शेषनाग

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शेषनाग
नागराज और भगवान विष्णु की शैया व भक्त
शेषनाग
हजार सिर वाले नाग नागों के राजा शेषनाग
अन्य नाम कद्रूनन्दन , संकर्षण , लक्ष्मण, बलभद्र, आदिशेष
संबंध विष्णु भक्त
नागों का राजा
निवासस्थान क्षीर सागर
अस्त्र विषैले फन
जीवनसाथी नागलक्ष्मी[1]
माता-पिता
भाई-बहन वासुकी , तक्षक , कालिया , शन्ख , महापद्म , पद्म , कर्कोटक , धनञ्जय आदि नाग
संतान सुनयना (जनक की पत्नी) , महाबलवान और सुलोचना (इन्द्रजीत की पत्नी)
त्यौहार नाग पञ्चमी
चित्र:Brahma give boon to Shesha and order to bear the Prthvi or Earth.jpg
ब्रह्मा शेषनाग को वर देते हुए

शेषनाग या अदिशेष,ऋषि कश्यप और कद्रू के सबसे बड़े पुत्र हैं। वह नागराज भी थे। परंतु ये राजपाट छोड़कर विष्णु की सेवा में लग गए क्योंकि उनकी माता कद्रू ने अरुण और गरुड़ की माता तथा अपनी बहिन और उनकी विमाता विनता के साथ छल किया था। वह विष्णु भगवान के परम भक्त हैं और उनको शैया के रूप में आराम देते हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, शेषनाग का दूसरा नाम अनंत भी हैं। इनके अनंत मस्तक हैं, इनका शरीर अनंत विशाल हैं और इनका कही अंत नहीं हैं इसीलिए इन्हें 'अनंत' भी कहा गया हैं। वह भगवान विष्णु के साथ क्षीरसागर में ही रहते हैं। भगवान श्रीहरि और माता लक्ष्मी क्षीर सागर में शेषनाग के आसन पर ही निवास करते हैं। मान्यताओं के अनुसार शेष ने अपने पाश्चात वासुकी और वासुकी ने अपने पश्चात् तक्षक को नागों का राजा बनाया वह सारे ग्रहों को अपनी कुंडली पर धरे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि जब शेषनाग सीधे चलते हैं कब ब्रह्मांड में समय रहता है और जब शेषनाग कुंडली के आकार में आ जाते हैं तो प्रलय आती हैं। वह भगवान विष्णु के भक्त होने के साथ-साथ उनके अवतारों में भी उनका सहयोग करते हैं। जैसे कि त्रेता युग के राम अवतार में शेषनाग ने लक्ष्मण भगवान का रूप धरा था। वैसे ही द्वापर युग के कृष्ण अवतार में शेषनाग जी ने बलराम जी का अवतार लिया था। जब वसुदेव जी भगवान कृष्ण भगवान को टोकरी में डालकर नंद जी के यहां ले जा रहे थे तब शेषनाग जी उनकी छतरी की तरह उनको बारिश से बचा रहे थे। इनके अन्य छोटे भाई वासुकी , तक्षक , कालिया नाग , पद्म , महापद्म , धनञ्जय , शन्ख आदि नाग थे।

शेषनाग का जन्म[संपादित करें]

महाभारत के अनुसार दक्ष प्रजापति की कद्रू और विनता नाम की दो कन्याएं थीं दोनों का विवाह महर्षि कश्यप से हुआ। महर्षि कश्यप अपनी दोनों पत्नियों से समान प्रेम करते थे। एक बार महर्षि कश्यप ने अपनी दोनों पत्नियों से वरदान मांगने को कहा तो कद्रू ने एक सहस्त्र समान नागों को पुत्र रूप में पाने की मांग की लेकिन विनता ने केवल दो ही पुत्रों की मांग की जो कद्रू के हजार नागों से भी बलशाली हो। महर्षि कश्यप के वरदान के फल स्वरूप विनता ने दो और कद्रू ने हजार अन्डे दिए। दोनों ने अपने अण्डों को उबालने के लिए गर्म बर्तनों में रख दिया। ५०० वर्ष के बाद कद्रू के पहले अंडे से शेषनाग का जन्म हुआ।

शेषनाग को श्राप[संपादित करें]

