स्वनिक परिवर्तन

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ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के सन्दर्भ में, किसी भाषा की ध्वनि का कोई भी परिवर्तन जो उस भाषा के स्वनिमों की संख्या या उनका वितरण बदल दे, स्वनिक परिवर्तन या ध्वनि परिवर्तन (phonological change) कहलाता है।

भाषा को गतिशील और परिवर्तनशील माना जाता है। प्रत्येक भाषा में आंतरिक परिवर्तन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। यह परिवर्तन या बदलाव सभी भाषिक स्तरों जैसे- ध्वन्यात्मक, रूपात्मक, अर्थात्मक आदि पर जारी रहता है। इन सभी परिवर्तनों में ध्वनि परिवर्तन मुख्य रूप से सबसे अधिक क्रियाशील रहता है।

ध्वनि परिवर्तन के विभिन्न रूप[संपादित करें]

डा. भोलानाथ तिवारी ने स्वरूप के आधार पर ध्वनि परिवर्तन को निम्नलिखित वर्गों में रखा है-

  • 1. लोप- जैसे- 'अभ्यंतर' शब्द का 'भीतर' शब्द में परिवर्तन 'अ' स्वर ध्वनि के लोप के कारण हुआ है। जबकि 'सप्त' से 'सात' शब्द का निर्माण व्यंजन के लोप के कारण हुआ है।
  • 2. आगम- जैसे 'सूर्य' शब्द से 'सूरज' या 'पूर्व' से बने 'पूरब' में 'र' के बाद 'अ' ध्वनि का आगम हुआ है। इस प्रकार नई ध्वनि के आगम के द्वारा नए शब्द का निर्माण हुआ है।
  • 3. ध्वनियों का स्थान-परिवर्तन-जब किसी शब्द में दो ध्वनियां एक-दूसरे के स्थान पर चली जाती हैं तो इस परिवर्तन के द्वारा एक नए शब्द का निर्माण होता है। जैसे 'वाराणसी' मूल शब्द से बने 'बनारस' शब्द में 'ण' ध्वनि 'न' में परिवर्तित होकर 'र' के स्थान पर तथा 'र' ध्वनि 'ण' के स्थान पर चली गई, जिससे इस नए शब्द का निर्माण हुआ।
  • 4. अनुनासिकता के कारण परिवर्तन- जब किसी तत्सम शब्द का नासिक्य व्यंजन अनुनासिकता में बदल जाता है तो इस ध्वनि परिवर्तन द्वारा नया तद्भव शब्द बनता है। जैसे 'कम्पन' शब्द के 'म' के अनुनासिकता में बदलने के कारण 'काँपना' शब्द का निर्माण हुआ।
  • 5. शब्दों की ध्वनियों के दीर्घीकरण तथा महाप्राणीकरण के रूप में भी ध्वनि परिवर्तन के अनेक उदाहरण मिलते हैं। जैसे- 'सप्त' शब्द के ह्रस्व स्वर का दीर्घ स्वर में परिवर्तन हुआ और इससे 'सात' शब्द निर्मित हुआ। इसी प्रकार 'शुष्क' शब्द के 'क' अल्पप्राण व्यंजन के महाप्राण 'ख' में परिवर्तन द्वारा 'सूखा' शब्द बना। इस प्रकार भाषाओं में ध्वनियों के स्वरूप में परिवर्तन अनेक प्रकार का हो सकता है।

ध्वनि परिवर्तन के कारण[संपादित करें]

