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प्राण महिमा[संपादित करें]

शिवजी







सबसे पहले यह जान लेते है प्राण क्या होता है। इस स्थूल शरीर में प्राण एक सूक्ष्म तत्व है। यह सम्पूर्ण शरीर में अदृश्य रूप में वास करता है। पांचों इन्द्रियों व मन का राजा प्राण है। बिना प्राण के ये सब निस्तेज हैं। शास्त्रों में प्राण को ईश्वर का स्वरूप माना गया है। शरीर में भी ईश्वर प्राण देवता के रूप में ही है। इसलिए हमें जानना चाहिए कि प्राण तत्व कोई साधारण वस्तु नहीं वरन् वह जिसकी महिमा महान से महानतम बताई गई है। "List of psychotropic substances under international control" (PDF). International Narcotics Control Board. अभिगमन तिथि 20 February 2022.

वेदों में प्राणतत्व की महिमा[संपादित करें]

वेदों में प्राणतत्व की महिमा का गान करते हुए उसे विश्व की सर्वोपरि शक्ति माना है।

प्राणों विराट प्राणो देष्ट्री प्राणं सर्व उपासते। प्राणो ह सूर्यश्चन्द्रमाः प्राण माहुः प्रजापतिम्॥ -अथर्ववेद

अर्थात्- प्राण विराट है, सबका प्रेरक है। इसी से सब उसकी उपासना करते हैं। प्राण ही सूर्य, चन्द्र और प्रजापति है।

प्राणाय नमो यस्य सर्व मिदं वशे। यो भूतः सर्वस्येश्वरो यस्मिन् सर्व प्रतिष्ठम्। -अथर्ववेद

अर्थात्- जिसके अधीन यह सारा जगत है, उस प्राण को नमस्कार है। वही सबका स्वामी है, उसी में सारा जगत प्रतिष्ठित है।

उपनिषदों में[संपादित करें]

उपनिषदकार का कथन है-

प्राणोवा ज्येष्ठः श्रेष्ठश्च। - छान्दोग्य

अर्थात्- प्राण ही बड़ा है। प्राण ही श्रेष्ठ है।

प्रश्नोपनिषद में प्राणतत्व का अधिक विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है-

स प्राणमसृजत प्राणाच्छ्रद्धां खं वायुर्ज्योतिरापः पृथिवीन्द्रियं मनोऽन्नाद्धीर्य तपोमंत्राः कर्मलोकालोकेषु च नाम च। -प्रश्नोपनिषद् 6।4

अर्थात्- परमात्मा ने सबसे प्रथम प्राण की रचना की। इसके बाद श्रद्धा उत्पन्न की। तब आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी यह पाँच तत्व बनाये। इसके उपरान्त क्रमशः मन, इन्द्रिय, समूह, अन्न, वीर्य, तप, मंत्र, और कर्मों का निर्माण हुआ। तदन्तर विभिन्न लोक बने।

ब्राह्मण ग्रंथों और आरण्यकों में[संपादित करें]

ब्राह्मण ग्रंथों और आरण्यकों में भी प्राण की महत्ता का गान एक स्वर से किया गया है- उसे ही विश्व का आदि निर्माण, सबमें व्यापक और पोषक माना है। जो कुछ भी हलचल इस जगत में दृष्टिगोचर होती है उसका मूल हेतु प्राण ही है।

कतम एको देव इति। प्राण इति स ब्रह्म नद्रित्याचक्षते। -बृहदारण्यक

अर्थात्- वह एकदेव कौन सा है? वह प्राण है। ऐसा कौषितकी ऋषि से व्यक्त किया है।

‘प्राणों ब्रह्म’ इति स्माहपैदृश्य।

अर्थात्- पैज्य ऋषि ने कहा है कि प्राण ही ब्रह्मा है।

प्राण एव प्रज्ञात्मा। इदं शरीरं परिगृह्यं उत्थापयति। यो व प्राणः सा प्रज्ञा, या वा प्रज्ञा स प्राणः। -शाखायन आरण्यक 5।3

अर्थात्- इस समस्त संसार में तथा इस शरीर में जो कुछ प्रज्ञा है, वह प्राण ही है। जो प्राण है, वही प्रज्ञा है। जो प्रज्ञा है वही प्राण है।

सोऽयमाकाशः प्राणेन वृहत्याविष्टव्धः तद्यथा यमाकाशः प्राणेन वृहत्या विष्टब्ध एवं सर्वाणि भूतानि आपि पीलिकाभ्यः प्राणेन वृहत्या विष्टव्धानी त्येवं विद्यात्। -एतरेय 2।1।6

अर्थात्- प्राण ही इस विश्व को धारण करने वाला है। प्राण की शक्ति से ही यह ब्रह्मांड अपने स्थान पर टिका हुआ है। चींटी से लेकर हाथी तक सब प्राणी इस प्राण के ही आश्रित हैं। यदि प्राण न होता तो जो कुछ हम देखते हैं कुछ भी न दीखता।

शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि :--

प्राणेहि प्रजापतिः 4।5।5।13

प्राण उ वै प्रजापतिः 8।4।1।4

प्राणः प्रजापति 6।3।1।9

अर्थात्-प्राण ही प्रजापति परमेश्वर है।

सर्व ह्रीदं प्राणनावृतम्। -एतरेय

अर्थात्- यह सारा जगत प्राण से आदृत है।

भृगुतंत्र में[संपादित करें]

