मानव पारिस्थितिकी

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मानव निर्मित पर्यावरण

मानव पारिस्थितिकी (अंग्रेज़ी: Human Ecology) एक अंतर्विषयक विज्ञान है जो मनुष्य, मानव समाज और मानव निर्मित पर्यावरण के प्राकृतिक पर्यावरण के साथ अन्योन्याश्रय संबंधों का अध्ययन करता है। विज्ञान की इस शाखा का विकास बीसवीं सदी के आरम्भ में एक साथ कई शास्त्रों के चिंतनफ़लक में हुए परिवर्तन का परिणाम है। यह विज्ञान अपनी अध्ययन सामग्री और विधियों तथा सिद्धांतों के लिये जीव विज्ञान, पारिस्थितिकी, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और भूगोल आदि पर आश्रित है।[1]

"मानव पारिस्थितिकी" शब्द का पहली बार प्रयोग एलेन स्वैलो रिचर्ड्स (Ellen Swallow Richards) द्वारा उनके लेख "Sanitation in Daily Life", में हुआ जिसमें उन्होंने इसे "मनुष्य के आसपास के पर्यावरण के मानव जीवन पर प्रभावों के अध्ययन" के रूप में परिभाषित किया।[2]"

प्रसिद्द भूगोलवेत्ता हार्लेन एच॰ बैरोज ने एसोशियेशन ऑफ अमेरिकन ज्याग्रफर्स के 1922 ई॰ के वार्षिक अधिवेशन में मानव भूगोल को मानव पारिस्थितिकी के रूप में विकसित करने का पुरजोर समर्थन किया।[3][4]

वर्तमान परिप्रेक्ष्यों में पर्यावरण (जो एक पारितंत्र है) में परिवर्तन और मानव पर उसके प्रभाव, मानव स्वास्थ्य, सामाजिक सरोकारों का पारिस्थितिकीय अध्ययन, आर्थिक क्रियाओं की संधारणीयता, प्रकृति प्रदत्त पारितंत्रीय सेवाओं का मूल्यांकन और पारिस्थितिकीय अर्थशास्त्र का विकास मानव पारिस्थितिकी के मूल अध्ययन-विषय हैं।

ऐतिहासिक विकास[संपादित करें]

मानव पारिस्थितिकी आस्पद के नवीन होने के बाद भी, पारिस्थितिकीय चिंतन के मूल बिंदुओं का चिह्नांकन प्राचीन सभ्यताओं के ज्ञान और चिंतन-शैली में भी किया जा सकता है।[5][6][7][8][9] आधुनिक समय में इकोलॉजी शब्द पहली बार अर्नेस्ट हैकल द्वारा 1866 में प्रयोग किया गया और उन्होंने इसे "प्रकृति के अर्थशास्त्र" जैसा कुछ परिभाषित करने का प्रयत्न किया।[10]

Human ecology is the discipline that inquires into the patterns and process of interaction of humans with their environments. Human values, wealth, life-styles, resource use, and waste, etc. must affect and be affected by the physical and biotic environments along urban-rural gradients. The nature of these interactions is a legitimate ecological research topic and one of increasing importance.- मैकडोनेल[11]:1233

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी, पारिस्थितिकी मात्र एक जीवविज्ञान की शाखा ही नहीं है बल्कि एक मानवशास्त्र भी है।[10] डार्विन के विकासवादी चिंतन का परिणाम हर क्षेत्र में व्याप्त हुआ और यह परकृतिक वातावरण से मानव के समायोजन की एक महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में स्थापित हुआ।[12]

हरबर्ट स्पेंसर, जिन्होंने "योग्यतम की उत्तरजीविता" नामक वाक्यांश गढ़ा, कुछ शुरूआती चिंतकों में से थे जिन्होंने समाज को एक जीवित जीवधारी के रूप में अपने पर्यावरण से अन्तर्क्रिया करते हुए देखने का प्रयास किया। उन्होंने एक तरह से समाजशास्त्र और पारिस्थितिकी के बीच संबंध स्थापित करने की भूमिका तैयार की।[6][13][14] मानव पारिस्थितिकी के विकास में उन्नीसवी सदी के अंत में भूगोल और सामजिक जीवविज्ञान का काफ़ी योगदान रहा।[6][15] सामाज शास्त्र के क्षेत्र में मानव पारिस्थितिकी के अध्ययन की शुरुआत का श्रेय पार्क, बर्गेस, हंटिंगटन और मैकेन्जी को दिया जाता है।[16] वहीं हार्लेन बैरोज ने तो मानव भूगोल को मानव पारिस्थितिकी के रूप में परिभाषित ही करने की वकालत की।[12]

