न्यूनोक्‍ति

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राजनयिक क्षेत्र में ऐसे कथनों का प्रयोग किया जाता है जिनके फलस्वरूप कटु वातावरण में सरसता आ सके और उत्तेजनात्मक बात भी नम्रता का रूप धारण कर सके। ऐसे कथनों को न्यूनोक्ति (न्यून + उक्ति ; understatement) कहते हैं।

उदाहरण[संपादित करें]

इस प्रकार के न्यूनोक्तियों की सूची पर्याप्त लम्बी है। केवल उदाहरण के लिए कुछ का उल्लेख किया जा सकता है।

  • (1) जब कोई राजनयज्ञ अथवा राजनीतिक दूसरे राज्य की सरकार को यह सूचित करता है कि उसकी सरकार अमुक अन्तर्राष्ट्रीय विवाद में ‘उदासीन नहीं रह सकती (Cannot remain indifferent) तो उससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि उसकी सरकार अवश्य हस्तक्षेप करेगी।
  • (2) जब कोई राजनयिक यह कहता है कि ‘अमुक बात मेरी सरकार की दृष्टि में अत्यधिक चिन्ता का विषय है’ (His Majesty's Government view with concern or view with grave concern) तो इसका अर्थ यह होता है कि उस विवाद में उसकी सरकार कड़ी नीति का अवलम्बन करेगी। ये एक प्रकार से चेतावनी पूर्ण शब्द कहे जा सकता हैं। जब इन शब्दों से काम नहीं चलता तो अधिक महत्वपूर्ण शब्दों और मुहावरों का प्रयोग किया जाता है।
  • (3) यदि राजनयज्ञ यह कहता है कि ‘इस प्रकार की परिस्थितियों में शासन को अपनी वर्तमान स्थिति पर पुनर्विचार के लिए बाध्य होना पड़ेगा’ (In such event His Majesty's Government would feel bound carefully to reconsider their position) तब इसका आशय यह होता है कि मित्रता शत्रुता में परिवर्तित हो जायेगी।
  • (4) यदि कोई राजनयज्ञ यह कहता है कि उसके देश को अमुक विषय में ‘स्वतन्त्र कार्यवाही करने का अधिकार है’ (To claim a free hand) तब उसका अर्थ यह होता है कि राजनयिक सम्बन्ध तोड़ दिये जायेंगे। अथवा दूसरे पक्ष की नीति को असफल करने के लिए समुचित कदम उठाया जायेगा।
  • (5) यदि राजनयज्ञ यह कहता है कि 'परिणामों का उत्तरदायित्व हम नहीं लेते' तो इसका अर्थ यह लगाया जाता है कि ऐसी घटना उभाड़ी नहीं जा सकती है जिसका परिणाम युद्ध के रूप में प्रतिफलित हो।
  • (6) जब कभी कोई देश नम्रतापूर्व निवेदन करके यह स्पष्ट करता है कि अमुक परिपत्र का उत्तर एक निश्चित दिन तथा समय तक मिल जाना चाहिये तो इस कथन का अर्थ दूसरा देश अल्टीमेटम के रूप में लेता है। इसके ठुकराये जाने का परिणाम बहुधा युद्ध की घोषणा होती है।
  • (7) जब सरकार द्वारा यह कहा जाये कि दूसरे राज्य के कार्य को वह अमैत्रीपूर्ण समझती है तो इसका अर्थ यह है कि इस कार्य का परिणाम युद्ध भी हो सकता है।

न्यूनोक्ति के लाभ[संपादित करें]

प्रसिद्ध न्यूनोक्ति : "Dr. Livingstone, I presume?"

न्यूनोक्तियाँ राजकीय आचरण की दृष्टि से उल्लेखनीय स्थान रखतीं हैं। ये कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी शिष्टतापूर्ण एवं सौम्य वातावरण बनाते हैं तथा जन-साधारण में अनावश्यक उत्तेजना व्याप्त नहीं होने देते। शिष्ट शब्दों में शान्तिपूर्वक एक राजनयज्ञ अपनी सरकार के अमैत्रीपूर्ण विचारों का प्रदर्शन कर देता है। ये न्यूनोक्तियाँ वातावरण को उत्तेजनापूर्ण होने से रोकतीं हैं। यदि इन शब्दों पर शिष्टता का शहद न लगाया जाये तो ये इतने कटु हो जायेंगे कि अन्य राज्य इनको निगल भी न सके और शीघ्र युद्ध की घोषणा कर दे। प्रो॰ निकल्सन के मतानुसार इस परम्परागत संचार व्यवस्था का लाभ यह है कि इसके द्वारा जो नरम वातावरण तैयार होता है उसमें एक राज्य बिना उत्तेजना के भी गम्भीर चेतावनी दे देता है।

न्यूनोक्ति के दोष[संपादित करें]