प्राण शक्ति ने भाण्डागार वाले स्वरूप को जान लेने पर ऋषियों ने कहा है कि कुछ भी जानना शेष नहीं रहता है।

भृगुतंत्र में कहा गया है-

उत्पत्ति मायाति स्थानं विभुत्वं चैव पंचधा। अध्यात्म चैब प्राणस्य विज्ञाया मृत्यश्नुते॥

अर्थात्- प्राण कहाँ से उत्पन्न होता है? कहाँ से शरीर में आता है? कहाँ रहता है? किस प्रकार व्यापक होता है? उसका अध्यात्म क्या है? जो इन पाँच बातों को जान लेता है वह अमृतत्व को प्राप्त कर लेता है।


कटराथल
गाँव
लुआ त्रुटि Module:Location_map में पंक्ति 422 पर: No value was provided for longitude।
देश भारत
राज्यराजस्थान
जिलासीकर
शासन
 • सभापंचायत
 • सरपंचभगवान सिंह[1]
ऊँचाई424.24 मी (1,391.86 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल7,123[2]
भाषा
 • राजकीयहिन्दी
 • मातृमारवाड़ी
समय मण्डलआइएसटी (यूटीसी+५:३०)
पिन३३२ ०२४[3]
दूरभाष कोड91-1572
वाहन पंजीकरणआरजे-२३
निकटतम शहरसीकर
सीकर से दूरी13 किलोमीटर (8.1 मील) (भूमि)[4]
जयपुर से दूरी122 किलोमीटर (76 मील) (भूमि)
ग्रीष्मकालीन औसत तापमान46-48 °C
शीतकालीन औसत तापमान0-1 °C

संदर्भ[संपादित करें]

शिव सहस्त्रनाम अत्यन्त प्रभावी, पुण्यजनक एवं मंगलकारी स्तोत्र है जिसका त्रिकाल संध्या पाठ करने से मनुष्य की सर्वत्र उन्नति होती है एवं शिव का परम सान्निध्य प्राप्त होता है। शिव के 1000 सिद्धिदायक एवं परम पुण्यवर्द्धक नामों को प्रस्तुत किया जा रहा है जिसके माध्यम से भगवान् शिव की सिद्धता, प्रभुता एवं असीमित शक्ति का ज्ञान प्राप्त होता है। साधक सामर्थ्यतानुसार प्रत्येक नाम से जप, तर्पण, अर्चन या हवन कर लाभाज्जित कर सकता है। जिसके मन में भगवान् शिव के नाम के प्रति कभी खण्डित न होने वाली असाधारण भक्ति प्रकट हुई है, उसी के लिये मोक्ष सुलभ है। जो अनेक पाप करके भी भगवान् शिव के नाम जप में आदरपूर्वक लग गया है, वह सर्व पापों से मुक्त होकर परमधाम को जाता है। महादेव के साथ आरम्भ में उनके परिवार एवं मूर्तियों आदि की भी पूजा करें।


सरगोठ ग्राम सीकर से पूर्व दिशा में, सीकर से 65 किमी दूरी व श्री माधोपुर|श्रीमाधोपुर से 22 किमी दूरी पर स्थित है। यह एक ग्राम पंचायत मुख्यालय है। [5]

सामान्य जानकारी
सरगोठ
गाँव
लुआ त्रुटि Module:Location_map में पंक्ति 422 पर: No value was provided for longitude।
देश भारत
राज्यराजस्थान
जिलासीकर
शासन
 • सभापंचायत
ऊँचाई435.24 मी (1,427.95 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल6,391
भाषा
 • राजकीयहिन्दी
 • मातृराजस्थानी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)
डाक सूचक संख्या332001
दूरभाष कोड91-1577
वाहन पंजीकरणआरजे-23
निकटतम शहरसीकर
सीकर से दूरी75 किलोमीटर (47 मील)
जयपुर से दूरी80 किलोमीटर (50 मील)
ग्रीष्मकालीन औसत तापमान36-48 °C
शीतकालीन औसत तापमान15-1 °C

जनसंख्या आंकड़े[संपादित करें]

कुल परिवारों की संख्या 928 है। गाँव में 0-6 आयु वर्ग के बच्चों की आबादी 970 है जो गाँव की कुल जनसंख्या का 15.28 % है। गाँव का औसत लिंग अनुपात 943 है जो राजस्थान राज्य के औसत 928 से अधिक है। जनगणना के अनुसार सरगोठ के लिए बाल लिंग अनुपात 862 है, जो राजस्थान के औसत 888 से कम है।[6]

अवस्थिति[संपादित करें]

सीकर से पूर्व दिशा में 27.3240994, 75.6076205 निर्देशांक पर स्थित है। ग्राम का कुल क्षेत्रफल 2011 हेक्टेयर है। [7]

इतिहास[संपादित करें]

पंचायत में अन्य गांव-

प्रमुख शिक्षण संस्थान[संपादित करें]

गाँव में कला संकाय से कक्षा 1-12 तक सरकारी स्कूल है। हिन्दी साहित्य, भूगोल व राजनीतिक विज्ञान विषय हैं।

अर्थव्यवस्था[संपादित करें]

