खट्वांग

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Khatvanga

Khatvanga
देवनागरी खट्वाङ्ग
संस्कृत लिप्यंतरण Khaṭvāṅga

खट्वांग (1) शिव के अवतार भैरव के हाथ का एक आयुध। इसमें दंड के ऊपर पशु के खुर के बीच मानव कपाल लगा होता है। योगी और संन्यासी भी इस आयुध का उपयोग करते हैं। लोकजीवन में इसे जादू की लकड़ी कहा जाता है।

(2) सूर्यवंशी राजा विश्वसह का पुत्र। इसने देवदानव युद्ध के समय स्वर्ग जाकर देवताओं की बड़ी सहायता की थी। वायु पुराण में इस राजा की बड़ी महिमा गाई गई है।[1] राजा खट्वाङ्ग ने अपने जीवन के अंतिम दो घड़ी में ही मोक्ष प्राप्त करने का प्रयास किया और उसे भगवान की प्राप्ति हुई।([2])

१.वायुपुराण

२.भागवत पुराण ग्यारहवां स्कंध, अध्याय २३

  1. साँचा:वायुपुराण
  2. मुझे मालूम नहीं होता कि बड़े-बड़े विद्वान् भी धन की व्यर्थ तृष्णा से निरन्तर क्यों दुःखी रहते हैं? हो-न-हो, अवश्य ही यह संसार किसी की माया से अत्यन्त मोहित हो रहा है। यह मनुष्य-शरीर काल के विकराल गाल में पड़ा है। इसको धन से, धन देने वाले देवताओं और लोगों से, भोग वासनाओं और उनको पूर्ण करने वालों से तथा पुनः-पुनः जन्म-मृत्यु के चक्कर में डालने वाले सकाम कर्मों से लाभ ही क्या है? इसमें सन्देह नहीं कि सर्वदेवस्वरूप भगवान मुझ पर प्रसन्न हैं। तभी तो उन्होंने मुझे इस दशा में पहुँचाया है और मुझे जगत् के प्रति यह दुःख-बुद्धि और वैराग्य दिया है। वस्तुतः वैराग्य ही इस संसार-सागर से पार होने के लिये नौका के समान है। मैं अब ऐसी अवस्था में पहुँच गया हूँ। यदि मेरी आयु शेष हो तो मैं आत्मलाभ में ही सन्तुष्ट रहकर अपने परमार्थ के सम्बन्ध में सावधान हो जाऊँगा और अब जो समय बच रहा है, उसमें अपने शरीर को तपस्या के द्वारा सुखा डालूँगा। तीनों लोकों के स्वामी देवगण मेरे इस संकल्प का अनुमोदन करें। अभी निराश होने की कोई बात नहीं है, क्योंकि राजा खट्वांग ने तो दो घड़ी में ही भगवद्धाम की प्राप्ति कर ली थी।