न्यूनोक्तियाँ की हानि यह है कि वास्तव से संकटपूर्ण स्थितियों में भी इस प्रकार की उक्तियां सर्वसाधारण को प्रवचना में डाल देती हैं। जनता यह समझने लगती है कि देश के सामने कोई गम्भीर संकट नहीं है तथा दूसरे राज्यों के उनके राज्य के सम्बन्ध स्नेहपूर्ण और मैत्रीपूर्ण है। जनतन्त्र में जनता की यह असावधानी खतरनाक बन जाती है। जिस प्रकार किसी बात का अनुचित प्रयोग संकट उत्पन्न कर देता है उसी प्रकार किसी बड़े संकट के समय कथन की नम्रता जनता को आवश्यकता से अधिक नम्र और निश्चित बना देती है। जनता यह नहीं जान पाती कि उसके राज्य के सम्बन्ध में किस देश के साथ कब बिगड़ रहे हैं और कब सुधर रहे हैं। शब्दों को तोड़-मरोड़ कर कहने से उनके अर्थ के बारे में भी दुविधा उत्पन्न हो जाती है। कहा कुछ जाता है और वास्तव में उसका अर्थ कुछ और समझ लिया जाता है। असावधानी के कारण अनेक अर्थों का अनर्थ हो जाता है। प्रो॰ निकल्सन ने इस सम्बन्ध में एक रोचक उदाहरण प्रस्तुत किया है। इंग्लैण्ड के एक महावाणिज्य दूत ने पर राष्ट्र विभाग को यह सूचना भेजी कि ‘मुझे बड़े दुःख के साथ लिखना पड़ता है कि मेरे अधीनस्थ एक उप-वाणिज्य दूत अपने स्वास्थ्य की उतनी चिन्ता नहीं करता जितनी करने के लिये डाक्टर उसे सलाह देते हैं'। वास्तव में सम्बन्धित उप-वाणिज्य दूत सन्निपात अवस्था की अन्तिम सीमा पर था।

राजनयज्ञों की भाषा में न्यूनोक्तियों का आधिक्य होने के कारण ही इसे छल और धोखे का कार्य माना जाने लगा। जिसे हम आम व्यवहार में असत्य भाषण कहते हैं। उसे राजनयिक व्यवहार में शिष्टता और सौजन्यता कहा जाता है। लोकप्रिय कहावत के अनुसार एक राजनयज्ञ सम्भावित कार्य के लिए कहता है 'अवश्य हो जायेगा' और असम्भव के कार्य के लिये कहता है 'हो जायेगा'; किन्तु वह 'कभी नहीं होगा', शब्दों का प्रयोग नहीं करता, यदि करता है तो वह राजनयज्ञ नहीं है। यह शिष्टता और संक्षिप्त व्यवहार आजकल अपना महत्व खोते जा रहे हैं।

जनता द्वारा विदेश नीति के संचालन में अधिकाधिक रुचि लेने के कारण यह आवश्यक हो गया है कि राजनयज्ञों के शब्दों और कार्यों में सम्बन्ध रहे। जन साधारण को यह विश्वास होना चाहिये कि उनके विदेश मन्त्री या राजनयज्ञ जो कुछ वास्तव में कह रहे हैं वही उनका अर्थ है तथा वही वे वास्तव में करेंगे। आजकल शीत युद्ध की स्थिति में प्रचार कार्यों का महत्व बढ़ने के कारण, प्रत्येक राज्य विदेशी सरकार के प्रति आम रूप से अशिष्ट भाषा का प्रयोग करता है। छोटी सी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहा जाता है। बार-बार एक देश के कार्यों को अमैत्रीपूर्ण घोषित करते हुए भी युद्ध की घोषणा नहीं की जाती। सोवियत संघ ने नाटो, सिएटो और सैटो आदि के विरुद्ध यह बात कही थी कि इनकी सदस्यता को वह अमैत्रीपूर्ण कार्य मानेगा। इतने पर भी उसने किसी राज्य के प्रति युद्ध की घोषणा नहीं की वरन् इसके विपरीत पाकिस्तान आदि राज्यों को हथियार भी भेजे। स्पष्ट है कि आजकल न्यूनोक्ति की प्रथा को छोड़ा जा रहा है और अतिशयोक्ति पूर्ण कथनों की प्रकृति बढ़ती जा रही है। इस परिवर्तन के औचित्य के सम्बन्ध में विचारक एक मत नहीं हैं। न्यूनोक्तियों की परम्परा के पक्षधरों का कहना है कि अशिष्ट, कटु एवं उत्तेजनापूर्ण भाषा का प्रयोग यथासम्भव रोका जाना चाहिये तथा इसके स्थान पर समाचारपत्रों एवं अन्य संचार के साधनों द्वारा जनता को संक्षिप्त कथनों के अर्थ से परिचित कराया जाये ताकि इसकी बुराईयों को दूर किया जा सके।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]