सरगोठ
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सरगोठ is located in राजस्थान
सरगोठ
सरगोठ
सरगोठ
सरगोठ is located in भारत
सरगोठ
सरगोठ
सरगोठ (भारत)
निर्देशांक: 27°19′26″N 75°36′27″E / 27.32389°N 75.60750°E / 27.32389; 75.60750निर्देशांक: 27°19′26″N 75°36′27″E / 27.32389°N 75.60750°E / 27.32389; 75.60750

इन्हे भी देखें[संपादित करें]

  • खूड
  • मूण्डवाड़ा|मुण्डवाड़ा
  • मंढा
  • कोछोर
  • रेटा
  • रलावता
  • पचार,सीकर|पचार

सन्दर्भ[संपादित करें]

श्रेणी:सीकर ज़िले के गाँव



https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5_%E0%A4%B8%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE





https://book.gitapress.org/product-style-5/gita-press-648/



Eng Wiki se फोटो File:Bearded Shiva.jpg|thumb|The Shiva Puran, in verses 6.23-6.30 of Vayaviya Samhita, states that Om (Pranava) expresses Shiva, it includes within it Brahma, Vishnu, Rudra and Shiva, there is Purusha in everything, nothing is smaller nor bigger than Shiva-Atman.[8]

[9]

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Bibliography[संपादित करें]


साँचा:Shaivism साँचा:Puranas साँचा:Hindudharma

Category:Puranas Category:Shaiva texts




शिव पुराण हिंदू धर्म में अठारह पुराणों में सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला पुराण है। यह हिंदू भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती के चारों ओर केंद्रित है। भगवान शिव हिंदू धर्म में सबसे अधिक पूजे जाने वाले भगवानों में से एक हैं। [10]शिव महापुराण में ७ (सात) 'संहिता' (छंदों का संग्रह) शामिल हैं जो भगवान शिव के जीवन के विभिन्न पहलुओं का एक ज्वलंत विवरण प्रदान करते हैं।


शिवमहापुराण की दूसरी संहिता रुद्र संहिता है। रुद्र संहिता के पांच खंड यानि भाग है। प्रथम खंड में बीस अध्याय हैं। दूसरे खंड को सती खंड कहा गया है, जिसमें 43 अध्याय हैं। तीसरा खंड पार्वती खंड है, जिसमें 55 अध्याय हैं। चौथा खंड कुमार खंड के नाम से जाना जाता है, जिसमें 20 अध्याय हैं। इस संहिता का पांचवां खंड युद्ध खंड के नाम से जाना जाता है, इसमें कुल 59 अध्याय हैं। [11] इसी संहिता में 'सृष्टि खण्ड' के अन्तर्गत जगत् का आदि कारण शिव को माना गया हैं शिव से ही आद्या शक्ति 'माया' का आविर्भाव होता हैं फिर शिव से ही 'ब्रह्मा' और 'विष्णु' की उत्पत्ति बताई गई है।[12]






https://hindi.webdunia.com/shravan/shiv-mahapuran-116080400033_1.html

https://m-hindi.webdunia.com/shravan/shiv-mahapuran-116080400041_1.html


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रुद्र संहिता प्रथम भाग(सृष्टि खण्ड)[संपादित करें]

रुद्र संहिता प्रथम भाग(सृष्टि खण्ड) में कुल २० अध्याय हैं। इस खंड में निम्न विषयों पर कथा देखी जा सकती है :-


  • ऋषियों के प्रश्न के उत्तर में नारद-ब्रह्म-संवाद की अवतारणा करते हुए सूतजी का उन्हें नारदमोह का प्रसंग सुनाना; कामविजय के गर्व से युक्त हुए नारद का शिव, ब्रह्मा तथा विष्णु के पास जाकर अपने तप का प्रभाव बताना
  • मायानिर्मित नगर में शीलनिधि की कन्यापर मोहित हुए नारदजी का भगवान् विष्णु से उनका रूप माँगना, भगवान् का अपने रूप के साथ उन्हें वानर का-सा मुँह देना, कन्या का भगवान् को वरण करना और कुपित हुए नारद का शिवगणों को शाप देना
  • नारदजी का भगवान् विष्णु को क्रोधपूर्वक फटकारना और शाप देना; फिर माया के दूर हो जाने पर पश्चात्तापपूर्वक भगवान् के चरणों में गिरना और शुद्धि का उपाय पूछना तथा भगवान् विष्णु का उन्हें समझा-बुझाकर शिव का माहात्म्य जानने के लिये ब्रह्माजी के पास जाने का आदेश और शिव के भजन का उपदेश देना
  • नारदजी का शिवतीर्थों में भ्रमण, शिवगणों को शापोद्धार की बात बताना तथा ब्रह्मलोक में जाकर ब्रह्माजी से शिवतत्त्व के विषय में प्रश्न करना
  • महाप्रलयकाल में केवल सद्ब्रह्म की सत्ता का प्रतिपादन, उस निर्गुण-निराकार ब्रह्म से ईश्वरमूर्ति (सदाशिव) का प्राकट्य, सदाशिव द्वारा स्वरूपभूता शक्ति (अम्बिका) का प्रकटीकरण, उन दोनों के द्वारा उत्तम क्षेत्र (काशी या आनन्दवन) का प्रादुर्भाव, शिव के वामांग से परम पुरुष (विष्णु) का आविर्भाव तथा उनके सकाश से प्राकृत तत्त्वों की क्रमश: उत्पत्ति का वर्णन
  • भगवान् विष्णु की नाभि से कमल का प्रादुर्भाव, शिवेच्छावश ब्रह्माजी का उससे प्रकट होना, कमलनाल के उद्गम का पता लगाने में असमर्थ ब्रह्मा का तप करना, श्रीहरि का उन्हें दर्शन देना, विवादग्रस्त ब्रह्मा-विष्णु के बीच में अग्नि-स्तम्भ का प्रकट होना तथा उसके ओर-छोर का पता न पाकर उन दोनों का उसे प्रणाम करना
  • ब्रह्मा और विष्णु को भगवान् शिव के शब्दमय शरीर का दर्शन[13]
  • उमा सहित भगवान् शिव का प्राकट्य, उनके द्वारा अपने स्वरूप का विवेचन तथा ब्रह्मा आदि तीनों देवताओं की एकता का प्रतिपादन; श्रीहरि को सृष्टि की रक्षा का भार एवं भोग-मोक्ष-दान का अधिकार दे शिव का अन्तर्धान होना
  • शिवपूजन की विधि तथा उसका फल भगवान् शिव की श्रेष्ठता तथा उनके पूजन की अनिवार्य आवश्यकता का प्रतिपादन; शिवपूजन की सर्वोत्तम विधि का वर्णन
  • विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादि की धाराओं से शिवजी की पूजा का माहात्म्य; सृष्टि का वर्णन
  • स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की, ऋषियों की तथा दक्षकन्याओं की संतानों का वर्णन तथा सती और शिव की महत्ता का प्रतिपादन
  • यज्ञदत्तकुमार को भगवान् शिव की कृपा से कुबेरपद की प्राप्ति तथा उनकी भगवान् शिव के साथ मैत्री
  • भगवान शिव का कैलास पर्वत पर गमन तथा सृष्टिखण्ड का उपसंहार https://ebook.pustak.org/index.php/books/bookdetails/2079 पाठ "ebook" की उपेक्षा की गयी (मदद); गायब अथवा खाली |title= (मदद)



