अंशु गुप्ता

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अंशु गुप्ता
जन्म 24 दिसम्बर 1970 (1970-12-24) (आयु 53)
मेरठ , उत्तर प्रदेश , भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
शिक्षा भारतीय जन संचार संस्थान
शिक्षा की जगह भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली
पेशा गूँज और ग्राम स्वाभिमान के संस्थापक और निर्देशक
प्रसिद्धि का कारण गूँज के संस्थापक और निर्देशक
जीवनसाथी मीनाक्षी
बच्चे उर्वी
पुरस्कार रेमन मैगसेसे पुरस्कार
अशोक फैलोशिप
‘सामाजिक उद्यमिता के लिए श्वाब फाउंडेशन द्वारा वर्ष का सामाजिक उद्यमी पुरस्कार इन्हे दिया गया।
उल्लेखनीय कार्य {{{notable_works}}}

अंशु गुप्ता (जन्म :24 दिसंबर 1970) भारत के एक सामाजिक कार्यकर्ता एवं गूँज नामक गैर सरकारी संस्था के संस्थापक हैं। उन्हें २०१५ का रेमन मैगसेसे पुरस्कार प्रदान किया गया है। इन्होंने अपने कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर 1999 में 'गूंज' की स्थापना की थी। यह संस्था गरीबों की जरूरतें पूरी करती है। इसका काम है शहरों में अनुपयोगी समझे गए सामानों को गांवों में सदुपयोग के लिए पहुंचाना है। भारत के 21 राज्यों में गू्ंज के संग्रहण केंद्र काम कर रहे हैं। [1]

जीवनी[संपादित करें]

इनका जन्म मेरठ में हुआ, अपने जीवन के शुरूआती समय में वे चकराता, बनबसा (उत्तराखंड) में रहे, क्योंकि उनके पिता जी भारतीय सेना की सैन्य इंजीनियर सेवा (एमईएस) में इन स्थानों पर कार्यरत थे।

अंशु ने स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम करना शुरू किया। इन्होंने इतिहास, स्मारकों और मानवीय मुद्दों के बारे में भी लिखा। 1992 से 1998 तक कई प्रतिष्ठित संगठनों के साथ काम किया, पेशेवर यात्रा ‘चैत्र’ के साथ  बतौर कॉपीराइट लेखक के रूप में शुरू हुई और उसके बाद पावर ग्रिड कॉरपोरेशन और अंतिम संस्था ‘एस्कॉर्ट्स कम्युनिकेशन’ रही।

उन्होंने महसूस किया कि लोगों की जरूरतों में से कपड़ा एक अहम् मुद्दा है, जिसे अक्सर गरीब लोगों के लिए अनदेखा कर दिया जाता है और वर्ष 1999 में, उन्होंने अपनी पत्नी मीनाक्षी और कुछ दोस्तों के साथ, कपड़ों की बुनियादी जरूरत पर काम करने के लिए गूँज शुरू किया, एक ऐसा मुद्दा जिसका विकास के एजेंडे में कोई स्थान नहीं है।

उन्होंने पहले अपनी पत्नी और दोस्तों के साथ सरिता विहार स्थित अपने घर में रखे हुए 67 कपड़ों के साथ गूँज की शुरुआत की। आज गूँज 28 राज्यों के 4000 से अधिक गांवों में काम कर रहा है और संस्था में 1000 से अधिक लोग कार्यरत हैं।

गूँज समाज के अन्य बेहद महत्वपूर्ण लेकिन उपेक्षित जरूरतों के लिए कपड़ों का उपयोग एक रूपक के तौर पर कर रहा है , उनका यह विचार है कि रोटी, कपड़ा, मकान एक व्यक्ति की तीन सबसे आवश्यक जरूरतें हैं। इनमें से दो हमेशा ध्यान में रहते हैं, कपड़ों को कभी भी वह ध्यान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे लेकिन किसी व्यक्ति की "गरिमा" को बनाए रखने के लिए उतने ही आवश्यक हैं।

