बामसेफ

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बामसेफ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और सामाजिक , आर्थिक, राजनितिक रूप से पिछडे(OBC) व इन समुदायों के धर्मांतरित अल्‍पसंख्‍यकों के कर्मचारियों का अखिल भारतीय संगठन है। इस संगठन का निर्माण 1978 में सर्वप्रथम जब मान्यवर कांशीराम जी द्वारा किया गया तब उनके सहयोगी संस्थापक थे दिना भाना जी और खापर्डे जी। बाद में संगठन के द्वारा राजनितिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु समाज के बेरोजगार युवाओं को आगे लाकर 85% बहुजनों के राजनितिक शून्य को समाप्त करने हेतु बीएसपी या बहुजन समाज पार्टी नामक संगठन बनाया गया तब खापर्डे जी तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार के दबाव में बामसेफ से अलग हो गए। चूंकि मान्यवर कांशीराम जी ने बामसेफ को रजिस्टर्ड नही करवाया था क्योंकि वे भारतीय संविधान से लाभ प्राप्त कर कर्मचारी /अधिकारी बने लोगो की तन मन धन, समय और बुद्धि का पर्दे के पीछे से बहुजन समाज को शिक्षित,संगठित और संघर्ष कर सामाजिक , आर्थिक, राजनितिक परिर्वतन कर भारतीय संविधान के लाभ समाज के सीमांत वर्ग तक दिलाने की योजना में थे। किन्तु खापर्डे साहाब ने अपनी जिद कि पहले बामसेफ समाजिक परिर्वतन करेगा फिर राजनितिक परिर्वतन करेगें के द्वारा बामसेफ के दो टुकड़े करवाकर अपने धड़े/गुट रजिस्ट्रेशन करवा लिया और तत्कालीन सरकार की छत्र छाया में चले गए। किन्तु मान्यवर कांशीराम जी ने अपनी सूझ बूझ और राजनितिक दूरदर्शिता के जरिए 1989 तक बहन मायावती को संगठन में शामिल कर अनरजिस्टर्ड बामसेफ को शेडो बामसेफ नाम दिया और पूरे देश में SC ST और विशेष कर ओबीसी को संगठित करने का राष्ट्र व्यापी कार्यक्रम चलाया। आज शेडो बामसेफ की वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्षा बीएसपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष माननिया बहन कुमारी मायावती ही है । इनका शेडो बामसेफ अब भी कांशीराम जी के सिद्धांतो पर चल कर सम्पूर्ण परिर्वतन की दिशा में 85% बहुजन मुलनिवासी भारतीयों के कल्याण में निःस्वार्थ भाव से काम कर रहा है। बाद के खापर्डे जी सपना पहले सामाजिक परिर्वतन फिर राजनितिक परिर्वतन को अधूरा छोड़ आज एक ही रजिस्ट्रेशन पर कम से कम 20 से अधिक महत्वकांछी लोगो के द्वारा बामसेफ के अलग अलग धड़े या गुट भारत भर में काम कर रहे हैं। जिनमें खापर्डे जी के गिरते स्वास्थ्य के चलते द्वारा कम शैक्षणिक योग्यता वाले किन्तु चालक, चपल वामन मेश्राम जो पहले अस्थाई अध्यक्ष बनाए थे बाद में 2003 के बाद बिना चुनाव के बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए थे । बाद में ज्यादा सक्रिय भूमिका के बीडी बोरकर, झल्ली जी, और सुरेश माने जी , काले जी ने भी अपने गुट बना लिए और सामाजिक परिर्वतन के बगैर कई गुटो ने मान्यवर कांशीराम जी को आदर्श बता कर अपने राजनितिक दल जैसे बीएमपी बहुजन मुक्ति पार्टी, पीपीआईडी पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया डेमोक्रेटिक, बहुजन रिपब्लिकन पार्टी बना डाले । कांशीराम जी को अपना आदर्श बता कर ये लोग बहुजन समाज पार्टी की तरह सफल होना चाहते है और अपने राजनितिक उद्देश्य पूरा करना चाहते हैं किंतु ये मान्यवर साहब कांशीराम जी की एक बात भूल जाते है कि *चाहे जितने सामाजिक संगठन समाज के हर क्षेत्र में काम करे लेकिन बहुजन समाज का एक ही राजनितिक दल होना चाहिए तब ही आप तमाम परिवर्तन सत्ता के रूप प्राप्त राजितिक मास्टर चाबी से कर सकते हो* लेकिन आज ये महत्वकांछि लोग राजनितिक स्वार्थ के चलते सवर्णों के मनुवादी राजनीतक दलों के पैसे और दबाव के चलते बहुजन समाज को तोड़ने में लगे हुए है। जबकि बसपा अपने बहुजन मार्गदर्शकों के मिशन को आगे बढाने के लिए शेडो बामसेफ के सहयोग से लगातार आगे बढ़ रही है और तीन बार यूपी जैसे जातिवादी मानसिकता वाले राज्य में बहुजन समाज की सरकार बना चुकी है जबकि रजिस्टर्ड बामसेफ के धड़े अब कॉन्ग्रेस की सरपरस्ती में आगे आने वाले बहुजन समाज के यूवाओं को अनुसूचित जाति का एक गुट बना कर पुनः विभाजित करने में लगे कभी बीजेपी के एबीवीपी के सदस्य रहे चंद्रशेखर के नॉन केडराइज्ड संगठन और दल भीम आर्मी/ आजाद समाज पार्टी के सहयोग से मान्यवर कांशीराम जी के बनाए सपने को तोड़ने में लगे है और समाज को बामसेफ के नाम से भ्रमित कर रहे हैं। जबकि आज वास्तविक और बहुजन महापुरूषों की विचार धारा पर चलने की बात करने वाला बामसेफ बीएसपी के साथ खड़ा है शेडो या परछाई की तरह।