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रूद्र संहिता का (द्वितीय) सती खण्ड[संपादित करें]

रूद्र संहिता का (द्वितीय) सती खण्ड; इसमें ४३ अध्याय हैं:-

  • नारदजी के प्रश्न और ब्रह्माजी के द्वारा उनका उत्तर, सदाशिव से त्रिदेवों की उत्पत्ति तथा ब्रह्माजी से देवता आदि की सृष्टि के पश्चात्ए क नारी और एक पुरुष का प्राकट्य कामदेव के नामों का निर्देश, उसका रति के साथ विवाह तथा कुमारी संध्या का चरित्र
  • वसिष्ठ मुनि का चन्द्रभाग पर्वत पर उसको तपस्या की विधि बताना
  • संध्या की तपस्या, उसके द्वारा भगवान् शिव की स्तुति तथा उससे संतुष्ट हुए शिव का उसे अभीष्ट वर दे मेधातिथि के यज्ञ में भेजना संध्या की आत्माहुति, उसका अरुन्धती के रूप में अवतीर्ण होकर मुनिवर वसिष्ठ के साथ विवाह करना, ब्रह्माजी का रुद्र के विवाह के लिये प्रयत्न और चिन्ता तथा भगवान् विष्णु का उन्हें 'शिवा' की आराधना के लिये उपदेश देकर चिन्तामुक्त करना
  • दक्ष की तपस्या और देवी शिवा का उन्हें वरदान देना ब्रह्माजी की आज्ञा से दक्ष द्वारा मैथुनी सृष्टि का आरम्भ, अपने पुत्र हर्यश्वों और शबलाश्वों को निवृत्तिमार्ग में भेजने के कारण दक्ष का नारद को शाप देना
  • दक्ष की साठ कन्याओं का विवाह, दक्ष और वीरिणी के यहाँ देवी शिवा का अवतार, दक्ष द्वारा उनकी स्तुति तथा सती के सद्गुणों एवं चेष्टाओं से माता-पिता की प्रसन्नता सती की तपस्या से संतुष्ट देवताओं का कैलास में जाकर भगवान् शिव का स्तवन करना
  • ब्रह्माजी का रुद्रदेव से सती के साथ विवाह करने का अनुरोध, श्रीविष्णु द्वारा अनुमोदन और श्रीरुद्र की इसके लिये स्वीकृति
  • सती को शिव से वर की प्राप्ति तथा भगवान्शि व का ब्रह्माजी को दक्ष के पास भेजकर सती का वरण करना
  • ब्रह्माजी से दक्ष की अनुमति पाकर देवताओं और मुनियों सहित भगवान् शिव का दक्ष के घर जाना, दक्ष द्वारा सबका सत्कार तथा सती और शिव का विवाह
  • सती और शिव के द्वारा अग्नि की परिक्रमा, श्रीहरि द्वारा शिवतत्त्व का वर्णन, शिव का ब्रह्माजी को दिये हुए वर के अनुसार वेदी पर सदा के लिये अवस्थान तथा शिव और सती