ध्वनि परिवर्तन ऐतिहासिक और भौगोलिक दोनों कारणों से होता है। 'अग्नि' से 'आग' शब्द का बनना ध्वनि परिवर्तन कहा जाएगा। तत्सम शब्दों में धीरे-धीरे ध्वनि परिवर्तन से ही तद्भव शब्दों का निर्माण हुआ है। इसी प्रकार अन्य भाषाओं से संपर्क से भी भाषा में ध्वनि परिवर्तन होता है। किसी भाषा का जब भौगोलिक विस्तार होता है तो वह अपने मूल बोली के स्वरूप को छोड़ने लगती है। वह ऐतिहासिक क्रम से कालांतर में इतनी बदल जाती है कि उसका स्वरूप उसके मूल भौगोलिक या स्थानीय रूप से बिल्कुल भिन्न हो जाता है। उदाहरण के लिए- हिन्दी का भौगोलिक विस्तार होने पर वह अपने मूल स्थानीय खड़ी बोली रूप से बाहर निकल कर राजस्थानी, भोजपुरी, ब्रज, अवधी, मैथिली तक से संबद्ध होकर भाषा के रूप में परिवर्तित हो गई।

ध्वनि परिवर्तन के अनेक कारणों में से एक उच्चारण में सुविधा या प्रयत्न-लाघव को प्रमुख माना जाता है। प्राय: बहुत से शब्दों के उच्चारण के समय उनमें आने वाली कठिन ध्वनियों को सुविधा के लिए आसान ध्वनि में बदल कर उच्चरित करने की प्रवृत्ति मिलती है। जैसे- संयुक्त व्यंजन के उच्चारण में कठिनाई होने पर आसानी से शब्द का उच्चारण करने के लिए उसके एक व्यंजन का लोप कर दिया जाता है, उदाहरण के लिए, 'द्वि' का 'दो', या 'स्नेह' का 'नेह' उच्चारण। इसके अतिरिक्त आसान ध्वनियों के प्रयोग या ध्वनियों के क्रम में परिवर्तन के द्वारा भी उच्चारण को सुविधजनक बनाया जाता है। जैसे 'ब्राह्मण' का 'ब्राम्हण' उच्चारण।

इसी प्रकार अपने आस-पास की ध्वनियों के कारण भी कोई ध्वनि प्रयोग में आते-आते परिवर्तित हो जाती है। जैसे- यदि किसी अघोष व्यंजन के आसपास कोर्इ घोष व्यंजन हो तो वह घोष हो जाता है। जैसे 'कंकण' का 'कंगन' या 'शाक' का 'साग'।

इसी प्रकार, किसी दूसरे शब्द से समानता के कारण कुछ शब्दों की ध्वनियाँ उन्हीं के समान बोले जाने के कारण परिवर्तित हो जाती हैं। जैसे- संस्कृत का 'एकदश' शब्द 'द्वादश' के सादृश्य पर 'एकादश' के रूप में बोला जाने लगा।

इन ऐतिहासिक परिवर्तनों के अतिरिक्त भाषाओं के आपसी संपर्क के कारण भी ध्वनि परिवर्तन होते हैं। एक भाषा के कुछ शब्द जब दूसरी भाषा में अपनाए जाते हैं तो उनमें ध्वनि परिवर्तन होता है। उदाहरण के लिए 'मुंबई' मराठी का तत्सम रूप है। जिसका हिंदी में परिवर्तित तदभव रूप 'बंबई' और अंग्रेजी में 'बांबे' है। यह ध्वनि परिवर्तन भाषा भेद या भौगोलिक परिवर्तन के कारण हुआ है।

भौगोलिक विस्तार के कारण भी ध्वनि परिवर्तन होता है। क्षेत्र बदलने से भाषा में बदलाव आता है। जिस भाषा का भौगोलिक विस्तार होता है उसकी ध्वनियों के उच्चारण में देश-भेद से भी अनेक परिवर्तन होते हैं। ध्वनि परिवर्तन के इन परिवर्तनों को एक ही ध्वनि रूप के वैकल्पिक रूप कहा जा सकता है।[1]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Bholanath Tiwari; Udaya Narayan Tiwari; Panduranga Damodar Gune. Tulnaatmak Bhaasha-Vigyaan. Motilal Banarsidass Publishe. पपृ॰ 40–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-2952-7.