ज्ञानचंद जैन

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ज्ञानचंद जैन
पेशासाहित्यकार
भाषाउर्दू भाषा
राष्ट्रीयताभारतीय
विषयसमालोचना
उल्लेखनीय कामsजिक्र–ओ–फिक्र

ज्ञानचंद जैन उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक समालोचना जिक्र–ओ–फिक्र के लिये उन्हें सन् 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1] स्योहारा के प्रो. ज्ञान चंद जैन उर्दू भाषा के विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार थे। साहित्य के क्षेत्र में जनपद ने कई महत्त्वपूर्ण मानदंड स्थापित किए हैं। हिंदी साहित्य में संपादकाचार्य पं. रुद्रदत्त शर्मा, बिहारी सतसई की तुलनात्मक समीक्षा लिखने वाले पं. पद्मसिंह शर्मा जनपद बिजनौर के ही थे। वहीं उर्दू साहित्य में जनपद के नगर स्योहारा के डा. अब्दुल रहमान बिजनौरी तथा प्रो. ज्ञान चंद जैन की प्रसिद्धि देश के बाहर तक रही है। प्रो. ज्ञान चंद जैन का नाम उर्दू समालोचना में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। वे उर्दू के बेहतरीन भाषाविद, शायर और समालोचक थे। वर्ष 1982 में इनकी पुस्तक ज़िक्र-ओ-फिक्र के लिए उर्दू भाषा का साहित्य एकेडमी पुरस्कार का सम्मान मिला। नगर के शाहू बहाल चंद जैन के पुत्र ज्ञान चंद जैन का जन्म 21 सितंबर 1923 को हुआ। आरंभिक शिक्षा स्योहारा में ही हुई। आपने एमए उर्दू, डी लिट् तथा 1948 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उर्दू की नसरी दास्तांने विषय पर पीएचडी की। 1960 में आगरा विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें उर्दू मसनवी शुमाली हिन्द में के लिए अवार्ड दिया गया। हमीदिया कालेज भोपाल, उस्मानिया विश्वविद्यालय, जम्मू विश्वविद्यालय, इलाहबाद विश्वविद्यालय, केन्दीय विश्वविद्यालय हैदराबाद में डीन रहे। प्रो ज्ञान चंद जैन ने ग़ाफ़िल उपनाम से शायरी भी की। वर्ष 1982 में इनकी किताब ज़िक्र-ओ-फिक्र के लिए उर्दू भाषा के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्हें इनकी साहित्यक सेवाओं के लिए 2002 में भारत सरकार द्वारा पद्यश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। डा. ज्ञानचन्द जैन ने उर्दू इंग्लिश, हिंदी साहित्य में उन्होंने 110 से अधिक किताबें लिखीं। आम लिसानियात, उर्दू की नसरियात, एक भाषा दो लिखावट दो अदब, कच्चे बोल, हकीक, लिसानी मुताले, कच्चे बोल, अदबी इज़ाफ़, गालिब शनास मालिक राम, खोज, परख और पहचान, इब्तदाई कलाम ए इकबाल, तफ़्सीर ए ग़ालिब, उपेंद्र नाथ अश्क, हकीक ए फन आदि पुस्तकें लिखीं। आज भी देश के उर्दू स्नाकोत्तर तथा पीचडी व पाकिस्तान में उर्दू के सभी विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में इनकी लिखी किताबें पढ़ाई जाती हैं। ज्ञानचंद जैन पर अनेक स्कॉलर्स ने पीएचडी की है। अपने अंतिम समय में वे स्मृति लॉस तथा पार्किंसन बीमारी से ग्रस्त रहे। 11 अगस्त 2007 में कैलिफोर्निया अमेरिका में उनका निधन हो गया।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.