का विदा हो कैलास पर जाना

  • सतीका प्रश्न तथा उसके उत्तर में भगवान् शिव द्वारा ज्ञान एवं नवधा भक्ति के स्वरूप का विवेचन
  • दण्डकारण्य में शिव को श्रीराम के प्रति मस्तक झुकाते देख सती का मोह तथा शिव की आज्ञा से उनके द्वारा श्रीराम की परीक्षा
  • श्रीशिव के द्वारा गोलोकधाममें श्रीविष्णुका गोपेशके पदपर अभिषेक तथा उनके प्रति प्रणामका प्रसंग सुनाकर श्रीरामका सतीके मनका संदेह करना सतीका शिवके द्वारा मानसिक त्याग
  • प्रयाग में समस्त महात्मा मुनियोंद्वारा किये गये यज्ञ में दक्ष का भगवान् शिव को तिरस्कारपूर्वक शाप देना तथा नन्दी द्वारा ब्राह्मणकुल को शाप-प्रदान, भगवान् शिव का नन्दी को शान्त करना
  • दक्ष के द्वारा महान् यज्ञ का आयोजन, उसमें ब्रह्मा, विष्णु, देवताओं और ऋषियों का आगमन, दक्ष द्वारा सबका सत्कार, यज्ञ का आरम्भ, दधीचि द्वारा भगवान् शिव को बुलाने का अनुरोध और दक्ष के विरोध करने पर शिव-भक्तों का वहाँ से निकल जाना
  • दक्षयज्ञ का समाचार पा सती का शिव से वहाँ चलने के लिये अनुरोध, दक्ष के शिवद्रोह को जानकर भगवान् शिव की आज्ञा से देवी सती का पिता के यज्ञमण्डप की ओर शिवगणों के

साथ प्रस्थान

  • यज्ञशाला में शिव का भाग न देखकर सती के रोषपूर्ण वचन, दक्ष द्वारा शिव की निन्दा सुन दक्ष तथा देवताओं को धिक्कार-फटकार कर सती द्वारा अपने प्राण-त्याग का निश्चय
  • सती का योगाग्नि से अपने शरीर को भस्म कर देना, दर्शकों का हाहाकार, शिवपार्षदों का प्राणत्याग तथा दक्ष पर आक्रमण, ऋभुओं द्वारा उनका भगाया जाना तथा देवताओं की चिन्ता
  • आकाशवाणी द्वारा दक्ष की भर्त्सना, उनके विनाश की सूचना तथा समस्त देवताओं को यज्ञमण्डप से निकल जाने की प्रेरणा गणों के मुख से और नारद से भी सती के दग्ध होने की बात सुनकर दक्षपर कुपित हुए शिव का अपनी जटा से वीरभद्र और महाकाली को प्रकट करके उन्हें यज्ञविध्वंस करने और विरोधियों को जला डालने की आज्ञा देना
  • प्रमथगणों सहित वीरभद्र और महाकाली का दक्षयज्ञ-विध्वंस के लिये प्रस्थान, दक्ष तथा देवताओं को अपशकुन एवं उत्पातसूचक लक्षणों का दर्शन एवं भय होना
  • दक्ष के यज्ञ की रक्षा के लिये भगवान् विष्णु से प्रार्थना, भगवान् का शिवद्रोहजनित संकट को टालने में अपनी असमर्थता बताते हुए दक्षको समझाना तथा सेनासहित वीरभद्र का आगमन
  • देवताओं का पलायन, इन्द्र आदि के पूछने पर बृहस्पति का रुद्रदेव की अजेयता बताना, वीरभद्र का देवताओं को युद्ध के लिये ललकारना, श्रीविष्णु और वीरभद्र की बातचीत तथा विष्णु आदि का अपने लोक में जाना एवं दक्ष और यज्ञ का विनाश करके वीरभद्र का कैलास को लौटना
  • श्रीविष्णु की पराजय में दधीचि मुनि के शाप को कारण बताते दधीचि और क्षुव के विवाद का इतिहास, मृत्युंजय-मन्त्र के अनुष्ठान से दधीचि की अवध्यता तथा श्रीहरि का क्षुव को दधीचि की पराजय के लिये यत्न करने का आश्वासन
  • श्रीविष्णु और देवताओं से अपराजित दधीचि का उनके लिये शाप और क्षुव पर अनुग्रह देवताओं सहित ब्रह्मा का विष्णुलोक में जाकर अपना दुःख निवेदन करना, श्रीविष्णु का उन्हें शिव से क्षमा माँगने की अनुमति दे उनको साथ ले कैलास पर जाना तथा भगवान् शिव से मिलना
  • देवताओं द्वारा भगवान् शिव की स्तुति, भगवान् शिव का देवता आदि के अंगों के ठीक होने और दक्ष के जीवित होने का वरदान देना, श्रीहरि आदि के साथ यज्ञमण्डप में पधारकर शिव का दक्ष को जीवित करना तथा दक्ष और विष्णु आदि के द्वारा उनकी स्तुति
  • भगवान् शिव का दक्ष को अपनी भक्तवत्सलता, ज्ञानी भक्त की श्रेष्ठता तथा तीनों देवताओं की एकता बताना, दक्ष का अपने यज्ञ को पूर्ण करना, सब देवता आदि का अपने-अपने स्थानको जाना, सतीखण्डका उपसंहार और माहात्म्य


तृतीय ( पार्वती) खण्ड[संपादित करें]