एक बार कद्रू और विनता कहीं जा रही थीं तो उन्हें समुद्र मन्थन के समय निकला हुआ उच्चै:श्रवा नाम का सात मुखों वाला घोड़ा दिखा। विनता ने कहा कि "देखो दीदी इस घोड़े का रंग ऊपर से नीचे तक सब स्थानों पर से सफ़ेद है। कद्रू ने कहा कि "नहीं विनता इस घोड़े की पूंछ काले रंग की है। कद्रू ने विनता को अपनी दासी बनाने के लिए अपने पुत्र नागों से कहा। कई नागों ने उसकी आज्ञा मान ली लेकिन ज्येष्ठ पुत्र शेषनाग तथा मंझले पुत्र वासुकी और कुछ अन्य नागों ने इस बात का विरोध किया तो कद्रू ने शेषनाग और वासुकी समेत उन सभी नागों को श्राप दिया कि तुम पाण्डववन्शी राजा जनमेजय के नागयज्ञ में जलकर भस्म हो जाओगे।

श्राप से मुक्ति[संपादित करें]

श्राप पाने के बाद शेषनाग और वासुकी अपने छलिए भाइयों और अपनी माता को छोड़कर अनन्त ने गन्धमादन पर्वत पर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वर माँगा कि उनका मन सदा धर्म की ओर छुका रहे तथा भगवान नारायण के वे सेवक और सहायक बने। ब्रह्मा जी ने उन्हें इन वरों के अतिरिक्त ये वर भी दिया कि वे पृथ्वी को अपने फणों पर उठाए रखेंगे जिससे उसका सन्तुलन नहीं बिगड़ेगा । शेषनाग को इस श्राप से मुक्ति मिलते ही शेषनाग ने तब से आज तक पृथ्वी को अपने फणों पर उठाया हुआ है और शेषनाग के जल लोक में जाते ही उनके छोटे भाई वासुकी का राजतिलक करके उन्हें राज्य सौंप दिया गया और वासुकी के कैलाश पर्वत पर जाते ही वासुकी के छोटे भाई तक्षक का राजतिलक हुआ। वासुकी ने भी भगवान शंकर की सहायता से वासुकी ने भी श्राप से मुक्ति पाई थीे।

शेषनाग की पत्नी[संपादित करें]

शेषनाग की पत्नी नागलक्ष्मी हैं। इनका विवरण मुख्यतः गर्ग संहिता में मिलता है। गर्ग संहिता के बलभद्र खंड के अध्याय 3 में उल्लेख है कि वह अपने पति की सेवा के लिए शेष के अवतार बलराम की पत्नी रेवती के शरीर में समाहित हो गईं। [2]

गर्ग संहिता; बलभद्र खंड: अध्याय 3

प्रद्विपक मुनि ने कहा- उसके बाद शरद ऋतु के करोड़ों चन्द्रमाओं के समान कांति वाली नागलक्ष्मी स्वयं एक महान रथ पर सवार होकर वहाँ आईं। करोड़ों मित्र उनकी शोभा बढ़ा रहे थे। उन्होंने आकर स्वामी महान अनन्त भगवान संकर्षण से कहा- भगवन्! मैं भी तुम्हारे साथ पृथ्वी पर चलूँगा। तुम्हारे वियोग का दुःख मुझे इतना व्याकुल कर देगा कि मैं अपने प्राण नहीं बचा पाऊँगा। नाग लक्ष्मी का गला भर आया। भगवान अनंत, जो संपूर्ण जगत के कारणों के भी कारण हैं, जिनका स्वभाव भक्तों के दुखों को दूर करना है और जिनका श्री विग्रह ऐरावत के समान विशाल सर्प के समान है। अपनी प्रियतमा की यह हालत देखकर उन्होंने कहा- हे रामभोरू! तुम शोक मत करो, पृथ्वी पर जाओ और रेवती के शरीर में समा जाओ। तब तुम मेरी सेवा में उपस्थित होओगे। यह सुनकर नाग लक्ष्मी बोलीं- 'रेवती कौन है? वह किसकी पुत्री है और कहाँ रहती है - आप मुझे विस्तारपूर्वक बताइये। यह सुनकर भगवान अनन्त मुस्कुराये और अपने प्रिया से बोले। यह दुनिया की शुरुआत के बारे में है. मैंने कद्रू के गर्भ से कश्यप के पुत्र के रूप में जन्म लिया। [1]

शेषनाग के अवतार[संपादित करें]

लक्ष्मी माता और विष्णु भगवान शेषनाग पर आराम करते हुए की मूरति

वैसे तो शेषनाग के बल पराक्रम और अवतारों का उल्लेख विभिन्न पुराणों में है। शेषनाग के चार अवतार माने जाते हैं -:

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "गर्ग संहिता पृ. 601". hi.krishnakosh.org.
  2. name="auto">"गर्ग संहिता पृ. 601". hi.krishnakosh.org.