कृपि

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जहाँ तक मुझे पता है, कि हस्तिनापुर के महाराज शांतनु और देवी गंगा को स्वर्गलोक से श्रापित करके विश्व रचैता भगवन ब्रम्हा से पृथ्वीलोक में भेजा तब देवी गंगा अपने सातो पुत्रो को गंगा नदी में विषर्जित करने के बाद अपने आठवें पुत्र को जब गंगा में प्रवाहित करने के लिए ज्यों हि निकली तभी उनके पति महाराज शांतनु ने उन्हें रोका और कहा हे..! प्रिय आखिर हम कब तक अपने श्राप का बोझ उठाते रहेंगे कम से कम  हमारे आठवें पुत्र (देवव्रत) को तो मेरे पास रहने दो तभी तभी देवी गंगा ने उनसे कहा आर्य पुत्र आपको हमारे इस आठवें पुत्र को पाने के लिए थोड़ा प्रतीक्षा करनी होगी, इतना कहकर देवी गंगा अपने आठवें पुत्र को लेकर गंगा नदी में अन्तर्ध्यान हो गयी, जब भी कभी महाराज शांतनु को अपनी पत्नी देवी गंगा कि याद आती तो वो उस नदी के निकट जाते और वापिस हस्तिनापुर लौट आते, एक दिन वो वापिस आ हि रहे थे कि उन्हें रोते शिशुओं कि आवाज सुनी तभी महाराज शांतनु ने अपने सारथी से कहा कि मुझे उन रोते शिशुओं के पास ले जाये तभी वहां जाकर देखा एक वृक्ष के निचे दो शिशु रोते के हालत में हैं, और आस पास कमंडल और शेर के छाल के अलावा और कोई नहीं था, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ये किसी ऋषि मुनि कि कुटिया हैं, महाराज शांतनु अपने पुत्र मोह में भावुक होकर उन दो शिशुओं को अपने साथ हस्तिनापुर ले आये, और उनका नामांकरण भी कर दिया, उन दो शिशुओं में एक बालक जिसका नाम कृपा और एक बालिका जिसका नाम कृपी रखा, चुकी हस्तिनापुर के महाराज शांतनु को ये अनुमान हुआ कि ये किसी ऋषि मुनि के ही होंगे इसीलिए उन्होंने उन दो शिशुओं को लेकर अपने राजगुरु को दिया और कहा कि इन्हे किसी ऋषि मुनि के यहाँ दे दिया जाय और इनका भली-भांति से पालन-पोषण किया जाये.

उपरोक्त विवरण मैंने खुद लिखी है। ..!

लेखक :- श्याम कुमार..!

स्थान :- भुरकुण्डा, रामगढ, झारखण्ड.

kripi aur kripacharya dono judwa bhai behen the jinke pitha maharishi goutam sardwan batayie jaate hain

Shyam kumar Lowadih Ranchi Jharkhand.