सदस्य:Kayne98r/असोला फतेहपुर बेरी के पहलवान

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असोला फतेहपुर बेरी एक चोटा गाँव है जो दिल्ली से जुडा है। इस गाँव का यह अनोखा बात हैं कि इस गाँव का हर लडका एक ही सप्ना देखता हैं, पहलवान बनना और क्लब बाउंसर या अंगरक्षक बनना।[1]


पहलवानी की शुरुआत[संपादित करें]

इस गाँव मे विजय पहलवान से हुआ, जो अभी एक अंगरक्षकों के कंपनी चला रहे हैं। वह गांव में कई युवा लड़कों को पहलवानों बनने के लिए एक प्रेरणा बन गए। इसका कारण यह है कि गांव के लड़कों को खेल और कुश्ती के रूप में शारीरिक गतिविधियों में शिक्षाविदों से अधिक रुचि रखते हैं और कई अनपढ़ पहलवानों जो सेना में शामिल करने में असमर्थ थे, वे पहलवान विजय की सफलता से प्रेरित थे और वे बाउंसर बन गये। इन पहलवानों का काम झगडा या लडने का नही पर्ंतु शांती के दूत के तरह झगडाओं को रोखते हैं।[2]

आज तक 1000 से अधिक लड़कों बाउंसर बन गए हैं[3]। इस गाँव के पहलवानो पब, बार और राष्ट्रीय राजधानी के नाइट क्लबों के दरवाजे पर काम स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों को अंगरक्षक के रूप में काम करते हैं, या निजी कॉलेजों, अस्पतालों और महंगे होटल मे काम करते हैं।

पहलवानों के दिनचर्या[संपादित करें]

पहलवानों जिम और स्वस्थ भोजन में लंबा, कठिन सत्र के साथ उनकी मांसपेशियों में विकास को बनाए रखते है। पहलवानों शाकाहारी हैं। उनके भोजन सूखे मेवे, दूध, मक्खन, सलाद के होते हैं। एक दर्जन केले और करीब आधा किलो फल। दोपहर के भोजन के दौरान, वे भी तीन-चार रोटी के साथ दही का 1.5 से 2 किलोग्राम खपत करते हैं। शाम में, वे दो रोटी और बादाम-संचार दूध पीते है।

व्यायाम के तरीके[संपादित करें]

इस गांव में एक जिम है। इस जिम एक 3000 वर्ग / फुट सीमेंट निर्माण हैं जहां मशीनों, रैक और वजन बेंच उपमब्ध हैं और वहां के पहलवान व्यायाम करते हैं। और यह जिम सुबह ४ बजे खुलता हैं और रात १० बजे तक खुला रहता हैं। हर पहलवान के व्यायाम अवधि दो या तीन घंटे के समय लंबा होता हैँ। बस व्यायाम ही नही परंतु यह लोग कुश्ती के अभ्यास और योगासन भी करते हैं जो इन्हे धैर्य, नियंत्रण, शांत रहने मे मदद करता हैं एवं मानसिक शक्ति को बढाता हैं।

पहलवानों के निजी जीवन[संपादित करें]

लेकिन इस गाँव के लडकों पढाई पर भी ध्यान देते हैं। बाउंसर के काम करने के पेहले यह लोग कम से कम १२ कक्षा तक पढाइ तक पूरा करते हैं। कुश्ती इस गांव के लड़कों के खून में है और हर परिवार के इस गांव में कम से कम एक सदस्य को एक पहलवान बन जाता है से है। इन पहलवानों के परिवारों खुश और अपने सदस्यों के पहलवानों होने के साथ संतुष्ट हैं। वे समझते हैं कि इन लड़कों को अवैध रूप से पैसा नहीं कमा रहे हैं और किसी भी सामाजिक विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं रहे हैं और वे गरिमा के साथ काम करते हैं और यह यह बात उनके परिवार के लोगों को गर्व करता है। इन पहलवानों भारत में संस्कृति के लिए योगदान दिए है। उन के अनुसार एक अंगरक्षक या एक बाउंसर होने का यह काम आसान नहीं होता है, लेकिन वे इस तरह कि काम से अच्छी रकम कमाते हैं और उन्के परिवार को पालन करते हैं।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. https://www.youtube.com/watch?v=N9an3ZPA7Ks
  2. http://www.dailymail.co.uk/news/article-2687229/If-names-not-youre-not-coming-The-Indian-village-breeds-bouncers-booming-New-Delhis-nightclubs.html
  3. http://indiatoday.intoday.in/story/bouncers-musclemen-nighclubs-parties-pubs-young-men/1/322209.html