जीवविज्ञान से पारिस्थितिकी के क्षेत्र में आये पारिस्थितिकी-विदों ने बहुधा मानवीय तत्वों और मानव पारिस्थितिकी कि उपेक्षा की लेकिन मानव पारिस्थितिकी का इतिहास हमेशा मनुष्य केंद्रित अध्ययन का रहा है।[6][17]

पॉल सीयर्स (Paul Sears) एक अग्रणी विद्वान हैं जिन्होंने मानव पारिस्थितिकी की संकल्पनाओं का प्रयोग जनसंख्या विस्फोट, वहन क्षमता और संवृद्धि की सीमाओं के अध्ययन में किया।[18] सीयर्स के अनुसार, "When we as a profession learn to diagnose the total landscape, not only as the basis of our culture, but as an expression of it, and to share our special knowledge as widely as we can, we need not fear that our work will be ignored or that our efforts will be unappreciated."[18]:963

पारितंत्रीय सेवायें[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. पारिस्थितिकी या परिस्थिति विज्ञान (Ecology) Archived 2016-03-06 at the वेबैक मशीन इण्डिया वाटर पोर्टल, (अभिगमन तिथि 27-07-2014)
  2. Richards, Ellen H. (1907 (2012 reprint))Sanitation in Daily Life Archived 2014-04-27 at the वेबैक मशीन, Forgotten Books. pp. v.
  3. आर॰ डी॰ दीक्षित, भौगोलिक चिंतन का विकास Archived 2014-07-29 at the वेबैक मशीन पृष्ठ सं॰ 253, गूगल पुस्तक (अभिगमन तिथि 25-07-2014)
  4. हार्लेन एच॰ बैरोज, (1923), Geography as Human Ecology, Annals of the Association of American Geographers, 13(1):1-14
  5. "माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः..."
  6. Young, G.L. (1974). "Human ecology as an interdisciplinary concept: A critical inquiry". Advances in Ecological Research. Advances in Ecological Research 8: 1–105. doi:10.1016/S0065-2504(08)60277-9. ISBN 9780120139088.
  7. Huntington, H. P. (2000). "Using traditional ecological knowledge in science: Methods and applications" (PDF). Ecological Applications. 10 (5): 1270–1274. डीओआइ:10.1890/1051-0761(2000)010[1270:UTEKIS]2.0.CO;2. मूल (PDF) से 21 जनवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2014.
  8. Turner, N. J.; Ignace, M. B.; Ignace, R. (2000). "Traditional ecological knowledge and wisdom of aboriginal peoples in British Columbia" (PDF). Ecological Applications. 10: 1275–1287. डीओआइ:10.1890/1051-0761(2000)010[1275:tekawo]2.0.co;2. मूल (PDF) से 29 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2014.
  9. Davis, A.; Wagner, J. R. (2003). "Who knows? On the importance of identifying "experts" when researching local ecological knowledge" (PDF). Human Ecology. 31 (3): 463–489. डीओआइ:10.1023/A:1025075923297. मूल (PDF) से 15 मार्च 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2014.
  10. Odum, E. P.; Barrett, G. W. (2005). Fundamentals of ecology. Brooks Cole. पृ॰ 598. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-534-42066-6. मूल से 13 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2014.
  11. McDonnell, M. J.; Pickett, S. T. A. (1990). "Ecosystem structure and function along urban-rural gradients: An unexploited opportunity for ecology". Ecology. 71 (4): 1232–1237. JSTOR 1938259.
  12. आर॰ डी॰ दीक्षित, भौगोलिक चिंतन का विकास Archived 2014-07-29 at the वेबैक मशीन पृष्ठ सं॰ 253, गूगल पुस्तक (अभिगमन तिथि 27-07-2014)
  13. Catton, W. R. (1994). "Foundations of human ecology". 31 (1): 75–95. JSTOR 1389410. Cite journal requires |journal= (मदद)
  14. Claeys, G. (2000). "The "survival of the fittest" and the origins of social Darwinism". Journal of the History of Ideas. 61 (2): 223–240. JSTOR 3654026. डीओआइ:10.1353/jhi.2000.0014.
  15. Gross, M. (2004). "Human geography and ecological sociology: The unfolding of human ecology, 1890 to 1930 - and beyond". Social Science History. 28 (4): 575–605. डीओआइ:10.1215/01455532-28-4-575. मूल से 26 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2014.
  16. प्रतियोगिता दर्पण
  17. McDonnell, M. J. (1997). "A paradigm shift". Urban Ecology. 1 (2): 85–86. डीओआइ:10.1023/A:1018598708346.[मृत कड़ियाँ]
  18. Sears, P. B. (1954). "Human ecology: A problem in synthesis". Science. 120 (3128): 959–963. JSTOR 1681410. PMID 13216198. डीओआइ:10.1126/science.120.3128.959.