बीकाजी

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[[चित्र:|thumb|right|200px|]] बीकानेर का पुराना नाम "जांगळ प्रदेश ", तथा "विक्रमाखण्ड", "विक्रम नगर" या " विक्रमपुरी" था ! इसके संस्थापक राव बीकाजी (1465-1504 ई.) थे- जिनका जन्म 5 अगस्त 1438 ई. को में जोधपुर में हुआ | इनके पिता का नाम राव जोधा व माता रानी नौरंगदे थी! बीकाजी का विवाह करणी माता की उपस्थिति में पूगल के राव शेखा भाटी की पुत्री "रंगकंवर" के साथ हुई! कहा जाता है- जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के पुत्र राव बीका ने अपने पिता से अलग हो कर अपने विश्वस्त 5 सरदारों के साथ नये राज्य की स्थापना हेतु जोधपुर से उत्तर पूर्व की ओर कूच किया और अपनी कुलदेवी ‘करणी माता’ के वरदान से अनेक छोटे-बड़े स्थानों स्थानीय जाटों एवं कबीलों को जीत कर ‘जांगल’ नामक इस प्राचीन क्षेत्र में सन् 1456 में राठौड़ राजवंश की नींव रखी।

बीकानेर की स्थापना के पीछे दो कहानियाँ सुनने में आती हैं।

पहली तो यह कि, नापा साँखला ने, जो बीकाजी के मामा थे, जोधाजी से कहा –“आपने भले ही सांतळ जी को जोधपुर का उत्तराधिकारी बना दिया है, किंतु बीकाजी को कुछ सैनिक और सारुँडे का पट्टा दे दीजिये। वह वीर है तथा भाग्य का धनी भी, वह आपके आशीष से अपने बूते खुद अपना नया राज्य स्थापित कर लेगा।’ जोधाजी ने नापा की सलाह मान ली और 500 सैनिकों की टुकड़ी सहित सारुँडे का पट्टा नापाजी को दे दिया। शूरवीर बीकाजी ने पिता का यह फैसला प्रसन्नतापूर्वक मान लिया। उस समय कांधल जी, रूपा जी, मांडल जी, नत्थू जी और नन्दा जी- ये पाँच सरदार (जो राव जोधा के सगे भाई थे) के अलावा नापा साँखला, बेला पडिहार, लाला लखन सिंह बैद, चौथमल कोठारी, नाहर सिंह बच्छावत, विक्रम सिंह पुरोहित, सालूजी राठी आदि लोगों ने बीकाजी का साथ दिया। इन सब सरदारों के साथ बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना की। सालू जी राठी जोधपुर के ओसिंयां गाँव के निवासी थे। वे अपने साथ अपने आराध्यदेव मरूनायक या मूलनायक की मूर्ति भी साथ लाये थे जिसके सम्मान में आज भी उनके वंशज ‘साले की होली’ मोहल्ले में होलिका-दहन करते है। साले का असल अर्थ बहन के भाई के रूप में न होकर सालू जी के अपभ्रंश के रूप में लिया जाना चाहिए!

बीकानेर की स्थापना के पीछे दूसरी एक लोकप्रिय जनश्रुति ये है कि एक दिन जोधपुर नरेश राव जोधा दरबार में बैठे थे तो बीकाजी कुछ देर से आये तथा प्रणाम कर अपने चाचा कांथल से कानाफूसी करने लगे| यह देख कर राव जोधा ने व्यंग्य में कहा “ मालूम होता है कि दोनों चाचा-भतीजा किसी नए राज्य की स्थापना की योजना बना रहे हैं। “ इस पर बीका और कांथल ने कहा कि "यदि महाराज साहब ! आप की कृपा हुई तो जल्दी ही ऐसा ही होगा” और ये कहने के साथ ही साथ चाचा– भतीजा दोनों राजदरबार से उठ के चले आये |

इन्हीं दोनों ने मिल कर नए बीकानेर राज्य की स्थापना की। इस प्रकार एक ताने की प्रतिक्रिया से बीकानेर की स्थापना हुई| वैसे ये क्षेत्र तब भी निर्जन नहीं था इस क्षेत्र में जाटों की बसावट के कई 2 गाँव थे|

आसोज सुदी 10, संवत 1522, सन 1465 को बीकाजी ने जोधपुर से कूच किया तथा पहले मण्डोर पहुंचे ! राव बीका ने दस वर्ष तक भाटियों का मुकाबला किया मगर विजय हासिल न देख संवत 1442 में वर्तमान बीकानेर आ गये! उन्हीं ने 1488 ई.में बीकानेर नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया। बीकाजी ने विक्रम संवत 1542 में वर्तमान लक्ष्मीनाथ मन्दिर के पास, बीकानेर के प्रथम किले की नींव रखी जिसका प्रवेशोत्सव संवत 1545, वैशाख सुदी 2, शनिवार को मनाया गया! आज भी इस किले के अवशेष देखे जा सकते हैं| इस संबंध में एक लोक-दोहा बहुप्रचलित है -

‘पन्द्रह सौ पैंतालवे, सुद बैसाख सुमेर, थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर ||”


राज्य का दूर-दूर तक विस्तार करने वाले राव बीका की निधन-तिथि इतिहास की किताबों में आसोज सुदी तृतीया संवत 1561, सन् 1504 अंकित है !

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

कोड़मदेसर भैरुजी

सन्दर्भ[संपादित करें]