रुद्र संहिता का पार्वती खण्ड ५५ अध्याय ० तृतीय ( पार्वती) खण्ड हिमालय के स्थावर-जंगम द्विविध स्वरूप एवं दिव्यत्व का वर्णन, मेना के साथ उनका विवाह तथा मेना आदि को पूर्वजन्म में प्राप्त सनकादि के शाप एवं वरदान का कथन देवताओं का हिमालय के पास जाना और उनसे सत्कृत हो उन्हें उमाराधन की विधि बता स्वयं भी एक सुन्दर स्थान में जाकर उनकी स्तुति करना उमादेवी का दिव्यरूप से देवताओं को दर्शन देना, देवताओं का उनसे अपना अभिप्राय निवेदन करना और देवी का अवतार लेने की बात स्वीकार करके देवताओं को आश्वासन देना मेना को प्रत्यक्ष दर्शन देकर शिवादेवी का उन्हें अभीष्ट वरदान से संतुष्ट करना तथा मेना से मैनाक का जन्म - देवी उमाका हिमवान् के हृदय तथा मेना के गर्भ में आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, उनका दिव्यरूप में प्रादुर्भाव, माता मेना से बातचीत तथा नवजात कन्या के रूप में परिवर्तित होना पार्वती का नामकरण और विद्याध्ययन, नारद का हिमवान् के यहाँ जाना, पार्वती का हाथ देखकर भावी फल बताना, चिन्तित हुए हिमवान् को आश्वासन दे पार्वती का विवाह शिवजी के साथ करने को कहना और उनके संदेह का निवारण करना मेना और हिमालय की बातचीत, पार्वती तथा हिमवान् के स्वप्न तथा भगवान् शिव से मंगल- ग्रह की उत्पत्ति का प्रसंग - भगवान् शिव का गंगावतरण तीर्थ में तपस्या के लिये आना, हिमवान् द्वारा उनका स्वागत, पूजन और स्तवन तथा भगवान् शिव की आज्ञा के अनुसार उनका उस स्थानपर दूसरों को न जाने देने की व्यवस्था करना हिमवान् का पार्वती को शिव की सेवा में रखने के लिये उनसे आज्ञा माँगना और शिव का कारण बताते इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देना - पार्वती और शिव का दार्शनिक संवाद, शिव का पार्वती को अपनी सेवा के लिये आज्ञा देना तथा पार्वती द्वारा भगवान् की प्रतिदिन सेवा तारकासुर के सताये हुए देवताओं का ब्रह्माजी को अपनी कष्टकथा सुनाना, ब्रह्माजी का उन्हें पार्वती के साथ शिव के विवाह के लिये उद्योग करने का आदेश देना, ब्रह्माजी के समझाने से तारकासुर का स्वर्गको छोड़ना और देवताओं का वहाँ रहकर लक्ष्यसिद्धि के लिए प्रयत्नशील होना - इन्द्र द्वारा काम का स्मरण, उसके साथ उनकी बातचीत तथा उनके कहने से काम का शिवको मोहने के लिये प्रस्थान . रुद्र की नेत्राग्नि से काम का भस्म होना, रति का विलाप, देवताओं की प्रार्थना से शिव का काम को द्वापर में प्रद्युम्नरूप से नूतन शरीर की प्राप्ति के लिये वर देना और रति का शम्बर-नगर में जाना ब्रह्माजी का शिव की क्रोधाग्नि को वडवानल की संज्ञा दे समुद्र में स्थापित करके संसार के भय को दूर करना, शिव के विरह से पार्वती का शोक तथा नारद जी के द्वारा उन्हें तपस्या के लिये उपदेशपूर्वक पंचाक्षर मन्त्र की प्राप्ति श्रीशिव की आराधना के लिये पार्वतीजी की दुष्कर तपस्या - पार्वती की तपस्याविषयक दृढ़ता, उनका पहले से भी उग्र तप, उससे त्रिलोकी का संतप्त होना तथा समस्त देवताओं के साथ ब्रह्मा और विष्णु का भगवान् शिव के स्थान पर जाना - देवताओं का भगवान् शिव से पार्वती के साथ विवाह करने का अनुरोध, भगवान् का विवाह के दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करने पर स्वीकार कर लेना - भगवान् शिव की आज्ञा से सप्तर्षियों का पार्वती के आश्रम पर जा उनके शिव विषयक अनुराग की परीक्षा करना और भगवान् को सब वृत्तान्त बताकर स्वर्ग को जाना

रुद्र संहिता का कुमार खण्ड[संपादित करें]

रुद्र संहिता का कुमार खण्ड २०


1-8.देवताओंद्वारा स्कन्दका शिव-पार्वतीके पास लाया जाना, उनका लाड़- प्यार, देवोंके माँगनेपर शिवजीका उन्हें तारक- वधके लिये स्वामी कार्तिकको देना, कुमारकी अध्यक्षतामें देव – सेनाका प्रस्थान, महीसागर-संगमपर तारकासुरका आना और दोनों सेनाओंमें मुठभेड़, वीरभद्रका तारकके साथ घोर संग्राम, पुनः श्रीहरि और तारकमें भयानक युद्ध


9-12 ब्रह्माजीकी आज्ञासे कुमारका युद्धके लिये जाना, तारकके साथ उनका भीषण संग्राम और उनके द्वारा तारकका वध, तत्पश्चात् देवोंद्वारा कुमारका अभिनन्दन और स्तवन, कुमारका उ्हें वरदान देकर कैलासपर जा शिव-पार्वतीके पास निवास करना

