परब मनाने के पीछे अनेक कहानियां और कथाएं बताई जाती है, जो निम्न हैं —

  • भूमिज और संथाल लोगों में प्रचलित कहानी के अनुसार, गुजरात के एक राजा की रुक्मिणी नामक पुत्री थी, जिसे टुसू नाम से भी पुकारा जाता था। राजकुमारी टुसू को पंजाब के एक राजकुमार सीताराम से प्रेम हुआ। लेकिन एक मुग़ल बादशाह रुक्मिणी की सुंदरता से आकर्षित होकर उसे पाना चाहता था। बादशाह को दोनों के रिश्ते का पाता चला, प्रेमियों को मुगल बादशाह के क्रोध से भागना पड़ा। दोनों भागकर संतालों के राज्य से होते हुए भूमिजों के राज्य में पहुंचे, जहां एक भूमिज राजा ने उन दोनों का विवाह कराया। कुछ दिन बाद, रुक्मिणी (टुसू) के पति सीताराम का निधन हो गया। व्याकुल टूसू अपने प्रेमी के बिना जीवन का सामना नहीं कर सकी और पति की जलती चिता में कूद गई। इसके बाद से ही भूमिज, संथाल और कुड़मी टुसू पर्व को टुसू देवी की दया, सदाचार, प्रेम और बलिदान के प्रतीक के रूप में मानते हैं।[14][15]
  • अन्य प्रचलित कहानी के अनुसार, टुसू परब टुसूमनी नामक युवती के स्वाभिमान की गाथा से जुड़ा है। टुसूमनी एक गरीब किसान की अत्यंत सुंदर कन्या थी। सम्पूर्ण राज्य में उसकी सुंदरता की चर्चा होने लगी, यह खबर एक क्रुर मुग़ल राजा के दरबार तक पहुंची। कन्या को प्राप्त करने के लिए राजा ने षड्यंत्र रचना प्रारंभ कर दिया। संयोग से उस साल राज्य में भीषण अकाल पड़ गया। किसान लगान देने की स्थिति में नहीं थे। इसी स्थिति का फायदा उठाने के लिए राजा ने कृषि कर दोगुना कर दिया। किसानों ने कृषि कर माफी की मांग की, राजा ने कर माफी के बदले टुसूमनी की इच्छा की। लेकिन टुसूमनी ने राजा के आगे घुटने टेकने के बजाय जलसमाधि लेने का फैसला लिया और उफनती स्वर्णरेखा नदी के सतीघाट स्थल पर कूद गई। उनकी इस कुर्बानी की याद में ही टुसू पर्व मनाया जाता है।[16]
  • एक अन्य कथा के अनुसार, एक कुरमी किसान की सरला, भादू और टुसूमनी नामक तीन पुत्री थीं। जिनमें टुसूमनी अधिक रूपवती और गुणवती थी। उस समय भारत में मुगलों का शासन था। खूबसूरत होने के कारण मुगल बादशाह टुसूमनी को जबरन अपनाना चाहता था। टुसूमनी ने अपनी इज्जत बचाने के लिए पौष माह में मकर संक्रांति के दिन स्वर्णरेखा नदी में कूदकर जान दे दी।[17]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Society, Indian Musicological (1986). Journal of the Indian Musicological Society (अंग्रेज़ी में). A.R. Mehta for the Indian Musicological Society.
  2. ":::::: Daricha Foundation ::::::". daricha.org. अभिगमन तिथि 2023-04-21.
  3. News8Plus (2023-01-12). "Tusu Festival: The fragrance of Tusu started spreading from village to city, songs started echoing - News8Plus-Realtime Updates On Breaking News & Headlines" (अंग्रेज़ी में). मूल से 21 अप्रैल 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-04-21.
  4. "Festival of Tusu: An Introduction". Sahapedia (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-04-21.
  5. "Medinipurian Culture - medinipur rockers". sites.google.com. मूल से 21 अप्रैल 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-04-21.
  6. Singh, Ajit K. (1982). Tribal Festivals of Bihar: A Functional Analysis (अंग्रेज़ी में). Concept Publishing Company.
  7. "Tusu Festival in Jharkhand: मकर संक्रांति के साथ मनाया जाता है टुसू पर्व, जानिए इसके पीछे की पूरी कहानी". Prabhat Khabar. अभिगमन तिथि 2023-04-21.
  8. "Rituals And Festivals Of The Ho Tribe". www.etribaltribune.com. अभिगमन तिथि 2023-04-21.
  9. "Tusu Parab 2023: झारखंड में टुसू पर्व का उत्साह, जानें मकर सक्रांति के दिन क्यों मनाया जाता है ये खास त्योहार". Zee News. अभिगमन तिथि 2023-04-21.
  10. Bengal, India Superintendent of Census Operations, West (1965). District Census Handbook, West Bengal: Calcutta. v (अंग्रेज़ी में). Superintendent, Government Printing.
  11. Choudhury, Pranab Chandra Roy (1976). Folklore of Bihar (अंग्रेज़ी में). National Book Trust, India.
  12. "Tribal folk prepare for Tusu festival". The Times of India. 2013-01-13. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-8257. अभिगमन तिथि 2023-04-21.
  13. Singh, Ajit K. (1982). Tribal Festivals of Bihar: A Functional Analysis (अंग्रेज़ी में). Concept Publishing Company.
  14. Chetrī, Harkabahādura (2005). Adivasis and the Culture of Assam (अंग्रेज़ी में). Anshah Publishing House. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8364-008-4.
  15. "Festival". APPL Foundation (अंग्रेज़ी में). 2018-01-16. अभिगमन तिथि 2023-04-21.
  16. "नारी शक्ति का स्‍वाभिमान बताता है टुसू पर्व, सम्‍मान की खातिर टुसूमनी ने ले ली थी जलसमाधि; पढ़ें इसका महत्‍व". Dainik Jagran. अभिगमन तिथि 2023-04-21.
  17. "Tribal folk prepare for Tusu festival". The Times of India. 2013-01-13. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-8257. अभिगमन तिथि 2023-04-21.