नई रीत

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नई रीत हिन्दी भाषा में बनी भारतीय फिल्म है, जिसका प्रदर्शन 1948 में हुआ था।

कलाकार[संपादित करें]

  • गीता बाली
  • सुलोचना चटर्जी
  • लीला मिश्रा

निर्माण[संपादित करें]

1947 शुरू होते-होते भोपाल के प्रतिष्ठित व्यापारीगण श्री रामनारायण सिंहल व श्री सरदारमल ललवानी जी ने न्यू इण्डिया फिल्म कंपनी का गठन कर फिल्म बनाने का निश्चित करा। फिल्म की कथा, पटकथा व गीतलेखन की जिम्मेदारी लोकप्रिय हो चुके साहित्यकार भाई रतन कुमार को सौंपी गई। फिल्म का नाम, भाई रतनकुमार ने ही ’नई रीत’ रखा। फिल्म निर्माण के दौरान कुछ समय बम्बई भी रहना पड़ा।

साहित्यिक शैली को फिल्मी गीतों की शैली में सामंजस्य बिठा कुल 8 गीत भी तैयार करे गए। फिल्म की कहानी पारम्परिक की बजाय अपने जमाने से आगे की थी। इस फिल्म से प्रसिद्ध अभिनेत्री गीताबाली का फिल्म जगत में प्रवेश हुआ। अन्य कलाकार थे सुलोचना चटर्जी, लीला मिश्रा, राजेन्द्र, कृष्णकान्त, बद्रीप्रसाद, तिवारी, चंदा बाई, तारा बाई, रमेश सिन्हा, जैदी तथा बेबी अम्मू , इत्यादि। फिल्म के निर्देशक एस. के. ओझा ने फिल्म की मूल कथा में रद्दोबदल भी काफी करी। वे अन्य फिल्मों के भोपाल में ही शूटिंग की दृष्टि से बाद में भोपाल भी आए। फिल्म के संगीत निर्देशक एस. के. पाल थे। अधिकांश गीत मीना कपूर, शमशाद बेगम व कोरस में रिकार्ड किये गये। फिल्म के गीत, विशेषकर शमशाद बेगम वाले, काफी लोकप्रिय हुए।

प्रथम स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर फिल्म का काम बम्बई में चल रहा होने के कारण भाई रतनकुमार सहित पूरी फिल्म टीम को बम्बई में ही मनाना पड़ा। फिल्म के संबंध में यद्यपि कुछ लोगों का कहना था कि इस फिल्म के माध्यम से विलीनीकरण आंदोलन हेतु वित्तीय व्यवस्था करी जानी थी। तथापि भाई रतनकुमार ने फिल्म निर्माण हेतु बम्बई प्रवास व आने-जाने के दौरान विलीनीकरण आंदोलन की रूपरेखा तथा अखबार निकालने की प्रारम्भिक तैयारी पर भी काम करा। खण्डवा, जो कि रास्ते में ही पड़ता था तथा बम्बई से भी बहुत दूर नहीं था, में मौजूद पं. माखनलाल चतुर्वेदी तथा उनके सहायक रहे अभिन्न मित्र श्री प्रभागचन्द्र शर्मा (जिन्होंने अपना स्वयं का पत्र ’आगामी कल’ भी प्रारंभ कर दिया था) से सम्पर्क बनाए रखना भी भोपाल की अपेक्षा अधिक सुगम था। इनका सम्पर्क पं. नेहरू सहित अनेक राष्ट्रीय नेताओं से था। ( बाद में भाई रतनकुमार ने ही डॉ॰ शंकरदयाल शर्मा का सम्पर्क पं. नेहरू से करवाने के उद्देश्य से अपने अभिन्न मित्र प्रभागजी से मिलवाया था)।

भोपाल में उपरोक्त सारी तैयारियां नवाब के गुप्तचरों व भेदियों के चलते आसान नहीं थीं। बाद में जब भाई रतनकुमार के सरकारी नौकरी से इस्तीफा देने पर लोगों द्वारा सवाल उठाए गये तो स्वयं नवाब साहब ने यही कारण बतला संतुष्ट करने की कोशिश करी कि वे (भाई रतनकुमार) अपना आगे कैरियर बम्बई फिल्म इंडस्ट्री में बनाने की कोशिश में हैं। भाई रतनकुमार को जब उक्त भ्रामक स्पष्टीकरण की भनक लगी तो उन्होंने अपनी स्वयं अपनी ओर से मूल कारण एक पत्र में सुस्पष्ट करते हुए उसकी प्रतियां वितरित कराईं। इस पत्र में यह पूर्णतया स्पष्ट करा गया था कि जिस सरकार के विरोध में वे अखबार निकालना व आंदोलन खड़ा करना चाहते हैं, व्यक्तिगत स्वार्थ की खातिर उसी सरकारी तंत्र का हिस्सा भी बने रहना उन्हें कतई गबारा नहीं है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

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