13-18. शिवाका अपनी मैलसे गणेशको उत्पन्न करके द्वारपाल-पदपर नियुक्त करना, गणेशद्वारा शिवजीके रोके जानेपर उनका शिवगणोंके साथ भयंकर संग्राम, शिवजीद्वारा गणेशका शिरश्छेदन, कुपित हुई शिवाका शक्तियोंको उत्पन्न करना और उनके द्वारा प्रलय मचाया जाना, देवताओं और ऋषियोंका स्तवनद्वारा पार्वतीको प्रसन्न करना, उनके द्वारा पुत्रको जिलाये जानेकी बात कही जानेपर शिवजीके आज्ञानुसार हाथीका सिर लाया जाना और उसे गणेशके धड़से जोड़कर उन्हें जीवित करना

19. पार्वतीद्वारा गणेशजीको वरदान, देवोंद्वारा उन्हें अग्रपूज्य माना जाना, शिवजीद्वारा गणेशको सर्वाध्क्ष-पद प्रदान और गणेशचतुर्थीवरतका वर्णन, तत्पश्चात् सभी देवताओंका उनकी स्तुति करके हर्षपूर्वक अपने-अपने स्थानको लौट जाना


20 स्वामिकार्तिक और गणेशकी बाल-लीला, दोनोंका परस्पर विवाहके विषयमें विवाद, शिवजीद्वारा पृथ्वी परिक्रमाका आदेश, कार्तिकेयका प्रस्थान, गणेशका माता-पिताकी परिक्रमा करके उनसे पृथ्वी- परिक्रमा स्वीकृत कराना, विश्वरूपकी सिद्धि और बुद्धि नामक दोनों कन्याओंके साथ गणेशका विवाह और उनसे क्षेम तथा लाभ नामक दो पुत्रोंकी उत्पत्ति, कुमारका पृथ्वी-परिक्रमा करके लौटना और क्षुब्ध होकर क्रौंचपर्वतपर चला जाना, कुमारखण्डके श्रवणकी महिमा

रुद्र संहिता का युद्ध खण्ड[संपादित करें]

रुद्र संहिता का युद्ध खण्ड ५९

तारकपुत्र तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्षकी तपस्या, ब्रह्माद्वारा उन्हें वर-प्रदान, मयद्वारा उनके लिये तीन पुरोंका निर्माण और उनकी सजावट-शोभाका वर्णन

तारकपुत्रोंके प्रभावसे संतप्त हुए देवोंकी ब्रह्माके पास करुण पुकार, ब्रह्माका उन्हें शिवके पास भेजना, शिवकी आज्ञासे देवोंका विष्णुकी शरणमें जाना और विष्णुका उन दैत्योंको मोहित करके उन्हें आचारभ्रष्ट करना

देवोंका शिवजीके पास जाकर उनका स्तवन करना, शिवजीके त्रिपुरवधके लिये उद्यत न होनेपर ब्रह्मा और विष्णुका उन्हें समझाना, विष्णुके बतलाये हुए शिव-मन्त्रका देवोंद्वारा तथा विष्णुद्वारा जप, शिवजीकी प्रसन्नता और उनके लिये विश्वकर्माद्वारा सर्वदेवमय रथका निर्माण

सर्वदेवमय रथका वर्णन, शिवजीका उस रथपर चढ़कर युद्धके लिये प्रस्थान, उनका पशुपति नाम पड़नेका कारण, शिवजीद्वारा गणेशका और त्रिपुर-दाह, मयदानवका त्रिपुरसे जीवित बच निकलना

देवोंके स्तवनसे शिवजीका कोप शान्त होना और शिवजीका उन्हें वर देना, मय दानवका शिवजीके समीप आना और उनसे वर-याचना करना, शिवजीसे वर पाकर मयका वितललोकमें जाना

दम्भकी तपस्या और विष्णुद्वारा उसे पुत्रप्राप्तिका वरदान, शंखचूडका जन्म, तप और उसे वरप्राप्ति, ब्रह्माजीकी आज्ञासे उसका पुष्करमें तुलसीके पास आना और उसके साथ वार्तालाप, ब्रह्माजीका पुनः वहाँ प्रकट होकर दोनोंको आशीर्वाद देना और शंखचूडका गान्धर्व विवाहकी विधिसे तुलसीका पाणिग्रहण करना

शंखचूडका असुरराज्यपर अभिषेक और उसके द्वारा देवोंका अधिकार छीना जाना, देवोंका ब्रह्माकी शरणमें जाना, ब्रह्माका उन्हें साथ लेकर विष्णुके पास जाना, विष्णुद्वारा शंखचूडके जन्मका रहस्योद्घाटन और फिर सबका शिवके पास जाना और शिवसभामें उनकी झाकी करना तथा अपना अभिप्राय प्रकट करना


देवताओंका रुद्रके पास जाकर अपना दुःख निवेदन करना, रुद्रद्वारा उन्हें आश्वासन और चित्ररथको शंखचूडके पास भेजना, चित्ररथके लौटनेपर रुद्रका गणों, पुत्रों और भद्रकालीसहित युद्धके लिये प्रस्थान, उधर शंखचूडका सेनासहित पुष्पभद्राके तटपर पड़ाव डालना तथा दानवराजके दूत और शिवकी बातचीत