"कपड़े गरीबी को प्रदर्शित करने वाले पहले संकेतक हैं," लोगों को बुनियादी कपड़ों की जरूरतें मुहैया कराना जरुरी है, अंशु के नेतृत्व में गूँज ने बढ़ती शहरी अनुपयोगी वस्तुओं का उपयोग विभिन्न मुद्दों पर विकास कार्यों के लिए एक उपकरण के तौर पर किया है; इसके जरिये भारत के पिछड़े और दूरदराज के इलाकों में सड़कें, पानी, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर काम किया जा रहा है।

क्लॉथ फॉर वर्क[संपादित करें]

गूँज की प्रमुख पहल 'क्लॉथ फॉर वर्क' के तहत भारत भर के ग्रामीण समुदाय अपने स्थानीय मुद्दों पर काम करते हैं और बदले में शहरों से एकत्र की गई सामग्री को अपने किये गए प्रयासों के लिए पुरस्कार के रूप में प्राप्त करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में लोगों कि गरिमा और कपड़ा कैसे इस गरिमा को बनाये रखने में मदद कर सकता है यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. गूँज ने  ‘'क्लॉथ फॉर वर्क’ और अपनी अन्य पहलों के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त की है.

गूँज किसी भी प्रकार की आपदा से पीड़ित लोगों को ‘राहत’ पहुंचाने का भी काम करती ही वह आपदा चाहे बाढ़ हो, भूकंप हो या फिर कोविद.

विकास कार्यों के क्षेत्र में कपड़े जैसे अनदेखे मुद्दे को शामिल करने के लिए अंशु को भारतीय ‘क्लॉथ मैन’ यानी ‘कपड़ा मानव’ के रूप में लोकप्रियता मिली है

"क्लॉथ फ़ॉर वर्क" पहल के तहत गाँव के लोग अपने स्थानीय संसाधनों का उपयोग कुएं खोदने, तालाबों को साफ करने, सड़कों की मरम्मत करने और समुदाय में स्कूल बनाने तथा एनी विकास कार्यों के लिए करते हैं, जिसके एवज में  उन्हें कपड़े, बर्तन, फर्नीचर और खाद्यान्न जैसे अन्य संसाधन मिलते हैं.

कपड़ा: महज़ एक टुकड़ा भर नहीं.. (नॉट जस्ट ए पीस ऑफ क्लॉथ’)[संपादित करें]

अंशु गुप्ता ने 2004 की सुनामी के बाद ‘नॉट जस्ट ए पीस ऑफ क्लॉथ’ अभियान शुरू किया। अंशु बताते हैं कि, "तमिलनाडु की सड़कों पर आपदा के बाद 100 ट्रक से अधिक बर्बाद हुए कपड़ों का निपटारा किया गया।” इन्हीं कपड़ों में जो पहनने योग्य नहीं थे उन्हें ‘माहवारी के समय उपयोग किये जाने वाले पैड्स के रूप में बदला गया..."।

‘राहत’[संपादित करें]

उत्तरकाशी में भूकंप की एक घटना ने अंशु को राहत और पुनर्वास कार्यों के लिए सोचने को विवश किया, लगभग दो दशकों से, भूकंप से लेकर सुनामी, चक्रवात, बाढ़ आदि विभिन्न आपदाओं पर वे काम कर रहे हैं।

गूँज की पहल "राहत" ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में हितधारकों के एक सक्रिय और विश्वसनीय नेटवर्क के रूप में विकसित हुई है जो कि आपदा के समय में आवश्यकता के आधार पर राहत और पुनर्वास प्रयासों को तत्काल रूप से अंजाम दे सके ।

पुरस्कार और मान्यता[संपादित करें]

2004: अशोक और श्वाब फैलोशिप

2009: महिला कल्याण खंड में सीएनएन आईबीएन रियल हीरोज पुरस्कार

2012: श्वाब फाउंडेशन फॉर सोशल एंटरप्रेन्योरशिप द्वारा सोशल एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर अवार्ड।

2012: फोर्ब्स पत्रिका ने गुप्ता को भारत के सबसे शक्तिशाली ग्रामीण उद्यमियों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया।

2015: रेमन मैग्सेसे पुरस्कार।

2017: करी स्टोन डिजाइन पुरस्कार

2018: एआईएमए (अखिल भारतीय प्रबंधन संघ) पुरस्कार

2020: मैरिको इनोवेशन अवार्ड

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]