जोहैनीज़ श्मिट

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जोहैनीज़ श्मिट
जन्म 2 जनवरी 1877[1][2]
मौत 21 फ़रवरी 1933[1] Edit this on Wikidata
कोपनहेगन[3] Edit this on Wikidata
मौत की वजह प्राकृतिक मृत्यु[3] Edit this on Wikidata इनफ्लुएंजा[3] Edit this on Wikidata
नागरिकता डेनमार्क Edit this on Wikidata
शिक्षा कोपनहेगन विश्वविद्यालय Edit this on Wikidata
पेशा वनस्पतिशास्त्री, समुद्री जीवविज्ञानी, जीव विज्ञानी[4] Edit this on Wikidata
संगठन कोपनहेगन विश्वविद्यालय Edit this on Wikidata
उल्लेखनीय कार्य {{{notable_works}}}

जोहैनीज़ श्मिट (Johannes Schmidt ; सन् १८७७ - १९३३), डेन्मार्क के जीववैज्ञानिक थे जिन्होने १९२० में पता लगाया कि ईल मछली अण्दे देने के लिये सरगासो सागर (लीवर्ड और बाहामा द्वीपों के मध्य) में प्रवास करतीं हैं। इसके पहले उत्तरी अमेरिका और यूरोप के लोगों को इस बात पर आश्चर्य होता आया था कि उनके मछली पकदने के स्थानों में शिशु ईल क्यों नहीं मिलती।

परिचय[संपादित करें]

जोहैनीज़ श्मिट का जन्म जीगरस्प्रिस (Jaegerspris) में तथा शिक्षा कोपेनहेगेन में हुई थी। सन् १८९९ में इन्होंने अज्ञात वनस्पतियों की खोज में स्याम देश (थाईलैंड) को अभियान कर, वैज्ञानिक जीवन आरंभ किया। सन् १९१० में कार्ल्सबर्ग संस्थान की प्रयोगशाला में हॉप (hop) के जैव तथा जीवरासायनिक अनुसंधान में आप लगे रहे, परंतु विज्ञान को आपकी सबसे बड़ी देन सागर विज्ञान के क्षेत्र में थी। कुछ समय तक ये सागर अन्वेषण के लिए गठित, अंतर्राष्ट्रीय परिषद् के सदस्य रहे। आपकी रुचि मछलियों के विकास की ओर थी।

एक सागरयात्रा में सुदूर अंध महासागर में आपने मीठे जलवासी ईल (eel) मछली के डिंभक (लार्वा) पाए और उन्हें एकत्र किया। इससे प्रेरित होकर, इन्होंने भिन्न आयुओं के डिंभकों की खोज आरंभ की तथा यह सिद्ध करने में सफल हुए कि नदियों के मीठे जल की ईल मछली के अंडे देने का स्थान, जिसकी दीर्घकाल से खोज थी, लीवर्ड और बाहामा द्वीपों के मध्य स्थित है।

सागर विज्ञान के क्षेत्र में इस महत् खोज के सिवाय, आपकी सागरयात्राओं तथा मछलियों के बच्चों संबंधी जीवनसांख्यिकीय अनुसंधानों से, सागरों के प्राणीसमूह तथा मत्स्यों के बारे में हमारी जानकारी में अतीव वृद्धि हुई।

सन्दर्भ[संपादित करें]

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