देवताओं और दानवोंका युद्ध, शंखचूडके साथ वीरभद्रका संग्राम, पुनः उसके साथ भद्रकालीका भयंकर युद्ध करना और आकाशवाणी सुनकर निवृत्त होना, शिवजीका शंखचूडके साथ युद्ध और आकाशवाणी सुनकर युद्धसे निवृत्त हो विष्णुको प्रेरित करना, विष्णुद्वारा शंखचूडके कवच और तुलसीके शीलका अपहरण, फिर रुद्रके हाथों त्रिशूलद्वारा शंखचूडका वध, शंखकी उत्पत्तिका कथन

विष्णुद्वारा तुलसीके शील-हरणका वर्णन, कुपित हुई तुलसीद्वारा विष्णुको शाप देना

उमाद्वारा शम्भुके नेत्र मूँद लिये जानेपर अन्धकारमें शम्भुके पसीनेसे अन्धकासुरकी उत्पत्ति, हिरण्याक्षकी पुत्रार्थ तपस्या और शिवका उसे पुत्ररूपमें अन्धकको देना, हिरण्याक्षका त्रिलोकीको जीतकर पृथ्वीको रसातलमें ले जाना और वराहरूपधारी विष्णुद्वारा उसका वध

हिरण्यकशिपुकी तपस्या और ब्रह्मासे वरदान पाकर उसका अत्याचार, नृसिंहद्वारा उसका वध और प्रह्लादको राज्यप्राप्ति

भाइयोंके उपालम्भसे अन्धकका तप करना और वर पाकर त्रिलोकीको जीतकर स्वेच्छाचारमें प्रवृत्त होना, उसके मनत्रियोंद्वारा शिव-परिवारका वर्णन, पार्वतीके सौन्दर्यपर मोहित होकर अन्धकका वहाँ जाना और नन्दीश्वरके साथ युद्ध, अन्धकके प्रहारसे नन्दीश्वरकी मूर्च्छा, पार्वतीके आवाहनसे देवियोंका प्रकट होकर युद्ध करना, शिवका आगमन और युद्ध, शिवद्वारा शुक्राचार्यका निगला जाना, शिवकी प्रेरणासे विष्णुका कालीरूप धारण करके दानवोंके रक्तका पान करना, शिवका अन्धकको अपने त्रिशूलमें पिरोना और युद्धकी समाप्ति

नन्दीश्वरद्वारा शुक्राचार्यका अपहरण और शिवद्वारा उनका निगला जाना, सौ वर्षके बाद शुक्रका शिवलिंगके रास्ते बाहर निकलना, शिवद्वारा उनका ‘शुक्र’ नाम रखा जाना, शुक्रद्वारा जपे गये मृत्युंजय- मन्त्र और शिवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रका वर्णन, शिवद्वारा अन्धकको वर-प्रदान

शुक्राचार्यकी घोर तपस्या और इनका शिवजीको चित्तरल्न अर्पण करना तथा अष्टमूत्त्यष्टक-स्तोत्रद्वारा उनका स्तवन करना, शिवजीका प्रसन्न होकर उन्हें मृतसंजीवनी विद्या तथा अन्यान्य वर प्रदान करना

श्रीकृष्णद्वारा बाणकी भुजाओंका काटा जाना, सिर काटनेके लिये उद्यत हुए श्रीकृष्णको शिवका रोकना और उन्हें समझाना, श्रीकृष्णका परिवारसमेत द्वारकाको लौट जाना, बाणका ताण्डव नृत्यद्वारा शिवको प्रसन्न करना, शिवद्वारा उसे अन्यान्य वरदानोंके साथ महाकालत्वकी प्राप्ति

गजासुरकी तपस्या, वर-प्राप्ति और उसका अत्याचार, शिवद्वारा उसका वध,उसकी प्रार्थनासे शिवका उसका चर्म धारण करना और ‘कृत्तिवासा’ नामसे विख्यात होना तथा कृत्तिवासेश्वरलिंगकी स्थापना करना

दुन्दुभिनिह्हाद नामक दैत्यका व्याघ्ररूपसे शिवभक्तपर आक्रमण करनेका विचार और शिवद्वारा उसका वध

विदल और उत्पल नामक दैत्योंका पार्वतीपर मोहित होना और पार्वतीका कन्दुकप्रहारद्वारा उनका काम तमाम करना, कन्दुकेश्वरकी स्थापना और उनकी महिमा

  1. राजस्थान में 2010 में चुने गये सरपंच
  2. "जनगणना 2011 के आँकड़े". अभिगमन तिथि 28 अगस्त 2012.
  3. कटराथल, सीकर डाकघर विवरण
  4. कटराथल की सीकर से दूरी
  5. https://web.archive.org/web/20150508061345/http://www.rajpanchayat.gov.in/common/sidelinks/panchayat.htm
  6. https://www.census2011.co.in/data/village/82148-sargoth-rajasthan.html
  7. https://villageinfo.in/rajasthan/sikar/sri-madhopur/sargoth.html
  8. JL Shastri 1950d, पृ॰ 1931.
  9. Klaus K. Klostermaier (1984). Mythologies and Philosophies of Salvation in the Theistic Traditions of India. Wilfrid Laurier University Press. पपृ॰ 179–180, 219, 233–234. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-88920-158-3.
  10. https://book.gitapress.org/product-style-5/gita-press-648/
  11. https://ganeshavoice.in/shiv-mahapuran-rudra-samhita-1692-2/
  12. https://aadesh.guru/shiva-purana/#%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
  13. https://www.prabhatkhabar.com/religion/1034257/