प्रस्तर मूर्तिकला

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पत्थर की मूर्तियाँ प्रागैतिहासिक काल से ही अनेक कारणों से बनाई जा रही हैं।[1] पत्थर की मूर्तियाँ केवल सुंदरता का ही नहीं, बल्कि और भी बहुत चीज़ों का प्रतीक है। इस बात को इस लेख में समझाया गया है। और यह भी दिखाया है कि सालों से विकास करती यह कला अत्यंत आकर्षक और महत्वपूर्ण है।

पत्थर की मूर्तियाँ पत्थर को तीन आयामों में काटने से बनती हैं। इनकी आधारभूत संकल्पना एक ही होने पर भी हमें लाखों तरह की रचनाएँ देखने को मिलती हैं। यह एक प्राचीन कला है जिसमें प्राकृतिक पत्थर को नियंत्रित रीति से काटा जाता हैं। कलाकार अपनी क्षमता को पत्थर को काटने में दिखाता हैं, जैसे वह उसकी कुशलता का प्रतीक हो। सुबह शाम, दिन रात एक करके वे पत्थर को विभिन्न आकृतियों में काँट कर, उसको एक मूर्ती का रूप देता हैं।

पत्थर[संपादित करें]

पत्थर कई तरह के होते हैं जिनसे मूर्तियाँ बनायी जा सकती हैं। इससे संगतराश को अनेक विकल्प मिल जाते हैं जिनमें से वह अलग अलग रंग, गुणवत्ता और पत्थर की मज़बूती को चुन सकता हैं।

प्रकार[संपादित करें]

सबसे ज़्यादा मज़बूत आग्रेय चट्टान हैं जो पिघले हुए चट्टान से बनते हैं, जैसे की ग्रानाइट, बासाल्ट, डियोराइट। अवसाधी पत्थर जैसे की जिपसम का भी उपयोग होता हैं।[2] रूपांतरित पत्थर तो मूर्तिकारों में सबसे प्रसिद्ध हैं। अनेक तरह के संगमरमर इसके आधीन आते हैं।[3] पत्थर जितना मुलायम होता हैं, उतना उसे काटना आसान हो जाता हैं। ईसी लिए सोपस्टोन के साथ काम करना बहुत आसान होता हैं। ग्रानाइट, बसाल्ट जैसे पत्थर काटने केलिए बहुत कठिण होता हैं पर उस मूर्ती टिकाऊ भी ज़्यादा होता हैं।

उपलब्धता[संपादित करें]

मूर्ती बनाने के लिये अच्छे पत्थर दुनिया में हर कहीं नहीं मिलते हैं। ईजिप्ट, ग्रीस, इंडिया राष्ट्रों में ऐसे अच्छे पत्थरों की प्राचुरता हैं। इसलिए इन राष्ट्रों में बहुत सारे मंदिर और उन्न मंदिरों में खूबसूरत पत्थर की मूर्तियाँ बहुत दिखते हैं। पेट्रोग्लिफ्स सबसे पुराने तरह का पत्थर है। इस चट्टान की सतह को थोडा हटाके मूर्ती की छवी बनाई जाती है।

प्रसिद्ध पस्तर मूर्तियाँ और नक्काशी[संपादित करें]

गोथिक काथेड्रलों में हुम शिल्प की अनेक बनावटों को देख सकते हैं। निकोला पिसानो और उसके बेटे गियोवन्नि पिसानो ने इसमें अपना बड़ा योगदान दिया हैं। सबसे पहले जान्कारी में आनेवालों में से एक मूर्तिकला 'लायन म्यान' के नाम से जाना जाता है। यह करीब ३२,००० साल पहले बनाया गया हैं। दुनिया के आठ अजूबों में से भी दो पत्थर की मूर्तियाँ ही हैं। ग्रीस में डिलोस के शेर, रश्श्या की 'मदर रश्श्या' मूर्ती, मेक्सिको के ओलमेक सिर, नेमृत का पर्वत,मैकलाँजलो का डेविड, न्यू यार्क की स्वतंत्रता की मूर्ती, आदी प्रसिद्ध हैं। सुनसान सी ईस्टर द्वीप में स्थित मोई नामक पत्थर के एकचट्टानी शिल्प पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं।[4] पालिनेशिया के उपनिवेशवादियों से यह कलाकृती बनी हैं और यह मृतक पूर्वजों को दर्शाता है।

भारत में भी ऐसी अती सुंदर कलाकृती की रचनाएँ हम पा सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के कांग्रा किले में, राजस्थान के मौंट अबू के दिल्वारा मंदिर में हम अक्शम कलाकृती को पाते हैं। दिल्ली के कुतुब मिनार को युनेस्को ने सबसे ऊंचा मिनार का खिताब भी दिया है। तमिल नाडू के महिशासुर मर्दिनि गुफाओं में हिंदू पुराण को दुर्गा माता के माध्यम से समझाया गया हैं। गुजरात के जमी मस्जिद में अनन्य रूप से पत्थर को काटा गया हैं। कर्नाटक में बहुत सारे मंदिर अपनी शिल्प कलाकृती केलिए जाने जाते हैं जैसे होयसला, हलेबीडू, बेलूर आदी। ओडिशा का कोनार्क मंदिर भी अपने शिल्प कलाकृती केलिए जाने जाते हैं। महाराष्ट्रा के अजंता गुफाएँ भी बडी मनमोहक हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 26 नवंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 फ़रवरी 2017.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 फ़रवरी 2017.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 15 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 फ़रवरी 2017.
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 14 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 फ़रवरी 2017.