नागनाथ इनामदार

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नागनाथ संतराम इनामदार, (जन्म:23 नवंबर 1923, मृत्यु: 16 अक्टूबर 2002) मराठी साहित्यकार थे। मराठी साहित्य में ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में इनकी विशेष ख्याति रही है। मराठी के साथ-साथ ये हिन्दी में भी अत्यधिक लोकप्रिय रहे हैं।

परिचय[संपादित करें]

इतिहासपरक कथालेखन के माध्यम से आधुनिक मराठी में अपना एक विशिष्ट स्थान रखने वाले श्री नागनाथ इनामदार का जन्म महाराष्ट्र के सांगली जिले में हुआ था। नागपुर विद्यापीठ से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के बाद साहित्य क्षेत्र में 10 वर्ष तक अनवरत लेखन कार्य के बाद 1962 में मराठी में इनका पहला ऐतिहासिक उपन्यास 'झेप' प्रकाशित हुआ। आरम्भ में ये कहानी-लेखक थे। करीब आधे दर्जन से ऊपर इनके कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं। बाद में ये उपन्यास-लेखन की ओर मुड़ गये। आरंभ में ही प्रकाशित इनके तीनों उपन्यास-- झेप, झुंज तथा मंत्रावेगळा पर लगातार महाराष्ट्र शासन से पुरस्कार मिले।[1] मराठी में हरिनारायण आप्टे के बाद के ऐतिहासिक उपन्यासकारों में नागनाथ इनामदार का नाम अपने आरंभिक लेखन-समय से ही उल्लेखनीय रहा है।[2]

ऐतिहासिकता एवं इतिहास-रस की यथासंभव पूरी रक्षा करते हुए सर्जनात्मकता का सहज विनियोग इनामदार के कथा लेखन की मुख्य विशेषता है। इनके उपन्यास नाटकीय गुणों से भरपूर हैं, जिससे वर्णनात्मक दृश्य भी चित्रपट के दृश्य की तरह मानस-पटल पर अंकित रह जाते हैं।

आधुनिक मराठी उपन्यासकारों में अपेक्षाकृत कम लिखकर ही महान् ख्याति प्राप्त कर लेने वालों में श्री इनामदार अग्रगण्य रहे हैं।[3]

प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ[संपादित करें]

  1. झेप - 1962 (त्रिंबकजी डेंगळे {अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के सुयोग्य मुख्य मंत्री} के जीवन पर केन्द्रित)
  2. झुंज - 1966 (हिन्दी अनुवाद - प्रतिघात, प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली)
  3. मंत्रावेगळा- 1969 (अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के जीवन पर केन्द्रित)
  4. राऊ - 1972 ( हिंदी अनुवाद - राऊ स्वामी, प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली)
  5. शहेनशहा - 1976 (हिंदी अनुवाद - शाहंशाह, प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली)
  6. शिकस्त - 1983 (सदाशिवराव भाऊ की पत्नी पार्वती बाई के जीवन एवं वेदना पर केन्द्रित)
  7. राजेश्री - 1986 (छत्रपति शिवाजी के उत्तर जीवनचरित्र पर केन्द्रित)

ये सभी उपन्यास आकाशवाणी और दूरदर्शन से समय-समय पर प्रसारित भी हो चुके हैं।[4] 1992 में उनकी आत्मकथा तीन खंडों में प्रकाशित हुई।


हिंदी में अनूदित उक्त 3 कृतियों में से कालक्रम की दृष्टि से सबसे पहले लिखे गए प्रतिघात में सबसे बाद का कालखंड लिया गया है। इसमें यशवंतराव होलकर की कहानी कही गयी है। यशवंतराव होल्कर मराठा इतिहास में एक चमत्कार की तरह है। एक ओर तो उसे पेशवा के अविश्वास का सामना करना पड़ रहा था और दूसरी ओर अंग्रेजों की चुनौती का। इन दोनों के बीच एक योद्धा मानव के रूप में यशवंतराव होल्कर का जो चित्रण नागनाथ इनामदार ने किया है वह निश्चय ही सर्जनात्मकता की नयी ऊँचाइयों को छूने वाला है।

राऊ स्वामी महानतम पेशवा बाजीराव एवं अपने युग की सर्वाधिक सुंदरी मस्तानी की प्रणय गाथा पर आधारित उपन्यास है। इसमें इन दोनों के जीवन तथा उस युग का ऐतिहासिकता की हर संभव रक्षा करते हुए जैसा चित्रण लेखक ने किया है, उसने इस उपन्यास को एक आदर्श ऐतिहासिक उपन्यास बना दिया है।

शाहंशाह में इन दोनों उपन्यासों से अपेक्षाकृत पहले का कालखंड लिया गया है। इस उपन्यास में मुगल बादशाह औरंगजेब का चरित्र प्रचलित रूढ़ियों से हटकर चित्रित किया गया है। इसमें उसकी कमजोरियों एवं शहजोरियों को अपेक्षाकृत तटस्थ दृष्टि से परखने का प्रयत्न करते हुए उसमें निहित मानवीयता को भी समझने का सर्जनात्मक प्रयास श्लाघनीय है।

सम्मान[संपादित करें]

'शहेनशहा' (शाहंशाह) के लिए अखिल भारतीय निर्मिति के 1976 के प्रथम पुरस्कार के साथ अनेक शासकीय, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक संस्थाओं से पुरस्कृत एवं सम्मानित।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. भारतीय साहित्य कोश, सं० - डाॅ० नगेन्द्र, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली, संस्करण-1981, पृष्ठ-564.
  2. भारतीय साहित्य का समेकित इतिहास, अध्याय लेखक- रणवीर रांग्रा, संपादक- डॉ० नगेंद्र, हिंदी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, संस्करण- 2013, पृष्ठ-605.
  3. भारतीय साहित्य कोश, सं० - डाॅ० नगेन्द्र, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली, संस्करण-1981, पृष्ठ-564.
  4. राऊ स्वामी, नागनाथ इनामदार, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, संस्करण 2007, फ्लैप पर दिए गए लेखक परिचय से उद्धृत।