इतिहास[संपादित करें]

इसकी स्‍थापना 1973 में मान्‍यवर कांशीराम और डी.के. खरपडे ने की। कांशीराम ने दलितों को एकताबद्ध कर, अत्याचारों का प्रतिरोध करने तथा उन्हें समाज में न्यायोचित स्थान बनाने के लिये जोरदार ढंग से प्रेरित किया। आजकल यह संगठन 'मूलनिवासी बहुजन संघ' के नाम से जाना जाता है।[1] बीच में कमज़ोर पड गई बामसेफ को बाबासाहब अम्बेडकर के जन्म दिन 14 अप्रैल को सन् 1978 में पुनः सशक्त बनाने का प्रयास किया गया। बामसेफ से कांशीराम ने दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में दलित कर्मचारियों का संगठन मजबूत बनाया। इसके पश्चात 6 दिसम्बर को डीएस 4 की स्थापना की। कांशीराम ने नारा दिया ‘ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया छोड़, बाकी सब हैं डी एस 4’। इसी क्रम में सन 1984 में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की गई। बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद सन 1993 में विधान सभा के चुनाव में बसपा और सपा गठबंधन ने 67 सीटें जीतीं। यह भारतीय राजनीति के इतिहास में किसी दलित बाहुल्य दल की जीती गईं सर्वाधिक सीटें थीं। पिछले दिनों बामसेफ व बहुजन समाज पार्टी के बीच मतभिन्‍नता दिखाई दी।[2]

विचारधारा[संपादित करें]

बामसेफ ब्राह्मणवाद को अपना मुख्‍य शत्रु मानते हुए महात्‍मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले और बाबासाहब अम्बेडकरव समस्त मुलनिवासी बहुजन महापुरुषों को अपना आदर्श मानती है। बामसेफ के अनुसार समानताविरोधी शक्तियों से लडने के लिए सामाजिक बदलाव के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी आवश्‍यक है। बामसेफ का विश्‍वास है कि सत्‍ताधारी जातियों और शोषित जातियों के स्‍पष्‍ट विभाजन को समझते हुए हमें बामसेफ के अन्तर्गत शोषित जातियों को संगठित कर शोषण का प्रतिकार करना होगा।

१-सनातन धर्म में समस्त प्राणिमात्र को अपनी आत्मा के समान समझा जाता है।

२- सनातन धर्म में मक्खी, मच्छर,किड़े-मकोडे, पशु-पक्षीयो को सताना पाप है, तो फिर मनुष्यो के साथ भेदभाव की कल्पना भी कैसे की जा सकती हैं ।

३- भेदभाव करने वाले सिर्फ अपराधी नही हैं बल्कि धर्म द्वारा उतपन्न किए गए लोग हैँ, उनको धर्म से जोड़ना उचित है क्योंकि जो उचित उचित अनुचित नही सीखा सकता और अपने ही लोगों के शोषण की बातें उसके ग्रंथ में लिखी हैँ तो वो कैसे अपने अनुयायियों को उचित मार्गदर्शन कर सकता है।

४- ब्रह्मणवाद का होवा खड़ा किया जाना चाहिए,क्योंकि ब्राह्मण न तो दयावान, न तपस्वी, न सहनशील,न भेदभाव रहित,न परोपकारी,न सत्यवादी और न ही प्राणीमात्र से प्रेम करने कैसे तो ब्राह्मण कैसे समानता की बत कर सकता है।

बाहरी कड़ियां[संपादित करें]


सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 5 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 जून 2012.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 11 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 जून 2012.